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और परिचय क्या दूं तेरा(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

और परिचय क्या दूं तेरा????  मरुधर में तू शीतल फुहार।  नवाजूं केसर क्यारी की संज्ञा से,  अपने आप तो उगते खतपतवार।।  किस्मत से मिली जो रिफाकत तेरी, किए होंगे सच में ही कुछ अच्छे कर्म।  बिन कहे ही जान लेती थी तू लाडो, हर दर्द का हर एक मर्म।।  एक नहीं, दो नहीं, जाने कितने ही असंख्य गुणों  का तू रही अंबार।।  और परिचय क्या दूं तेरा???  मरुधर में तू शीतल फुहार।।  हर दर्द का दरमां तू,   तू हर समस्या का समाधान।  हजारों की भीड़ में ही अलग चमके जो, सच में एक अलग सी रही  सदा तेरी पहचान।।  बड़प्पन उम्र का नहीं होता मोहताज,  दिनोंदिन होता गया तेरी सोच का परिष्कार।  कभी कुछ नहीं कहती,  बस करती जाती,  वाह! री डिप्लोमेट! तूं सच में ही थी बड़ी कलाकार।।  और परिचय क्या दूं तेरा???  मरुधर में तू शीतल फुहार।  कतरा ए शबनम सी तूं,  फिर भी संघर्षों से कभी  मानी नहीं हार। ओ चुंबकीय व्यक्तित्व वाली!  तेरे वजूद का आज तलक भी जेहन में छाया है खुमार। कल भी था, आज भी है, कल भी रहेगा ओ मां जाई! तुझसे प्यार।  और परिचय क्या दूं तेरा??  मरुधर में तू शीतल फुहार।  तू ही स्वर, तू ही व्यंजन,  सच में तू पूरी की पू