Skip to main content

Posts

Showing posts with the label योद्धा बन जाओ गिरधारी

*न बनो सारथि पार्थ के तुम*(विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा)

न बनो सारथि पार्थ के तुम, अब तो योद्धा बन आ जाओ गिरधारी। आहत है मन,व्यथित है तन, आकुल सी है कायनात ये सारी।। दे जाओ ज्ञान फिर गीता सा, सहमी और आशंकित सी है,  ये धरा सारी। बैचैनियाँ करवट बदलती हैं रात भर, शोला बन गई है चिंगारी।। न बनो सारथि पार्थ के तुम, अब तो योद्धा बन आ जाओ गिरधारी। उजड़ रहे हैं चमन बागबानों के, मुर्झा सी गई है हर फुलवारी।। बेबसी बेबस है,नयन सजल हैं मन भी है अति भारी। धुआं धुआं सा जर्रा जर्रा, अब तो आ जाओ ना गिरधारी।। कभी बुलाया था द्रौपदी ने, आज तलक है सृष्टि आभारी। वो तो एक की ही पुकार थी, अब तो बुला रही धरा ये सारी।। मामा कंस के अत्याचारों से, लोगों को मुक्त कराया था। अधर्म पर विजय हुई थी धर्म की, तूने धर्म का डंका बजाया था।। एक बार फिर करोना के कंस से, आहत है प्रजा ये सारी। तुम ही मुक्ति दिलाओ अब तो,  हे माधव,  हे गिरधारी।। न बनो सारथि पार्थ के तुम, अब तो योद्धा बन जाओ गिरधारी। नासूर सी बन कर डस रही है  निर्मम,कठोर ये वैश्विक महामारी।। फिर उठाओ सुदर्शन  इस करोना के   शिशुपाल पर, घायल है मानवता सारी। न बनो सारथि पार्थ के तुम, अब तो योद्धा बन जाओ गिरधारी