Skip to main content

Posts

Showing posts with the label दो फूल खिले

दो वंश मिले

दो वंश मिले((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

दो वंश मिलते हैं, दो फूल खिलते हैं,और दो सपने करते हैं श्रृंगार,दो दूर देश के पथिक संग संग चलना कर लेते हैं स्वीकार,जीवन भर साथ निभाने का वायदा एक दूजे को देते हैं,सुख दुख के दोनों सच्चे साथी,ये वायदा बखूबी निभाते हैं,अनेक रिश्तों के बंधनों में बन्ध कर भी ,इस रिश्ते को प्रेम,विश्वास और समर्पण की सदा ही धोक लगाते है।ताउम्र का सफर संग संग करने की कसमें खाते भी हैं,निभाते भी हैं,समर्पण,प्रेम और विश्वास का यह नाता है, माना खून का नाता नहीं,पर जैसे जैसे गहराता है,और मधुर से मधुरतर बन जाता है।जीवन में एक दूजे बिन जीने की कल्पना भी निराधार लगती है।। सहजता चित से दामन चुराने लगती है।प्रेम रंग से रंगा यह नाता राधा कृष्ण के उदाहरण से भली भांति समझ में आता है,भले ही पति पत्नी की मोहर न लगी हो,उनके प्रेम पर,पर आज भी युगों युगों के बाद भी राधा का नाम कान्हा से पहले लिया जाता है। प्रेम का सिंदूर राधा ने मन की मांग में सदा सदा के लिए भर लिया था।। करवा चौथ पर्व भी इसी बात का प्रतीक है,प्रेम पर समर्पण की मोहर है।।भारतीय सभ्यता और संस्कृति का परिचायक है ये पर्व, आस्था,विश्वास,समर्पण का प