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बेहतर है मौन thought by sneh premchand

बेहतर है मौन

मौन क्यों thought by sneh premchand

मौन क्यों??????????. होता है जब अन्याय संग किसी के, तब हो जाते हैं सब मौन क्यों?????? हुआ था संग अन्याय संग सीता के धोखे से रावण ने हरण किया। रही पावन वो अशोक वाटिका में फिर भी जानकी का अग्नि परीक्षण हुआ। हुआ  अन्याय जब संग जानकी के, तब हो गए थे सब मौन क्यों????? हुआ था घोर अन्याय संग द्रौपदी के, भरी सभा मे दुःशासन ने चीर हरण किया। भीष्म,द्रौण, कृपाचार्य, धृतराष्ट्र,पांच पांडवों  के होते हुए भी,बैठे रहे सब मौन क्यों??????  यही पूछता है प्रेमवचन भी आपसे विनम्रता और कायरता में अंतर जानते हुए भी सब मौन क्यों ???????????????.. रास तो संग रचाया राधा के, पर सिंदूर का रुकमणी को मिला अधिकार।। सब जानते हुए भी साधे हैं चुप्पी, मौन क्यों।।।।        स्नेह प्रेमचंद

ज़रूरत

पितामह भीष्म,द्रोण, कृपाचार्य,विदुर,और  धृतराष्ट्र व अन्य सभासद तब मौन थे जब सबसे अधिक बोलने की ज़रूरत थी,उनके मौन का खामियाजा आज तलक संसार भुगत रहा है।।                स्नेह प्रेमचंद

चरित्र। thought by snehpremchand

गर धन दौलत गयी,तो कुछ न गया गर स्वास्थ्य गया,तो कुछ तो गया गर चरित्र गया,तो सब कुछ गया बचपन से ही घोट घोट इन्ही संस्कारों की घुट्टी पीते आये हैं। फिर भी कामांध इंसा को ये फलसफे समझ नहीं आए हैं। नित जाने कितनी ही द्रौपड़ियों के चीर हरण होते हैं। भीष्म सा मौन धारण करे रहते हैं हम,क्यों ज़ज़्बात हमारे सोते हैं।।         स्नेहप्रेमचन्द

हानि thought by snehpremchand

इस जग को अधिक हानि बुरे लोगों से नहीं होती,बल्कि कुछ बुरा होने पर अच्छे लोगों की खामोशी के कारण होता है।द्रौपदी चीरहरण के समय समस्त सभासद,उसके पांचों पति पांडव,गुरु द्रोण,पितामह भीष्म,विदुर,महाराज धृतराष्ट्र सब मौन थे।अन्याय की चक्की चलती रही,क्रिया सही प्रतिक्रिया का इन्तज़ार करती रही।अन्याय अट्हास करता रहा, क्रूरता मंद मंद मुस्कुराती रही,बेबसी कराहती रही,न्याय ने भी गांधारी की तरह अपनी आंखों पर पट्टी बांध रखी थी, राजवंश की मर्यादा सिसकती रही,घुटती रही,रोती रही,बिलखती रही।आरजुएँ दम तोड़ती रही,अनीति खिल खिलाती रही,क्या पितामह भीष्म की प्रतिज्ञा किसी की बेबसी,रुसवाई,  अस्मत और मान सम्मान से भी बढ़ कर थी।कदापि नहीं।उस सिसकते इतिहास के पदचाप आज वर्तमान में भी सुनाई पड़ते हैं। द्रौपदी को न्याय मयस्सर न हुआ,दुर्भाग्य जाग रहा था,सौभाग्य सो रहा था,गलत कर्म अपने चरम पर थे।जिल्लत गुर्रा रही थी,खौफ ए खुदा नदारद था,दुर्योधन की अहमकाना सोच  अंकुरित,पल्लवित और पुष्पित हो रही थी।पूरी अंजुमन में कोई भी द्रौपदी के हक में नहीं आया।। गलत को सही वक्त पर गलत कहना बहुत ज़रूरी है।साँप जाने के बाद लकीर पीटने