मैं भी देख सकता हूँ रंग जीवन के, गर आप कर जाओ जाते जाते नेत्रदान। मैं भी जानूं प्रकृति की हरियाली, कैसी दिखती होगी ये दुनिया महान।। मैं भी देखूं आदित्य की किरणों से लिपट कर, कैसे किसी झँरोखे से धूलिकण नृत्य सा, किया करते हैं। मैं भी देख सकूं रंगोली,इंद्रधनुष जीवन के, कैसे मनोभाव चेहरे के भाव बदल देते हैं। मैं भी देख सकूं माँ की ममता के भावों को, पिता के सपनो की चाहों को, भाई बहनों संग जीवन की राहों को, मैं भी देख सकूँ बादलों में भिन्न भिन्न आकृतियों को,उगते,ढलते सूरज की लालिमा को, तारों की टिमटिमाहट को, इंदु की उज्ज्वल ज्योत्स्ना को, विहंगम ब्रह्मांड में असंख्य वस्तुओं,धातुओं, जीवों को, ये सब सम्भव है,जब आप कर दोगे नेत्रदान। मर कर भी अमर हो जाओगे, जाने के बाद भी आपकी आँखें देखेंगी ये पूरा जहान।। स्नेह प्रेमचन्द