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Showing posts from February, 2023

रंगे धरा गगन(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*रंगे धरा गगन मन हुआ मगन जब आया होली का त्योहार* *चारु चितवन चहुं दिशा विराजे, झूमे मस्ती में  सारा संसार* *बरसाने की लठमार है होली नर नारी में होती ठिठोली* *नर करे जतन, रंगी जाए नारी मारे डंडा इस दिन सारी की सारी* हर्षोल्लास का बने समा फिर, आएं खुशियां हर घर द्वार।। *मन हुआ मगन, रंगे धरा गगन जब आया होली का त्योहार* *अल्हड़पन लेने लगा है अंगड़ाई* *निखर निखर सी जाती है तरुणाई* *खिले फूल टेसू के ऐसे, जैसे प्रकृति ने सुंदर सी हो  चादर बिछाई* *मादक मंजरियों पर भौंरों का नर्तन, नयनों में हो मादकता छाई* ऐसा बना समा अनोखा, जैसे बरसों बाद साजन ने दी हो  दस्तक घर के द्वार। *रंगे धरा गगन मन हुआ मग्न* जब आया होली का त्योहार।। फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा के दिन, पावन पर्व ये आता है। नीला,पीला, लाल,गुलाबी  हर रंग दिल को भाता है।। ऐसे लगता है रंगरेज कोई, जैसे चित को रंग जाता है।। *कहीं भांग ठंडाई, कहीं रंगों की चादर कहीं करे जलधारा  सोलह श्रृंगार** तन प्रफुल्लित , मन आह्लादित ऐसा होली का त्योहार।। रंगे धरा गगन, मन हुआ मगन झूमे मस्ती में सारा संसार।। *होलिका रूप में नष्ट हुई थी जग से आज बुराई*

आखिर कब तक(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

नहीं मात्र हनुमान के(( भगति भाव स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*नहीं मात्र हनुमान के,  सब के चित में राम हैं*  *राम रात्रि,राम दिवस  राम भोर,शाम हैं।।  *राम भाव, राम शब्द, राम प्रेम अनुराग हैं * *राम वचन, राम सोच, राम कर्म,परिणाम हैं* *राम भक्ति, राम शक्ति,  राम ज्ञान-विज्ञान हैं*  *राम शब्द, रामअर्थ  राम जनकल्याण हैं* नहीं मात्र हनुमान के,  सब के चित में राम हैं।। *राम तीर्थ राम पूजा  राम चारों धाम हैं*  *राम गरिमा,राम महिमा  राम गौरव गान हैं*  *राम श्रद्धा,राम आस्था  राम ही विश्वास हैं* *राम दिल ,राम धड़कन  राम प्राण श्वास हैं*  नहीं मात्र हनुमान के,  सब के चित में राम हैं।। *राम कतरा,राम सागर  राम पंडित प्रकांड हैं*  *राम दृष्टि ,राम सृष्टि  राम पूरा ब्रह्मांड हैं*  *राम मुक्ति,राम भक्ति  राम चेतना का नाम है*  नहीं मात्र हनुमान के  सब के चित में राम हैं।। *राम मानस,राम गीता  राम ही तो कर्म हैं*  राम मनस्वी,राम तपस्वी  राम ही तो धर्म हैं* *राम सफर, राम मंजिल  राम ही है साधना*  *राम मोक्ष,राम स्वर्ग  राम ही आराधना*  *राम दीप,राम ज्योति,  शरणागत का राम सहारा*  *राम  सीप, राममोती  की रक्षा उसकी, जिसने पुकारा*  *राम चित,राम च

रंगरेज हमारे

राधा रुक्मणि( भगति भाव उद्गार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

पूछन लागी जब रुक्मणि राधा से," कहो राधा!  कैसा है तुम्हारा कृष्ण से नाता??? *राधा ने जो फरमाया*  वह युगों युगों से युगों युगों तक, जन जन को तहे दिल से भाता।। बोली राधा,* मेरी तो सांस सांस में कान्हा,मेरी रूह को आज भी कान्हा की बंसी देती है सुनाई* पल पल होता है अहसास मुझे उनके होने का, नहीं हुई मेरी आज तलक भी उनसे विदाई।। *प्रेम कावड़ में कान्हा ने  मुझे ऐसा अमृत पिलाया है* युगों युगों से,युगों युगों तक मेरा अंतर तृप्त हो आया है।। *बिन स्पर्श जो छू ले मन को, है *प्रेम* वही प्यारा सा अहसास* खुद को खुद की नजरों में भी बना देता है *आम से अति खास* *तन के भूगोल को नहीं  मनोविज्ञान को जानता है प्रेम, ब्रेल लिपि नहीं, सांकेतिक भाषा का प्रेम में सार* बिन कहे ही समझ आता है जो, यही  होता है प्रेमआधार।। मात्र कुछ मीठे शब्दों से ये, आंखों से ह्रदय में खुद को लेता है उतार। *धड़कन धड़कन संग लगती है बतियाने,  हर शब्दावली अर्थहीनता की चला देती है बयार किसी देह किसी स्पर्श की प्रेम हो होती नहीं दरकार* जीवित रहती है ये प्रेम अनुभूति युगों युगों तक ह्रदय में स्पंदन जैसी, जैसे

राधा मीरा और रुक्मणि(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*राधा मीरा और रुक्मणी* एक दिन स्वर्ग में मिल जाती हैं।  *तीनों कान्हा की प्रेम दीवानी* कुछ ऐसे बतियाती हैं.. कहा रुकमणी ने दोनों से," कैसी हो तुम मेरी प्यारी बहनों??  कैसे बीत रही है जिंदगानी?  हम तीनों के प्रीतम तो *कान्हा*ही हैं,पर सुनाओ आज मुझे अपनी अपनी प्रेम कहानी।।  सबसे पहले मीरा बोली," मैं तो सांवरे के रंग रांची"  भाया ना मुझे उन बिन कोई दूजा।  बचपन से ही उन्हें माना पति,प्रीतम,रक्षक मैंने, निसदिन मन से की उनकी है पूजा।।  उन्हें छोड़ किसी और की कल्पना नहीं हुई मुझे कभी स्वीकार। * जहर का प्याला पी गई मैं तो*  सपनों में भी किए कान्हा के दीदार।। सांस सांस बसते हैं वे चित में मेरे,  उन से शुरू, उन्हीं पर खत्म हो जाता है मेरा संसार * नहीं राणा को मैंने माना  कभी भी अपना सच्चा भरतार*  करती थी, करती हूं,  करती रहूंगी सदा *श्याम* से सच्चा प्यार।। *मेरो तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई जाके सिर मोर मुकुट, मेरो पति सोई* *मेरे तो इस पूरे जग में हैं  केवल गिरधर गोपाल* मोर मुकुट सजता है  जिनके सिर पर, *वही प्रीतम मेरे हैं बड़े कमाल* *अधर सुधा रस मुरली राजति, उर बैजन्ती

राधा मीरा और रुक्मणि

राधा मीरा और रुक्मणी एक दिन स्वर्ग में मिल जाती हैं।  *तीनों कान्हा की प्रेम दीवानी* कुछ ऐसे बतियाती हैं.. कहा रुकमणी ने दोनों से," कैसी हो तुम मेरी प्यारी बहनों??  कैसे बीत रही है जिंदगानी?  हम तीनों के प्रीतम तो कान्हा ही हैं पर सुनाओ आज मुझे अपनी अपनी कहानी।।  सबसे पहले मीरा बोली," मैं तो सांवरे के रंग रांची" भाया ना मुझे उन बिन कोई दूजा।  बचपन से उन्हें माना पति मैंने निसदिन मन से की उनकी है पूजा।।  उन्हें छोड़ किसी और की कल्पना नहीं हुई मुझे कभी स्वीकार। * जहर का प्याला पी गई मैं तो*  सपनों में भी किए कान्हा के दीदार।।  नहीं राणा को मैंने माना  कभी भी अपना सच्चा भरतार।  करती थी, करती हूं, करती रहूंगी सदा शाम से सच्चा प्यार।।  मीरा के समर्पण को सुनकर रुकमणी को ईर्ष्या हो आई । अति उच्च दर्जे का मीरा प्रेम है  रुक्मणि को सच्चाई समझ में आई।।

सृष्टि का भाग दोनो आधा आधा(( दुआ स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

जब संवाद खत्म हो जाता है

हमारा प्यार हिसार

पता ही नहीं चला

मूल में जिसके जनकल्याण

सत्कर्म बना देते हैं सुंदर

दौर बदल जाते हैं

तूं मेरी जिंदगी है

हमारा प्यार हिसार

35 बरस पहले का दिन

आज मुझे फिर याद आया

सत्संग क्या है

सत्संग क्या है,एक दूसरे की भावनाओं का सम्मान करना,एक दूसरे की ज़रूरत समझ कर यथासंभव पूरा करने का प्रयत्न करना,समर्थ का असहाय लोगों की सहायता के लिए खुद आगे बढ़ कर आना,माँ बाप का आजीवन ध्यान रखना,प्रेम करना,सेवा करना,केवल माँ बाप का ही नही ज़रूरतमन्द की सहायता करना, छोटों को प्रेम और मर्गदेर्शन करना,बेटियों को  सदा बेटों के सामान शिक्षित करना,संस्कारवान बनाना,भूखे को रोटी देना,मधुर भाषा का प्रयोग,रिश्तों की गरिमा बनाये रखना ,हिंसा का मार्ग न अपनाना,प्राणियों पर दया भाव रखना यही सत्संग है,मनो चाहे न मानो,मंदिर,मस्ज़िद,तीर्थ धाम, सबसे बढ़ कर प्रेम का काम

शिव में सती, सती में शिव(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

शिव में सती,सती में शिव *दो अस्तित्व पर एकाकार* दोनों पूरक एक दूजे के, जैसे सपना होता हो साकार।। *जब भी देखी मैंने अपनी परछाई* *अपनी नहीं, छवि तेरी मुझे  साजन नजर आई* प्रेम की इससे बेहतर  नहीं कोई परिभाषा, मेरी छोटी सी समझ ने  बात बड़ी सी समझाई।। *प्रेम शक्ति है,समर्पण है विश्वास है,सम्मान है* शिव सती के प्रसंग ने मेरे चित में ये बात बिठाई।। मैने पूछा प्रेम से रहते हो कहां?? हौले से मुस्कुरा दिया प्रेम और बोला "कैलाश पर*  युगों युगों से शिव पार्वती रहते हैं जहां।। जब कुछ नहीं था तब भी शिव थे, जब कुछ भी नहीं होगा तब भी शिव होगें,स्वयं भू हैं शिव, शिव महिमा सच अपरंपार।। सत्य ही शिव है,शिव ही सुंदर है जान गया ये विहंगम संसार।।

सृष्टि का भाग दोनो आधा आधा(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*न कम न ज्यादा सृष्टि का भाग दोनो आधा आधा* *शिव शक्ति*  दोनो पूरक एक दूजे के, सदा साथ निभाने का अमिट इरादा विवाह परंपरा की,  दोनो से ही हुई शुरुआत मर्यादा,स्नेह,सम्मान,समर्पण, विश्वाश  इस नाते की अनुपम सौगात दोनो पूर्ण एक दूजे से, भावनाओं को ना पहुंचे कभी आघात एक दूजे के संग चलें सदा, हों कैसे भी  चाहे हालात सुख दुख दोनो के सांझे सांझे बस हों चित न दोनो के विषाक्त तन का नहीं हो मिलन रूह का, आए समझ एक दूजे के जज़्बात लब बेशक कुछ भी ना बोलें बिन कहे ही आए समझ हर बात आए समझ नयनों की भाषा साथ है ये अब दिन रात हर रंग पड जाता है फीका  रंगरेज प्रीतम  का लागे रंगीला साथ यूं हीं तो नहीं देता बाबुल कालजे को कौर का प्रीतम को हाथ

समानता का संदेश(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*न कोई कम, न कोई ज्यादा सृष्टि का भाग दोनों आधा आधा* *दोनों पूर्ण एक दूजे से, अनमोल प्रेम से दोनों धनवान* समानता का संदेश दिया जग को, क्या क्या *आदि योगी* के करूं गुणगान? *सर्वोच्चता* के प्रतीक हैं शिव,  सदा ही करते आए जग कल्याण *स्वयंभू* हैं शिव*ज्योतिबिंदु* हैं शिव, कण कण में शिव विद्यमान *अर्धनारीश्वर*रूप में पूजा जाता है शिव को, शरीर का आधा भाग है स्त्री का, किया समानता का आह्वान।। हर इंसान की आधी ऊर्जा स्त्रैण और आधी पुरुष की है हमसभी में 50 %पिता और 50% मां है विद्यमान सृष्टि में समानता के सिद्धांत को स्थापित करने वाला रूप भगवान अर्ध नारीश्वेर अति महान।। *न कोई कम ना कोई ज्यादा" नर और नारी से पूर्ण होता जहान।।

ज्योतिर्लिंग घृष्णेश्वर

महाराष्ट्र के औरंगाबाद में *घृष्णेश्वर  ज्योतिलिंग*  है विराजमान। 24 खंबों पर बना गर्भगृह है, दर्शन मात्र से पाप मुक्त हो जाता है इंसान।। ऐसे होती है जीवन में सुखों को वृद्धि, जैसे शुक्ल पक्ष में चंद्रमा की होती है। शिवरात्रि पर 5 दिनों का होता है उत्सव महाभिषेक और रात्रि में महापूजा होती है।। पालकी से शिव को तीर्थ कुंड ले जाते हैं।। ऐसे शिव पूरे जग के विष को कंठ में पी जाते हैं।।

ज्योतिर्लिंग रामेश्वरम

तमिलनाडु के रामेश्वर में राम ने लंका चढ़ाई से पहले शिव लिंग की स्थापना की थी,यही पर शिव हैं विद्यमान रावण वध के बाद ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति के लिए किया था पूजन यहां दर्शन मात्र से हत्या जैसे पाप भी हो जाते हैं दूर महाशिवरात्रि पर शिव पार्वती की निकलती है रथ यात्रा 12 दिन तक चलता है ये महोत्सव लंका पर विजय के लिए श्री राम ने किया था महाभिषेक

ज्योतिर्लिंग नागेश्वर

गुजरात के द्वारका में * नागेश्वर ज्योतिर्लिंग* है विराजमान शिव ने पशुप्तास्त्र से *दारूका  राक्षस*का वध  कर भत्तों की की थी रक्षा,और खुद ज्योतिर्लिंग में स्थापित हो गए थे भगवान।। द्वारकाधीश कृष्ण भी शिव का  रुद्राभिषेक किया करते थे जब कुछ नहीं था तब शिव थे, शिव सदा से ही कष्ट लोगों के हरते थे चांदी के नाग नागिन भगत गण  चढ़ाते हैं यहां, अपनी कामना को पूर्ण कर पाते हैं। यही मान्यता है युगों से यहां शिव पूजन से मन और तन विष मुक्त हो जाते हैं।।

ज्योतिर्लिंग वैद्यनाथ(( प्रयास स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*झारखंड के देवघर में*  बाबा वैद्यनाथ हैं विराजमान *शक्तिपीठ* भी है ये एक, कण कण में शिव शोभायमान हर कामना भत्तों की होती है  यहां पूर्ण, *कामना लिंग* का भी मिला है इसलिए इसे नाम।। रावण से शिवलिंग लेकर भगवान विष्णु ने यहां किया था स्थापित, ऐसी मान्यता,नहीं अनुमान।। महाशिवरात्रि पर बाबा का होता यहां *विशेष श्रृंगार* शिव पार्वती का महाभिषेक होता है पहर यहां चार।।

त्रयम्बकेशवर

गौतम ऋषि के आह्वान पर  शिव हुए थे यहां विराजमान *काल सर्प दोष*  से मिलती है मुक्ति यहां, बाबा की पूजा का प्रावधान।। महाराष्ट्र के नासिक मे*त्रयम्बकेशवर* ज्योतिर्लिंग की यह मान्यता महान ब्रह्मा,विष्णु और रूद्र के प्रतीक हैं ज्योतिर्लिंग के तीन चेहरे, जैसे तीनों ही हों एक स्थल पर विद्यमान।। शिवरात्रि पर बाबा की  पूजा होती है पांच बजे से प्रारंभ भोर,दोपहर और शाम को ढाई घंटे की पूजा का आरंभ

ज्योतिर्लिंग काशी विश्वनाथ

उत्तर प्रदेश के वाराणसी में   *विश्वनाथ* रूप में बाबा ने  खुद को किया विराजमान। *मोक्ष प्राप्ति* की इच्छा संग  भगत करते हैं दर्शन बाबा के, दर्शन से हो जाते हैं धनवान।। जन्म मृत्यु चक्र से मिल  जाता है छुटकारा,  दर्शन करने से मिलता है  लाभ ये अति महान।। शिवरात्रि के दिन पूरी रात होता है पूजन,  कण कण हो जाता है शिवमय चित में जैसे अमिट निशान।। रूप में बाबा बनते हैं दुल्हा, विवाह की रस्में निभाने का आह्वान।।

ज्योतिर्लिंग भीमाशंकर

महाराष्ट्र में पुणे के पास  सहाद्रि पर्वत पर  *भीमा शंकर* हैं विराजमान भीमा का वध कर  स्थापित हो गए शिव यहां, मिला था जिस भीमा को,  ब्रह्मा जी से अजेय रहने का वरदान परंपरा है यहां नवरात्रि पर होता है तीन दिन का विशेष *अनुष्ठान* यहां शिवपूजा होती है रात्रि में, भगतों को दिव्य फल प्राप्ति का प्रावधान।।

ज्योतिर्लिंग केदारनाथ

*उतराखंड में विराजित हैं बाबा केदारनाथ, है ये चार में से एक धाम* पांडवों ने कौरव भाइयों की हत्या के पाप से बचने हेतु, यहां आराधना का किया था काम। यही से फिर स्वर्ग हेतु, पांडवों ने किया था प्रस्थान शिवरात्रि पर मंदिर के बंद रहते हैं कपाट इस दिन कपाट खुलने की तिथि होती है घोषित, यही परंपरा शिव महिमा सच अति विराट

ज्योतिर्लिंग ओंकारेश्वर

मध्यप्रदेश के ओंकारेश्वर में,  शिव और माता पार्वती करते हैं विश्राम शयन से पूर्व खेलते हैं दोनो चौसर, ले मेरी रसना सदा शिव का नाम।। मंदिर के गर्भ गृह में सदियों से, चौसर पांसे की बिसात सजाने का होता है काम।। महाशिवरात्रि पर 24 घंटे खुला रहता है भोले का दरबार। शयन रात्रि 8.30 के स्थान पर होती है रात तीन बजे,ऐसा ओंकेश्वर में भोले का अवतार।।

ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर

*मध्यप्रदेश के उज्जैन में विराजित हैं बाबा महाकाल* *धरा का नाभिस्थल* भी कहा जाता है इसे, महता बढ़ रही सालों साल कर्क रेखा भी यहीं से है निकलती, है ना कितना अदभुत कमाल *चीर धरा का सीना यहां  हुए प्रकट थे महाकाल* दैत्यआतंक से  मुक्ति दिलाने के लिए  रूप धरा था अति विकराल शिवरात्रि पर नौ दिन बाबा का अलग अलग रूपों का होता है श्रृंगार साल में इसी दिन दोपहर में होती है भस्म आरती, लागे जैसे महोत्सव पर्व उल्लास त्योहार।। हर सुबह भस्म आरती,दिन भर बाबा का मोहक श्रृंगार नयन ही नहीं रूह तृप्त हो जाती है, करे मन निहारूं बारंबार।।

ज्योतिर्लिंग मल्लिकार्जुन

*मलिकार्जुन कहो या कहो इसे दक्षिण का कैलाश* *एकमात्र है ये ज्योतिर्लिंग,  जहां शिव पार्वती संग करते हैं वास* आंध्रप्रदेश के नंदयाल जिले में है *मल्लिकार्जुन* सच में अति खास पुत्र कार्तिकेय को मनाने के लिए पार्वती और महादेव ने यहां दिए थे दर्शन,करने लग गए फिर यहीं पर वास इसलिए नामकरण हुआ इसका मल्लिकार्जुन,सच में कितना सुखद आभास।  अश्वमेघ यज्ञ जैसा मिलता है पुण्य यहां पूजन करने से, सच में खास नहीं अति खास शिवरात्रि पर 11 दिन का होता है ब्रह्मोत्सव,महारुद्राभिषेक का भी आयोजन, मन के गलियारों में  जैसे भरा उजास रथ पर शिव पार्वती की निकले जब सवारी, जन जन को आती है रास।। सत्य ही शिव,शिव ही सुंदर,  चित में बस जाता है सच ये दक्षिण का कैलाश।।

ज्योतिर्लिंग सोमनाथ

*जहां जहां प्रकट हुए शिव वहां वहां करने लगे वे वास* यही हैं वे 12 ज्योतिर्लिंग  *खास नहीं, अति अति खास* कुंडली में चंद्रमा गर नीच राशि का और कष्टप्रद है तो,  बाबा के पूजन से यहां दुष्प्रभाव हो जाते हैं दूर। गुजरात के बैरावल में बाबा सोमनाथ विराजित हैं बन कर के नूर।। चंद्रमा की पूजा पर बाबा ने श्रापमुक्त किया उन्हें और खुद वहां स्थापित हो गए शिवरात्रि पर बाबा की निकाली जाती है पालकी,कर दर्शन भगत उनके धन्य हो गए।।

महाशिवरात्रि

सर्वोच्चता के प्रतीक हैं शिव

सत्यम शिवम सुंदरम

नटराज

ज्योतिर्लिंग

महाशिवरात्रि

परिणय की इस मंगल बेला पर(( दुआ स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

हरी हरी भिंडी

मेहनत और आलस्य(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))