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तिलक समझौते का((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

माँ बच्चों की अनेकों गलतियों पर सदा समझौते का तिलक लगाती है,खुद गीले में रह कर वो बच्चों को सूखे में सुलाती है,माँ बरगद की है वो ठंडी छैयां, जो जीवन की तपिश से बचाती है,बच्चों के सपनो के आगे अपनी इच्छाओं की कुर्बानी चढ़ाती है,कर्म की कावड़ में जल भर मेहनत का बच्चों का जीवन सफल बनाती है,हर माँ को शत शत नमन है मेरा,जो जीवन की किताब के हर पन्ने को ममता की स्याही से लिख जाती है,पर कई बार हम ही नही पढ़ पाते उन  अक्षरों को,जिन्हें वो बार बार  समझाती है,आती तो है हमे समझ,पर जब वो जग से चली जाती है,अपने खून और दूध से सींच कर, वो जीवन पथ पर हमें आगे बढ़ाती है,बेशक अपना हो उसका अग्निपथ,पर शिकन माथे पर नही लाती है,यही कारण है शायद माँ तभी ईश्वर के समकक्ष नज़र आती है