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शिक्षा के भाल पर

ज़िम्मेदारी thought by sneh premchand

गण तंत्र दोनों से भी  ऊपर होते हैं संस्कार।  जब तक शिक्षा के भाल पर,  नहीं लगता टीका संस्कार का, कुछ भी,कहीं भी,नहीं कर सकता  कोई भी सुधार।। बुरी नजर ना कोई डाले किसी पर,  ऐसा तो नहीं कर सकते हम कोई आविष्कार।।। बहुत ही नाजुक,बहुत प्यारी होती हैं बेटियां, करते हैं मात पिता इनपर जान निसार।।  क्या लाए थे क्या ले जाना है??  छोटी सी जिंदगी में कुविचारों का करें बहिष्कार।। कोई बोझ लेकर तो ना  रुखसत हो जग से,  जिंदगी के दिन है चार।।  एक बात आती है समझ में,  प्रेम ही हर रिश्ते का आधार।।  मन के घोड़ों को विवेक के  चाबुक से करना पड़ता है काबू,  इस सोच के लिए वह पूरा जग तैयार।।      स्नेह प्रेमचंद