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मैने पूछा कला से(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

मैने पूछा कला से,"रहती हो कहां??? हौले से मुस्कुरा कर बोली कला, "होता है मेरे लिए सच्चा समर्पण,मेहनत,अभ्यास और लागी जहां।। मैने पूछा कला से,"खाती हो क्या??? हौले से मुस्कुरा दी कला और बोली, "जज्बा,जोश,जुनून से ही भर जाता है पेट मेरा और पानी पीती हूं मैं सतत रियाज का,निरंतर अभ्यास का।। मैने पूछा कला से जाती हो कहां??? हौले से मुस्कुरा दी कला और बोली, "सच्चे दिल से देता है दस्तक जो मेरी चौखट पर,बिन बुलाए भी फिर जाती हूं वहां।। मैने पूछा कला से बुनती हो क्या?? हौले से मुस्कुरा दी कला और बोली, "संस्कृति को सपने के धागे से रोज बुनती हूं।। मैने पूछा कला से  दमकती हो कहां??? हौले से मुस्कुरा दी कला और बोली, "दमकती हूं वहां,मेरे कद्रदान हैं जहां।। मैने पूछा कला से आपकी पसंद है क्या??? हौले से मुस्कुरा दी कला और बोली, "जिज्ञासु चित,सच्चा समर्पण,पूरी निष्ठा, विचार शक्ति,जिजीविषा,रुचि और लगन।। मैने पूछा कला से कहां कहां नहीं जाती हो???? हौले से मुस्कुरा दी कला और बोली नहीं जाती मैं वहां कदापि, होता है आलस,क्लेश,अवसाद जहां।। मैने पूछा कला से,&quo