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दम दम दमकी दिनकर सा तूं((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

दम दम दमकी दिनकर सा तूं, किया प्रेम से जिंदगी का श्रृंगार। सबसे छोटी पर सबसे बड़ा औरा, ओ मेरी लाडो, ओ मेरी गम गुसार।। बायोलॉजी ने बेशक साथ न दिया तेरा,मनोविज्ञान की थी तूं विद्वान। केमिस्ट्री तेरी लाजवाब मां जाई, सामाजिक विज्ञान में कर गई हैरान।। सबके गणित को समझ जाती, नहीं करती थी किसी को भी परेशान। खुशियों को जोड़ती,कष्टों को घटाती, सच में तूं ईश्वर का वरदान।। संघर्षों से हार न मानी, जिंदगी का तूं सुंदर सा अलंकार। सबसे छोटी,पर सबसे बड़ा औरा, ओ मेरी लाडो! ओ मेरी गमगुसार।। यूं तो बहुत मिलते हैं जिंदगी के मेले में, कुछ भूल जाते हैं,कुछ याद रह जाते हैं। पर तुझ जैसे तो जेहन की चौखट, जाने के बाद भी खटखटाते हैं।। सच में तेरे जाने के बाद,आ ही नहीं रहा करार। दम दम दमकी दिनकर सा तूं, किया प्रेम से जिंदगी का श्रृंगार।। कथनी से नहीं, करनी से समझा गई तूं, प्रेम ही हर रिश्ते का आधार।। तुझ जैसे सच में ही नहीं मिला करते बार बार।। ये तेरा नहीं,सौभाग्य था हमारा, जो मां जाई बन आई मां बाबुल के द्वार।।         स्नेह प्रेमचंद