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हार जीत

फर्क संगति का

जीवन के इस कुरुक्षेत्र में(thought by Sneh premchand)

जब तक (thought by Sneh premchand)

जब तक मन में दुर्योधन नहीं, कोई शकुनी महाभारत का कारण नहीं बन सकता।  जब तक मन में केकई ना हो,  कोई मंथरा आपका हृदय परिवर्तन नहीं कर सकती,।  जब तक मन में धृतराष्ट्र सी महत्वाकांक्षा  ना हो,कोई महाभारत नहीं हो सकता।।           स्नेह प्रेमचंद

अपना महाभारत thought by स्नेह प्रेमचन्द

हर अर्जुन को लड़ना पड़ता है स्वयम ही महाभारत अपना स्वयम ही करना पड़ता है मुसीबतों का सामना। अर्जुन को तो फिर भी मिल गए थे कान्हा से सारथी औरों को तो बिन सारथी के भी पड़ता है चलना।।

Poem on heart and mind.न मन कभी हो

न मन कभी कैकई सा हो,