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Showing posts from January, 2022

एक गाड़ी के दो पहिए

बेगाने

कई बार

आज भी आई,कल भी आई

कोई भी खास दिन हो

मां याद आती है मुझे

शौहरत

राधा और कान्हा

अतीत के झोले से

कोई शस्त्र नहीं,कोई शास्त्र नहीं

प्रेम

कोई शस्त्र नहीं,कोई शास्त्र नहीं

प्रेम से सुंदर कोई अहसास नहीं(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कोई शस्त्र नहीं,कोई शास्त्र नहीं, प्रेम तो पुष्प है,जैसे पारिजात। कोई शब्द नहीं,कोई शोध नहीं, प्रेम तो शादी मंडप में जैसे बारात।। कोई व्यवसाय नहीं, कोई सिद्धांत नहीं, प्रेम है सबसे सुंदर जज़्बात।। प्रेम तो है बस एक सुखद अनुभूति, प्रेम तो है बस और बस हृदय की बात। प्रेम से बढ़ कर इस धरा पर, नहीं ईश्वर की कोई सौगात।। प्रेम में जिद्द नहीं,  कोई अहंकार नहीं प्रेम से सुंदर सच में,  कोई संसार नहीं।। प्रेम मापने का बेशक  कोई निर्धारित   पैमाना नहीं होता, पर जो जिक्र और जेहन दोनो में रहते हैं,प्रेम उन्हीं से गहरा है होता।। नहीं होता *कोई*प्रेम का कारण, *क्यों* का भी प्रेम से नहीं कोई नाता। प्रेम मस्तिष्क की बात नहीं, दिल को प्रेम निभाना आता।। *पीपल* सा होता है प्रेम, कहीं भी अंकुरित हो जाता है। *केसर क्यारी*सा होता है प्रेम, जो जाने कितने ही जीवन  महकाता है।। प्रेम तो वो "पारस* है जो हर प्रेमी को सोने में बदल देता है। प्रेम तो वो *इत्र" है, जो हर प्रेमी को सुवासित कर देता है।। प्रेम तो वो *आफताब* है जो रोएं रोएं को चमका देता है,  जर्रे जर्रे को खिला देता है।। इंदु की शीतल ज्योत्सना है

एक गाड़ी के दो पहिए

दो पंछी

दो वंश मिले

यादगार

मुलाकात

मुलाकाते

कब बीत गए

कब बीत गए बरस 27 हो ही नहीं पाया अहसास। कारवां चलता रहा, समय गुजरता गया,  घटती रही घटनाएं, कभी आम और कभी खास।। जीवन के सफ़र की कल्पना भी अब एक दूजे बिन लगती है अधूरी। ये रिश्ता ही ऐसा है, हौले हौले सिमट जाती है हर दूरी।। हर भोर उजली है संग एक दूजे के, और हर  सांझ बन जाती है सिंदूरी।। साथ बना रहे,विश्वास सजा रहे, है नाता सच मे ये अति खास। कब बीत गया समय इतना, हो ही नहीं पाया आभास।। कभी घाव मिले,कभी मिला मरहम कभी ह्रास हुआ कभी हुआ विकास पर एक के दूजे का होना ही, सच में होता है सुखद अहसास।। खून का तो है नहीं ये नाता, हो इसमें प्रेम,समर्पण,परवाह और विश्वाश। इन भावों से लबरेज नाता ही, सच में बन जाता है अति खास।। प्रेम का नाम परफेक्शन कभी नहीं होता। जब एक दूजे को एक दूजे के गुण दोषों संग करते हैं हम स्वीकार, वही प्रेम का सच्चा दर्पण है होता।। कोई भी दो व्यक्ति  कभी एक जैसे नहीं होते व्यक्तिगत भिन्नता तो निश्चित ही होती है,इस समझ से नाते गहरे ही हैं होते।। आ जाती है समझ जब ये सच्चाई, प्रेम का हिवडे में हो जाता है वास। कब बीत गए बरस 27, हो ही नहीं पाया अहसास।।

साथी साथ निभाना

[ साथी साथ निभाना ] आज के दिन बस यही गुजारिश, साथी साथ निभाना, साथी साथ निभाना। सरल,सहज,सौम्य से हो जो तुम बस प्रेम का सॉज बजाना।। साथी साथ निभाना, साथी साथ निभाना। बिन कहे ही मन की लेते हो जान अब तो है तुमसे हर खुशी अपनी इस सत्य का हो गया है भान।। अनजानी राहों पर नए सफर के जब तुम बने थे हमसफ़र मेरे माँ बाबुल ने दिया था हाथ तुम्हे मेरा अग्नि को मान साक्षी लिए थे फेरे एक अनजान सा भय था दिल मे उस भय को हटाया,प्रेम बसाया जीवन पथ को सुगम बनाया। इस जीवनसंगिनी को साथी देखो कभी तुम भूल न जाना। साथी साथ निभाना, साथी साथ निभाना। एक गाड़ी के हम दो हैं पहिए हमे संग संग ही आता है चलते जाना एक की शक्ति होता है दूजा बस प्रेम का छौंक लगाना। साथी साथ निभाना।।

साथी साथ निभाना

[ साथी साथ निभाना ] आज के दिन बस यही गुजारिश, साथी साथ निभाना, साथी साथ निभाना। सरल,सहज,सौम्य से हो जो तुम बस प्रेम का सॉज बजाना।। साथी साथ निभाना,  साथी साथ निभाना। बिन कहे ही मन की लेते हो जान अब तो है तुमसे हर खुशी अपनी, इस सत्य का हो गया है भान।। अनजानी राहों पर नए सफर के जब तुम बने थे हमसफ़र मेरे। माँ बाबुल ने दिया था हाथ तुम्हे मेरा, अग्नि को मान साक्षी लिए थे फेरे।। एक अनजान सा भय था दिल मे उस भय को हटाया,प्रेम बसाया जीवन पथ को सुगम बनाया। इस जीवनसंगिनी को साथी देखो कभी तुम भूल न जाना। साथी साथ निभाना, साथी साथ निभाना। एक गाड़ी के हम दो हैं पहिए हमे संग संग ही आता है चलते जाना एक की शक्ति होता है दूजा बस प्रेम का छौंक लगाना। साथी साथ निभाना।।

कब बीत गए

कब बीत गए बरस 27 हो ही नहीं पाया अहसास। कारवां चलता रहा, समय गुजरता गया,  घटती रही घटनाएं, कभी आम और कभी खास।। जीवन के सफ़र की कल्पना भी अब एक दूजे बिन लगती है अधूरी। ये रिश्ता ही ऐसा है, हौले हौले सिमट जाती है हर दूरी।। हर भोर उजली है संग एक दूजे के, और हर  सांझ बन जाती है सिंदूरी।। साथ बना रहे,विश्वास सजा रहे, है नाता सच मे ये अति खास। कब बीत गया समय इतना, हो ही नहीं पाया आभास।। कभी घाव मिले,कभी मिला मरहम कभी ह्रास हुआ कभी हुआ विकास पर एक के दूजे का होना ही, सच में होता है सुखद अहसास।। खून का तो है नहीं ये नाता, हो इसमें प्रेम,समर्पण,परवाह और विश्वाश। इन भावों से लबरेज नाता ही, सच में बन जाता है अति खास।। प्रेम का नाम परफेक्शन कभी नहीं होता। जब एक दूजे को एक दूजे के गुण दोषों संग करते हैं हम स्वीकार, वही प्रेम का सच्चा दर्पण है होता।। कोई भी दो व्यक्ति  कभी एक जैसे नहीं होते व्यक्तिगत भिन्नता तो निश्चित ही होती है,इस समझ से नाते गहरे ही हैं होते।। आ जाती है समझ जब ये सच्चाई, प्रेम का हिवडे में हो जाता है वास। कब बीत गए बरस 27, हो ही नहीं पाया अहसास।।

खरामा खरामा

खरामा खरामा सफर जीवन का अपनी ही गति से चला जाता है, जीवन के सफर में ओ हमसफ़र!  अब साथ तेरा ही भाता है।। जाने कितने ही उतार चढ़ाव  आते हैं जीवन में, खट्टे मीठे अनुभवों संग,  रिश्ता ये गहराता है। 27 बरस का सफर संग पूरा हुआ, प्रेम ही आधार है इस रिश्ते का, मानो ये समझाता है।। यूँ ही चलती रहे ये ज़िंदगानी, सुख दुख तो जीवन में  यूँ ही आता जाता है।। हिना सा होता है यह नाता, जो समय संग और भी श्यामल होता जाता है।।

आती है यही आवाज

दोनो का जीवन यूं ही चले

जीवन के शामियाने तले ,दोनो का ही जीवन संग संग चले, हो धूप घणी या शीतल फुहार। बस रहे प्रेम यूँ ही बरकरार।। खून का नहीं है ये प्रेम विश्वास का नाता बस बखूबी इसे निभाना हो आता।। जब तक एक दूजे की भावनाओं का नही रखेंगे ध्यान। समय बीतने पर भी रिश्ता बना रहेगा अनजान।। प्रीत की रीत ही गर नहीं निभाई, सजनी रहेगी साजन के लिए पराई।। जाने कितने ही विकल्पों में से होता है ये चयन, एक ही तस्वीर देखना चाहते हैं नयन।। प्रेम ही था,प्रेम ही है,प्रेम ही होगा हर रिश्ते का आधार, जीने के लिए है ये ज़िन्दगी, काटने के लिए नहीं, सत्य को करना होगा स्वीकार।। जाने क्या क्या छोड़ के सजनी घर साजन के आती है, हर रीत रिवाज़ उस चौखट के, पूरी तन्मयता से निभाती है। नए रिश्तों के नए भंवर में वो उलझी उलझी सी जाती है, अहम छोड़ कर वयम की ढपली प्रेम के सुर और समर्पण की सरगम से सतत आजीवन वो बजाती है।। एक ही गाड़ी के हैं दो पहिये, ये बात समझ क्यों नही आती है।। क्यों कई बाद संवेदना किसी कोने में छुप के सो जाती है।। हो ही नहीं पाया अहसास कब बीत गए 27 साल बहुत शुक्रिया ईश्वर का, मिले जो तुझ से पुर्सान ए हाल।। सुख दुख आते रहते हैं जीवन मे

जीवन के शामियाने तले(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

जीवन के शामियाने तले ,दोनो का ही जीवन संग संग चले, हो धूप घणी या शीतल फुहार। बस रहे प्रेम यूँ ही बरकरार।। खून का नहीं है ये प्रेम विश्वास का नाता बस बखूबी इसे निभाना हो आता।। जब तक एक दूजे की भावनाओं का नही रखेंगे ध्यान। समय बीतने पर भी रिश्ता बना रहेगा अनजान।। प्रीत की रीत ही गर नहीं निभाई, सजनी रहेगी साजन के लिए पराई।। जाने कितने ही विकल्पों में से होता है ये चयन, एक ही तस्वीर देखना चाहते हैं नयन।। प्रेम ही था,प्रेम ही है,प्रेम ही होगा हर रिश्ते का आधार, जीने के लिए है ये ज़िन्दगी, काटने के लिए नहीं, सत्य को करना होगा स्वीकार।। जाने क्या क्या छोड़ के सजनी घर साजन के आती है, हर रीत रिवाज़ उस चौखट के, पूरी तन्मयता से निभाती है। नए रिश्तों के नए भंवर में वो उलझी उलझी सी जाती है, अहम छोड़ कर वयम की ढपली प्रेम के सुर और समर्पण की सरगम से सतत आजीवन वो बजाती है।। एक ही गाड़ी के हैं दो पहिये, ये बात समझ क्यों नही आती है।। क्यों कई बाद संवेदना किसी कोने में छुप के सो जाती है।। हो ही नहीं पाया अहसास कब बीत गए 27 साल बहुत शुक्रिया ईश्वर का, मिले जो तुझ से पुर्सान ए हाल।। सुख दुख आते रहते

जीवन के सफर में ओ हमसफर

खुद मझधार में हो कर भी

सावन भादों(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

यूं हीं तो नहीं ये सावन भादों,  इतने गीले गीले होते हैं। जाने कितने ही अनकहे अहसास, अपने नयनों को भिगोते हैं।। जिंदगी के इस सफर में मिलते तो बहुत से हैं, बहुत कम हैं जो दिल के,  इतने करीब होते हैं। हो जाती है जब असमय ही उनकी रुखस्ती जग से, सही मायनों में गरीब हम होते हैं।। रूह हो जाती है रेजा रेजा, तन्हाई में खुल कर रोते हैं। यूं हीं तो नहीं ये सावन भादों,  इतने गीले गीले होते हैं।।।। लगती हो जिन्हें चोट वहां  और दर्द यहां पर होता हो, कितने कम ऐसे लखत ए जिगर जहान में होते हैं। मुलाकात बेशक रोज न होती हो उनसे, पर एहसासों में तो आज भी रूबरू उनसे होते हैं।। यूं हीं तो नहीं ये सावन भादों इतने गीले गीले से होते हैं।। अच्छे लगते हैं मुझे ये सावन भादों, इनमे भीगते हुए,  कोई बहते अश्क नहीं देख पाता। जी भर कर खुल कर रो लेते हैं हम, गुब्बार हिया का हल्का सा हो जाता।। लगती है जो झड़ी सी कई दिन, वे रिसते रिसते से कई रिसाव होते हैं। कभी कभी अचानक जो फटते हैं बादल,ये दिलों में रुके तूफान होते हैं। कोई बांध नहीं बांध पाता फिर किसी भाव को,आसार प्रलय के होते हैं।। यूं हीं तो नहीं,ये सावन भा

बड़े प्रेम से

मोह मोह के धागे(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

त्रिज्या नहीं,थी तूं व्यास

नहीं मात्र हनुमान के(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

शाख से पत्ता

दस्तक भोर की

रैन बसेरा

जब भी किसी की बिटिया