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सबके बस की बात नहीं(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा)

*दर्द उधारे लेना जग में* सबके बस की बात नहीं *करुणा भरा हो चित व्यक्ति का* सबके बस की बात नहीं *दिल जीत ले जो सबका* सबके बस की बात नहीं *कोई चुभती बात ना कहे किसी को* सबके बस की बात नहीं *मन के घोड़ों की लगाम कसना* सबके बस की बात नहीं  *मधुर वाणी संग हो मधुर व्यवहार* सबके बस की बात नहीं *कुछ करना दरगुजर कुछ करना दरगुजार* सबके बस की बात नहीं *सपने वे होते हैं जो हमे सोने नहीं देते* समझना सबके बस की बात नहीं *दिल दिमाग का हो सही तालमेल* सबके बस की बात नहीं *नयनों की भाषा पढ़ना* सबके बस की बात नहीं *फल मिले या ना मिले पर कर्म करते रहना* सबके बस की बात नहीं *खामोशी की जुबान समझना* सबके बस की बात नहीं *सोच कर्म परिणाम की त्रिवेणी बहाना* सबके बस की बात नहीं *छोटे बड़े हमउम्र सबसे तालमेल होना* सबके बस की बात नहीं *संकल्प का मिलन हो जाए सिद्धि से* सबके बस की बात नहीं *बेगानाें को भी अपना बना लेना* सबके बस की बात नहीं *उपलब्ध सीमित संसाधनों में बेहतरीन कर जाना* सबके बस की बात नहीं *मन में कोई राग ना हो,कोई द्वेष ना हो,कोई अहंकार ना हो,कोई विकार ना हो* ये सबके बस की बात नहीं *सहजता क