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बाबुल तेरी वसीयत में(((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा)((

बाबुल तेरी वसीयत में, एक हिस्सा मेरा भी हो। धन दौलत की नहीं दरकार मुझे, पर एक किस्सा मेरा भी हो।। कर देना, बस नाम मेरे वे अपने कुछ बरसो पुराने खत, जो लिखे थे तुमने मुझे जब घर छोड़ हॉस्टल गई थी मैं, तुम कितने प्रेम से मुझे सब समझाते थे। मेरे उदास अधरो पर बाबा, झट मुस्कान ले आते थे।। कर देना, बस नाम मेरे वे पुराने एल्बम, जिनमे आज भी मेरे और भाई के बचपन को तुम संजोए हुए हो।वे तस्वीरें तो अतीत का वो सुनहरा दस्तावेज हैं,जो आज भी जेहन में अंकित हैं।। कर देना,बस नाम मेरे वो क्वर्नेस पर रखी आपकी और मां की बरसों पुरानी तस्वीर,जिसे देख देख बचपन जवानी में तब्दील हो गया था।। कर देना,बस नाम मेरे वे पुराने अचार वाले मर्तबान,वो मेरी छोटी गिलासी,वो मेरी पसंद की थाली,वो पीतल का गिलास। आज भी जब देती हूं दस्तक अतीत की चौखट पर,होते हो अक्सर तुम मेरे पास।। बाबा मुझे वे सब पल दे दो वसीयत में,जब सिर पर तेरा और मां का शीतल साया था। कोई भी चिंता नहीं रहती थी चित में,जो चाहा सो पाया था।। बाबा वो सुकून,वो मुस्कान, दे दो मुझे वसीयत में,जो तेरे बाद कहीं न मिल पाई। वो पल सुनहरे दे दो जब रूठ जाती थी अक्स