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Showing posts from March, 2023

गहरा नाता

दो सुमन

प्रेम चमन

तुम पीपल से कहीं भी उगे रहे(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

तुम *तर्क विज्ञान का* मैं *हिंदी की पावन कविता* तुम लगे रहे सिद्ध करने में, मैं बहती रही बन कर सरिता तुम *पीपल* से कहीं भी उगे रहे मैं *केसर क्यारी* सी निज परिधि तक सीमित रही

पैमाना

धरा ने ओढ़ी

मित्र

स्नेह सुमन

करती हूं अर्पित ये स्नेह सुमन तुझे

करती हूं अर्पित ये स्नेह सुमन तुझे

पीढ़ी बेशक बदल गई

मुबारक मुबारक अति मुबारक

एक कमरा उसका भी हो

[ एक कमरा  उसका भी हो ] एक कमरा उसका भी हो, है वो भी इसी अंगना की कली प्यारी, यहीं फला फूला था बचपन उसका, अब कैसे मान लिया उसे न्यारी।। अम्मा बाबुल के सपनो ने जब ली प्रेमभरी अँगड़ाई थी तब ही तो लाडो बिटिया इस दुनिया मे आयी थी, एक ही चमन के कली पुष्प तो, होते हैं सगे बहन भाई, फिर सब कुछ बेटों को सौंप मात पिता ने, मानो अपनी ज़िम्मेदारी निभाई।। मिले न गर ससुराल भला उसे, हो जाएगी न वो दुखियारी, एक कमरा तो उसका भी बनता है, है मात पिता की वो हितकारी।। कभी न भूले कोई कभी भी, थी वो भी इसी अंगना की कली प्यारी।। हर आहट पर मात पिता की, रानी बिटिया दौड़ कर आती है, कभी कुछ नही कहती मन का लाडो, बस चैन मात पिता के आंचल में पाती है।। एक दिन चुपचाप विदा होकर, वो अंगना किसी और का ही सजाती है। माना हो जाती है गृहस्वामिनी और पूरे घर पर उसका ही आधिपत्य होता है, पर पीहर से क्यों उखड़े जड़ उसकी पूरी ही, ये मलाल हर बेटी के दिल मे होता है। उसको भी चाहिए होते हैं कतरे बचपन के, खोई हुई गुड़िया,कुछ अपने पुराने अहसासों की अलमारी, एक कमरा उसका भी हो थी वो भी किसी आंगन की कली प्यारी।।, नही चाहिए उसे बराबर की ह

चादर

रंगरेज

किसी अच्छे से

मधुर मधुर सा नाता

हौले हौले

पता ही नहीं चला

अभाव

कुछ लोग(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

नजर

संग कांटों के(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

सुमन(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

अरदास

प्रेम

अलग परिवेश

प्रकृति जब भी मुस्कुराती है

कोई ऐसा बैंक होता(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

काश कोई ऐसा *बैंक* होता *जहां लम्हे जमा करा पाते* काश कोई ऐसा *एटी एम* होता *जहां से मधुर स्मृतियां  झट से निकाल लाते* काश कोई ऐसी *चेक बुक" होती *जिसमे प्रेम का चेक काट पाते* काश कोई ऐसी *पास बुक* होती, *जिसमे अतीत के लम्हे दर्ज करा जाते* काश कोई ऐसी *एफ डी*होती *जिसमे पैसे नहीं सांसें बढ़ा पाते*

सोच कर बोलती थी तूं

त्रिवेणी

खुशी

मैने पूछा खुशी से

चलो रंग देते हैं(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

आस्था

आस्था जब पहनती है लहंगा प्रेम का, और ओढ़ती है चुनर विश्वास का, फिर वह श्रद्धा बन जाती है।। श्रद्धा जब मांग भरती है समर्पण की, मंगलसूत्र पहनती है भाव का, फिर वह भगति बन जाती है।। भगति जब होती है सच्चे मन से,  जब साड़ी पहनती है वो निर्मलता की, घूंघट करती है सौहार्द का, फिर कण कण में रमती है।।

जब संवाद खत्म हो जाता है

अनिकेता

जब ईश्वर मुसकाया होगा

मां से सुंदर नहीं कोई कहानी

मधुबन

धरा ने ओढ़ी धानी चुनरिया

कोई अधिकार नहीं

कोई अधिकार नही,हम किसी की भावनाओं को आहत करें,हमें कोई अधिकार नहीँ, हम किसी की  नकारात्मक आलोचना करें,कोई अधिकार नही,हम किसी गरीब निसहाय कमज़ोर पर हाथ उठाएं,हमे कोई अधिकार नही,हम किसी की कमज़ोरी का फायदा उठाएं,कोई अधिकार नही

कोई अधिकार नहीं

बारिश की ठंडी फुहार सी तूं

*बारिश की पहली ठंडी फुहार सी तूं* *जन्मदिन पर सुंदर उपहार सी तूं* *बारिश के बाद माटी की सौंधी सौंधी महक सी तूं* *बाबुल के आंगन में चिरैया की चहक सी तूं* *जाड़े की गुनगुनी धूप सी तूं* मरुधर में तूं जैसे हरियाली  *बसंत में जैसे आम की अमराई* पर्वों में जैसे हो दीवाली *किसी शादी में जैसे मधुर सी शहनाई* *मंदिर में जैसे घंटी की आवाज* *सुर के साथ जैसे सजता हो साज* *मस्जिद में जैसे कोई अजान* *पुजारी के लिए जैसे भगवान* *बच्चे में चंचलता सी सपनों में जैसे ऊंची उड़ान* *एक बात आती है समझ में ईश्वर का रही तूं वरदान* और परिचय क्या दूं तेरा???? *पूरा जहान भी मिल कर नहीं भर सकता तेरा खालिस्तान*

शिक्षा

ऐसा क्या

मात पिता

व्यर्थ

शक्तिशाली

लोकतंत्र में शक्तिशाली है सबसे ये मताधिकार, गण की ताकत जब समझ लेता है तंत्र, नष्ट हो जाते हैं सब आधि व्याधि और विकार।। सना

मित्र सा इत्र कोई नहीं

जय माता दी((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

परिवर्तन( स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*बहु बेटा*जब बनते हैं *सास ससुर* फिर नजर नहीं,  उनका नजरिया ही पूरा बदल जाता है।। ये रिश्ता बदलते ही  इंसा इतना कैसे बदल जाता है।। मेरी छोटी सी समझ को ये मुद्दा बड़ा सा समझ नहीं आता है।  *रखते हैं उम्मीद जो अपने बेटे बहु से* क्या खुद *बेटा बहु* बन कर कभी मात पिता की नजरों में खरे उतर वे पाए थे??? झट से उत्तर मिल जाएगा, गर आत्ममंथन कर वे अतीत के गलियारों में दस्तक दे पाए थे।। *इतिहास दोहराया करता है खुद को* क्यों इंसा को समझ नहीं आता है??? *वो बुरा है वो कटु भाषी है* क्यों खुद को इंसा, ईश्वर समझ सा जाता है।।