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भोग नहीं

Poem on artists, कलाकार by snehpremchand

जब भी किसी कला का सृजन जहाँ में जहां कहीं भी होता है, समझना ऊपरवाला, चुन उन कलाकारों को,एक प्रेमचमन सा बोता है।

कल्पना। thought by snehpremchand

किसी भी चित्त में कोई भी कल्पना जब हौले से लेती है जन्म, सृजन करता है परवरिश उसकी भाव और अल्फ़ाज़ करते हैं अपने कर्म।।

उदीप्त

उदीप्त सी हो जाती हैं भावनाएं, शब्द सृजन हेतु लगते हैं फड़फड़ाने। जब जेहन में माँ तूँ आ जाती है, मन लगता है दिल से गुनगुनाने।।