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Father's day Special ((*अकेला ही नहीं जाता पिता* विचार स्नेह प्रेमचंद रोहिल्ला द्वारा))

**एक युग का हो जाता है अंत, सच पापा के जाने के बाद** कौन सा दिन होता है ऐसा, जब आती ना हो उनकी याद??? जिद्द का अंत, रूठने का अंत, मनमर्जी का अंत, इठलाने का अंत, सहजता का अंत, नखरों का अंत, कितना कुछ साथ चला जाता है संग पिता के, पिता अकेला नहीं जाता, बहुत कुछ संग चला जाता है। पिता और बच्चों का सच में बहुत ही गहरा सा नाता है।। मैने भगवान को तो नहीं देखा पर जब जब पिता की ओर, मन मंदिर सुंदर हो जाता है।। परवाह है पिता,प्रेम है पिता, वो तो ताउम्र देता ही तो जाता है। सच में पिता अकेला नहीं जाता, संग में बहुत कुछ चला जाता है।। गर फेरहिस्त बनाने लग जाऊं, यादों का लंबा कारवां जेहन में आता है।। बाबुल देता है सदा दुआएं अपनी लाडो को, मुझे तो बाबुल बेटी का नाता बहुत ही भाता है।। कोई कांटा चुभे का कभी उसकी लाडो को, यही भाव जेहन में उसके सदा गहराता है।। कौन कहता है पराई हो जाती है लाडो,लाडो को तो पति में भी पिता का अक्स नजर आता है।। ये बात दूसरी है बिटिया की शादी के बाद, पिता अधिकार में थोड़ा पीछे हट जाता है, पर प्रेम और जिम्मेदारी ताउम्र बखूबी निभाता है।। सपने चले जाते हैं,ख्वाइशों के पात