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नित नित(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कला का नित नित होता विस्तार कला कल्पना को देती आकार कला सपने करती लम्हा लम्हा साकार कला से सुंदर बनता संसार ईश्वर के प्रिय बच्चे होते हैं कलाकार कला कल भी थी आज भी है कल और भी होगा इसका परिश्कार कला कलाकार की कलम है वो, जोड़ देती है जो दिलों के तार नीरसता को हर लेती है कला सरसता का है कला में सार चुन लेता है चुनिंदा लोगों को ईश्वर, कोई लेखक,कोई गायक कोई चित्रकार।। कला ना जाने सरहद कोई, कला ना जाने जाति मजहब का आकार कला ना जाने धनी और निर्धन कला कल्याण का आधार।।         स्नेह प्रेमचंद

धरा ने धीरज

सरहदें thought by snehpremchand

नहीं सरहदें कोई सोच की, अनन्त गगन सा इसका विस्तार। जहाँ न पहुंचे रवि तहाँ पहुंचे कवि, है इस बात का औचित्य और सार।। शून्य सन्नाटे भी लगते हैं बोलने, कायनात में विचरण करने लगते विचार।। कतरे कतरे से बनता है सागर, ज़र्रे ज़र्रे से बनती है कायनात। लम्हे लम्हे से युग बनते हैं, ज़िन्दगी खुदा की सुंदरतम सौगात।। बस सोच को सोचने दो सीमाहीन सा, भावों का, कर दो, सुंदर अल्फ़ाज़ों से शृंगार।।                   स्नेहप्रेमचंद