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अल्फाज और अहसास

जिंदगी के एक मोड़ पर मिल गए दोनों अल्फाज और अहसास करने लगे कुछ ऐसी बातें, वार्तालाप बन गया उनका अति खास अहसास ने कहा कुछ तूं अल्फाज से,मुझे देते हो तुम अभिव्यक्ति,रहुगा ताउम्र तुम्हारा शुक्रगुजार अल्फाज भी बोला मुस्कुरा कर मुझ से पहले स्थान आता है आपका,आप होते हो,तभी मेरी सार्थकता को किया जाता है स्वीकार आप हो तो मैं हूं आप बिन मुझे जाने कौन??? अहसास ने गले लगा कर कहा अल्फाज से, तुम ना होते तो मेरे भाव भी रह जाते मौन तुम मुझ से, मैं तुम से मुझे तो इतनी सी बात समझ में आई है हम दोनों हैं तभी तो हमने जग के आगे कहानी अंजु कुमार की सबको सुनाई है भावों को अल्फाजों का परिधान लेखनी ने ही तो पहनाया है कृपा बनी रहे मां सरस्वती की, आज दिल ने ये नगमा  गाया है

अल्फाज और अहसास

जिंदगी के एक मोड़ पर मिल गए दोनों अल्फाज और अहसास करने लगे कुछ ऐसी बातें, वार्तालाप बन गया उनका अति खास अहसास ने कहा कुछ यूं अल्फाज से,मुझे देते हो तुम अभिव्यक्ति,  रहूंगा ताउम्र तुम्हारा शुक्रगुजार अल्फाज भी बोला मुस्कुरा कर *मुझ से पहले स्थान आता है आपका* आप होते हो,तभी मेरी सार्थकता को किया जाता है स्वीकार आप हो तो मैं हूं आप बिन मुझे जाने कौन??? अहसास ने गले लगा कर कहा अल्फाज से, तुम ना होते तो मेरे भाव भी रह जाते मौन तुम मुझ से, मैं तुम से मुझे तो इतनी सी बात समझ में आई है हम दोनों हैं तभी तो हमने जग के आगे कहानी अंजु कुमार की सबको सुनाई है भावों को अल्फाजों का परिधान लेखनी ने ही तो पहनाया है कृपा बनी रहे मां सरस्वती की, आज दिल ने ये नगमा  गाया है

कटुता और मिठास

कटुता ने एक दिन कहा मिठास से,कैसे इतनी मीठी हो तुम,और कैसे सदा रहती हो मुस्काती,क्यों क्रोध नही आता तुम को कभी भी,क्यों मन की बात ज़ुबान पर नही लाती,कैसे हर पल बोलती हो तुम यह सोची समझी मधुर सी भाषा,कैसे ले देती हो तुम उदासी में भी जीने की आशा?मन्द मन्द मिठास मन से मुस्काई,फिर सोच समझ कर शब्दों को अपनी जुबान पर लायी,बहन एक मीठा बोल कर हम परायों को भी अपना बना लेते हैं, और कर कटु विवेकहीन शब्दों का प्रयोग,अपनों को भी परायों में बदल देते हैं,थोड़ा बोलो,मीठा  बोलो,वर्ना अपने लबों को ही न खोलो

सुकून और बैचैनी

सुकून और बेचैनी जब मिले किसी मोड़ पर,होने लगी दोनों में कुछ ऐसी बात,जिसे सुन कर सब ने सीखा कुछ न कुछ,उनका वार्तालाप औरों के लिए था सौगात,बेचैनी ने कहा,कैसे इतने शांत और मोहक हो तुम,आज बतलाओ मुझे इसका राज,मैं रहता हूँ सच्चे दिलों में,जहां लोभ,मोह,क्रोध और हिंसा का नही होता वास,जहां दर्द उधारे लेते हैं कुछ लोग,जहां सुख दुःख सांझे हो जाते हैं, जहां एक रोटी और चार जने हो,पर टुकड़े कर चार वो खाते हैं, माँ के आंचल में हूँ,पिता के प्रेम में हूँ,सच्ची आस्था में हूँ,मैं लेकर नही देकर खुश हो जाता हूँ,संचय में नही विश्वास है मेरा,में बाँट कर हर्षित हो जाता हूँ,मैं के स्थान पर हम को में अपने जीवन में ख़ास बनाता हूँ,यही राज है मेरे अस्तित्व का,आज ये सच्चाई मै आप सब को बताता हूँ,बेचैनी सिर्फ और सिर्फ सुकून का मुँह तकती रह गयी

बैचेनी और सुकून

बेचैनी और सुकून एक दिन बेचैनी ने कहा सुकून से हो शांत से गहरे सागर तुम, थाह तुम्हारी किसी ने न पाई। मैं नदिया के भँवर के जैसी चंचल कोई शांत,सीधी, उलझी सी राह न दी मुझे कभी दिखाई। कहा सुकून ने बेचैनी से, होता है जहाँ मोह,काम,क्रोध और भौतिक सुखों को पाने की तीव्र लालसाएँ। तुम दौड़ी सी आ जाती हो वहाँ पर, ठहराव नही दिखाई देती तुम्हे राहें।। नही ज़रूरी मैं रहूं महलों में, मुझे तो फुटपाथ भी आ जाते हैं रास। पर तुम तो कहीं भी नही टिक पाती, पूरे ब्रह्मांड में तुम्हारा नही है वास।। जिस दिन तुम्हे जीवन की सही सोच समझ मे आएगी। विलय हो जाओगी तुम उस दिन मुझमे, बेचैनी सुकून बन जाएगी।।

अहंकार और विनम्रता

Suvichar.....ahenkaar or vinamrta.......ek mod per mile jab dono,hua dono me kuch aisa vartalaap.suna jisne WO LGA sochne,mein kya kerta yun kriyaklaap.rehti ho tum DRI DRI si,mein seena taan ke rehta gun.jiski lathi,bheins ussi ki,ye aaz mein Sab se kehta hun.sun USS ki ahenkaar bhri batein,vinamrta mand mand muskaai.kyun nhi samjhe tum yugon yugon se.Jo bat muje h samaj mein aayi.raavan me tum thei,duryodhan me tum thei,gher gher mein tum ne apni jagah bnaii..mein ram me thi,kanha me thi,her paavan aatma ne mere liye bahein feilayi.sun vinamrta ki batein jeet ker bhi haar gya ahenkaar.haar ker nhi jeet gyi vinamrta,tha uska Aisa sanskaar....

सुकून और बैचैनी

सुकून और बेचैनी जब मिले किसी मोड़ पर,होने लगी दोनों में कुछ ऐसी बात,जिसे सुन कर सब ने सीखा कुछ न कुछ,उनका वार्तालाप औरों के लिए था सौगात,बेचैनी ने कहा,कैसे इतने शांत और मोहक हो तुम,आज बतलाओ मुझे इसका राज,मैं रहता हूँ सच्चे दिलों में,जहां लोभ,मोह,क्रोध और हिंसा का नही होता वास,जहां दर्द उधारे लेते हैं कुछ लोग,जहां सुख दुःख सांझे हो जाते हैं, जहां एक रोटी और चार जने हो,पर टुकड़े कर चार वो खाते हैं, माँ के आंचल में हूँ,पिता के प्रेम में हूँ,सच्ची आस्था में हूँ,मैं लेकर नही देकर खुश हो जाता हूँ,संचय में नही विश्वास है मेरा,में बाँट कर हर्षित हो जाता हूँ,मैं के स्थान पर हम को में अपने जीवन में ख़ास बनाता हूँ,यही राज है मेरे अस्तित्व का,आज ये सच्चाई मै आप सब को बताता हूँ,बेचैनी सिर्फ और सिर्फ सुकून का मुँह तकती रह गयी

अहंकार और विनम्रता

Suvichar.....ahenkaar or vinamrta.......ek mod per mile jab dono,hua dono me kuch aisa vartalaap.suna jisne WO LGA sochne,mein kya kerta yun kriyaklaap.rehti ho tum DRI DRI si,mein seena taan ke rehta gun.jiski lathi,bheins ussi ki,ye aaz mein Sab se kehta hun.sun USS ki ahenkaar bhri batein,vinamrta mand mand muskaai.kyun nhi samjhe tum yugon yugon se.Jo bat muje h samaj mein aayi.raavan me tum thei,duryodhan me tum thei,gher gher mein tum ne apni jagah bnaii..mein ram me thi,kanha me thi,her paavan aatma ne mere liye bahein feilayi.sun vinamrta ki batein jeet ker bhi haar gya ahenkaar.haar ker nhi jeet gyi vinamrta,tha uska Aisa sanskaar....

सुकून और बैचेनी((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

 और बेचैनी जब मिले किसी मोड़ पर,होने लगी दोनों में कुछ ऐसी बात,जिसे सुन कर सब ने सीखा कुछ न कुछ,उनका वार्तालाप औरों के लिए था सौगात,बेचैनी ने कहा,कैसे इतने शांत और मोहक हो तुम,आज बतलाओ मुझे इसका राज,मैं रहता हूँ सच्चे दिलों में,जहां लोभ,मोह,क्रोध और हिंसा का नही होता वास,जहां दर्द उधारे लेते हैं कुछ लोग,जहां सुख दुःख सांझे हो जाते हैं, जहां एक रोटी और चार जने हो,पर टुकड़े कर चार वो खाते हैं, माँ के आंचल में हूँ,पिता के प्रेम में हूँ,सच्ची आस्था में हूँ,मैं लेकर नही देकर खुश हो जाता हूँ,संचय में नही विश्वास है मेरा,में बाँट कर हर्षित हो जाता हूँ,मैं के स्थान पर हम को में अपने जीवन में ख़ास बनाता हूँ,यही राज है मेरे अस्तित्व का,आज ये सच्चाई मै आप सब को बताता हूँ,बेचैनी सिर्फ और सिर्फ सुकून का मुँह तकती रह गयी

ज़रूरी तो नहीं

अधिकार और जिम्मेदारी