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थके पथिक की पंथा सी (थॉट बाय स्नेह प्रेमचंद)

मां की स्मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा की। उन पर तो, है,पूरा अधिकार हमारा, जैसे वाणी हो,किसी वक्ता की।। लम्हे बीते,गुजरे बरस,  लगे,बात हो जैसे गुजरे कल की। वो चौखट पर उसका आकर  विदा करना सजल नयन से, कहानी हो जैसे मां मरियम की।। मां का मेरे घर आना, घंटों यूं ही बतियाना, हो जैसे सखी सहेली कोई बचपन की। वो नर्म गर्म की रोटी खिलाना, मिल जाती थी खुशी जैसे जन्नत की।। मां की स्मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा की। पंखों को परवाज़ मिली थी, लगे बात हो जैसे गुजरे कल की।।        स्नेह प्रेमचंद