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Showing posts from November, 2022

दस्तक दिल पर(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

**अति सरल, सहज,सीधा मधुर है  हिंदी का विज्ञान** दस्तक दिल पर,धड़कन में बसेरा, जेहन मे इसके पक्के निशान।। *हिंदी कविता की गहरी सरिता* हिंदी मनोभावों का सुंदर परिधान। सरलता की सरसता से सगाई है हिंदी, बोधगम्य, सरस हिंदी,अति भाव प्रधान।। अति सरल,सहज,सीधा,मधुर है हिंदी का विज्ञान।। *हिंदी भाषी ही जब हिंदी का करते हैं अपमान* कोई और क्यों देगा फिर महता इसको?? है, आर्यवर्त का, हिंदी अभिमान। और परिचय क्या दूं हिंदी का??? हिंदी ही राष्ट्र का गौरवगान।। जो मुख मोड़ रहे हैं हिंदी से, करना उन्हें सन्मति प्रदान। हिंदी का परिष्कृत और प्रांजल रूप आए सबके सामने, सच में भाषा बड़ी महान।। अति सरल सहज सीधा मधुर है  हिंदी का विज्ञान।। *दस्तक दिल पर,धड़कन में बसेरा, जेहन मे इसके पक्के निशान* साहित्य का आदित्य है तूं, आर्यावर्त है हिंदीअभिमान। और परिचय क्या दूं तेरा, तूं ही राष्ट्र का गौरवगांन।। एकता सूत्र में बांधे है तूं, जनकल्याण का करे आह्वान। *भारत भाल की बिंदी हिंदी* सागर सी गहरी भाव प्रधान।। तेरे अस्तित्व से तो हिंदी चमक रहा है हिंदुस्तान। दस्तक दिल पर,दिमाग में बसेरा, जेहन मे इसके पक्के निशान।। *तुलसी

कर्मभूमि के रंगमंच पर(( विचार स्नेह प्रेम चंद द्वारा))

**कर्मभूमि के रंगमंच पर निभाया बखूबी आपने अपना किरदार** शेष जीवन भी अति विशेष हो आपका, हो जिंदगी खुशियों से गुलजार।। **हौले हौले शनै शनै**  दिन ये एक दिन आ ही जाता है। कार्य क्षेत्र से हो सेवा निवृत, व्यक्ति घर को आता है।। **ज्वाइनिंग से रिटायरमेंट तक**  इंसा पल पल बदलता जाता है।। जाने कितने ही *अनुभव तिलक* जिंदगी भाल पर लगाता है।। कभी खट्टे जब मीठे अनुभव, हर अहसास से गुजरता जाता है।। जीवन की इस आपाधापी में पता ही नहीं चलता,  कब आ जाता है समय रिटायरमेंट का, व्यक्ति यंत्रवत सा चलते जाता है।। **हौले हौले शनै शनै** दिन ये एक दिन आ ही जाता है।। **आप खूब चले,खूब किए कर्म*** सकारात्मक नजरिए से खटखटाए  सदा जिंदगी के द्वार।। सबसे ताल मेल बिठाया, सबको ले कर साथ चले आप हर बार।।  लबों पर सजी रही सदा मुस्कान आपके,अपनेपन के हुए आप में सदा दीदार।। *कर्मभूमि के रंग मंच पर* निभाया बखूबी आपने अपना किरदार।। शेष जीवन भी अति विशेष हो आपका, दे रहा दुआएं पूरा हिसार परिवार।। **आज घर की ओर चली घर की बागबान** अब वक्त की न होगी कोई पाबंदी,  समय की हो जाओगी धनवान।। जिंदगी की आपाधापी में क

वही मित्र है(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

मैने पूछा मित्रता से रहती हो कहां???? हौले से मुस्कुरा दी मित्रता और बोली **स्नेह,विश्वास और साथ की त्रिवेणी सतत बहती है जहां** मैने पूछा मित्रता से," कैसे होते हैं मित्र??  मित्रता ने तो एक लंबी सी फेरहिस्त बना दी और कहा **ऐसे होते हैं मित्र** **भोर होते ही जो आ जाए जेहनपीएल में,वही मित्र है**  **संवाद सुस्ता भी जाएं पर संबंध गहराते जाएं,वही मित्र है** **सहजता दामन नहीं चुराती संग जिसके, वही मित्र है** **ना गिला ना शिकवा ना शिकायत हो चित में जिसके, वही मित्र है** **अभाव का जिस पर प्रभाव न हो, वही मित्र है** **रूह की चौखट पर जो दे जाए दस्तक,वही मित्र है** **जो मात्र एक फोन कॉल की दूरी पर हो,वही मित्र है** **जीवन के अग्निपथ को जो सहजपथ बना दे,वही मित्र है** **ऊबड़ खाबड़ जिंदगी की राहों को जो समतल बना दे,वही मित्र है** **थके थके कदमों की जो झट से बन जाए बैसाखी,वही मित्र है** **जिनसे मिल कर रेगिस्तान हरे हो जाए, वही मित्र है** **खुद मझधार में होकर भी जो साहिल का पता बताए,वही मित्र है** **आहत मन को जो दे दे राहत, वही मित्र है** **दिशाहीन से जीवन को जो दिशा प्रदान करे,वही म

मैने पूछा प्रेम से

रेगिस्तान हरे हो जाते हैं

हौले हौले

दिल का दिल से

मतभेद बेशक हो पर मनभेद ना हो(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*मतभेद बेशक हो जाए पर मनभेद न हो* बहुत ही गहरा होता है  भाई बहन का नाता। *एक ही परिवेश एक ही परवरिश* बस दिल से हो इसे निभाना आता।। *किसी भी नाते को निरस्त करने से बेहतर है उसे दुरुस्त करना* बस समझ में आ जाए ये बात। गलती गलती होती है गुनाह नहीं, अपने तो होते हैं ईश्वर की सौगात।। इस ईश्वर की सौगात को बस हो सहेजना सबको आता। मतभेद बेशक हो जाए पर मनभेद न हो, बहुत गहरा होता है भाई बहन का नाता।। पहले ही खो चुके हैं *कोहिनूर घर का* अब तो एक ही माला में पिरें रहें मोती। क्यों चटक रहा है ये धागा बार बार, रफू की गुंजाइश भी हर धागे में नहीं होती।। रिश्तों की  उधडन की मां करती रहती थी समय समय पर तुरपाई। अब वो नहीं तो थामो सब अपने अपने सुई धागे,दरारों की बार बार नहीं होती भरपाई।। प्रेम पुत्र और प्रेम सुता हो!  प्रेम सीमेंट से भर दो दरारें मिल कर बहन भाई।। एक की खुशी होती है खुशी दूजे की, ये तेरे मेरे की कढ़ी किसने खिंडाई?? बड़े  संभाल लें छोटो को, छोटे भी सम्मान की धारा बहाएं ।। एक ही वृक्ष के हैं  हम फल फूल पत्ते और हरी भरी शाखाएं। विविधता है बेशक बाहरी स्वरूपों में हमारे,पर मन की एकता

तुमको देखा तो

ये अलबेले मतवाले

तूं मेरी जिंदगी है

खुशी नहीं मिलती बाहर से(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

खुशी नहीं मिलती बाहर से, खुशी है भीतर का एहसास।  कोई तो कुटिया में भी खुश है  किसी को महल भी नहीं आते रास।।   *शुक्रिया* या *शिकायत* दोनों में से हम जिसका भी करते हैं इंतखाब।  *खुशी* और *गम* का इनसे ही होता है सरल,सीधा सा स्पष्ट हिसाब।। शुक्रिया है *सच्चा मित्र*खुशी का, शिकायत है *गम की साकी* जिसने समझ ली बात ये दोनों,  फिर अधिक समझना नहीं रहता बाकी।।  खुशी *रामबाण*है जीवन का,  खुशी है सबसे खूबसूरत एहसास।  सबसे धनवान वही है जीवन में,  *संजीवनी बूटी*खुशी होती है जिसके पास।। खुशी नहीं मिलती बाहर से,  खुशी है भीतर का एहसास।  कोई तो कुटिया में भी खुश है  किसी को महल भी नहीं आते रास।।  खुशी *लेने* में नहीं *देने*में मिलती है,  लेकर तो देखो किसी के दर्द उधारे।  खुशी दे देगी दस्तक जिंदगी की चौखट पर सांझ सकारे।। **कुछ कर दरगुजर, कुछ कर दरकिनार** खुशी जिंदगी की चौखट पर, दस्तक देने को हो जाती है तैयार।। *प्यार दो प्यार लो* हटा दो चित से झूठा अहंकार जाने कब आ जाए शाम जीवन की छोड़ो ये गिले शिकवे ये तकरार।।  खुशी सच में *अनमोल निधि* है खुशी धड़कन दिल की, खुशी एक सुखद आभास। और परिचय क्या

खुशी

खुशी नहीं मिलती बाहर से, खुशी है भीतर का अहसास कोई तो कुटिया में भी खुश है किसी को महल भी नहीं आते रास शुक्रिया या शिकायत हम जिसका भी करते हैं इंतखाब खुशी और गम का इनसे ही होता है हिसाब शुक्रिया है खुशी का पड़ोसी शिकायत गम का है साकी जिसने समझ ली ये दो बातें फिर अधिक समझना नहीं रहता बाकी।। खुशी लेने में नहीं देने में।मिलती है कभी किसी के दर्द उधारे ले कर देखो खुशी महलों में ही होती तो बुद्ध जंगल में ना जाते। खुशी मनमानी में होती तो राम पिता वचन न कभी निभाते। भौतिक संसाधन आराम तो de sakte हैं पर खुशी की गारंटी नहीं दे पाते खुद खुश रहने वाले ही सदा दूजो को खुशी है दे पाते।। अंतर्मन के गलियारों में हम जब भी विचरण करने जाते हैं खुशी बैठी होती है बांह फैलाए, हम हौले हौले उसके दामन में खुद को सिमटा हुआ पाते हैं खुद की खुद से ही नहीं करा पाते मुलाकात औरों को फिर क्या जानेंगे, आत्म परिचय में ही हो जायेगा पक्षपात अज्ञान के परदे हटा कर जब ज्ञान से होता है साक्षात्कार खुशी के तो अपने आप ही हो जाते हैं सुंदर दीदार।।   खुशी फ्री में मिलती है खुशी की कोई कीमत नहीं होती खुशी के पड़ोसी हैं प्रेम, करुण

हरे पेड़ पर हरे तोते

AAZ KA VICHAR.......hre ped per hre tote hote to hein,per dikhai nhi dete,hwa hoti to h,per dikhai nhi deti,phul me khushbu hoti h,dikhai nhi deti,inko mehsus kerna padta h,aise hi ishwer h to servtr per dikhai nhi deta,inhe mehsus kerne ke liye aatma ka nirmal,pawan aur ahinsak hona bahut zruri h..........hridy me jab tak karuna nhi wo hridy hridy nhi,use kisi ki taklif dikhai nhi deti

विघ्नहर्ता गणपति गणेश

कह दिया बस कह दिया

कह दिया हमने बरस लो बादलों जितना बरस सकते हो,हमारी आँखों में अब आंसू सूख गए हैं,कह दिया हमने सागर से,ला सकते हो जो सुनामी ले आओ ,हमारी सुनामी तो आयी,और सबसे अनमोल खजाने को बहा ले गयी,कह दिया हमने परिंदों से,उड़ना है जितना उड़ लो अनंत गगन में,अब हमें तो उड़ने की ज़ुस्तज़ु ही न रही

सर्वोपरी है ग्राहक

काश समय रुक जाता (( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

 समय रुक जाता,हम तुम कभी बड़े न होते,जो होता मन में कह देते,मन होता तो हँसते,मन होता तो रोते, लड़ते,झगड़ते,पर फिर एक हो जाते,सहजता से न अपना दामन चुराते,दिलों की दहलीज पर हमको दस्तक बखूबी देना आता,सांझे सुख दुख हो जाते,साथ सदा एक दूजे का भाता,एक दूजे बिन जीना हमको काश कभी न सुहाता,औपचारिकताओं का सैलाब फिर दूरियों की सुनामी न लाता,कच्चे धागे की पक्की डोर का बड़ा पावन है भाई बहन का नाता

मन करता है

MAN KERTA H..........man kerta h ban choti si chidiya per faila ker anant gagan me udd jaun,man kerta h gribi ko amiri ki chokhat ka pta bta dun,man kerta h ahinsa aut saty ka bigul pure vishw me bja dun,man kerta h samvednheeno ko samvedna ka path pdha dun,man kerta h her masahari ko jeev ki peeda ka tnik ahsas kra dun,man kerta h her smarth ka ek asmarth se hath milwa dun.......man hi to h

पत्थर को भी कर दे सोना

अतीत के दस्तावेज

रेगिस्तान हरे हो जाते हैं

हर पल बन जाता है उत्सव

वही मित्र है

बरस पर बरस

बरस पर बरस यूँ ही बीते जाते हैं। हम हर जन्मदिवस पर खुशियों का जश्न मनाते हैं। परिवर्तशील ये समय की धारा, हम संग इसके बहते जाते हैं। दिन के पहर नही जब एक जैसे, फिर परिवर्तन से क्यों घबराते है। नियत समय के लिए बन्धु, हम अपना अपना किरदार निभाते हैं । फिर छोड़ झमेला दुनियादारी का, विदा यहाँ से हो जाते हैं। सब समझते,सब जानते हुए भी क्या हम अपना रोल सही निभाते हैं??,  जीवन का मेला चार दिनों का क्यों प्रेम से सबको अपना मीत नही बनाते है। शत शत नमन मात पिता को, जो हमको इस जग में लाते हैं। हमारे जन्म से अपनी मृत्यु तक, वो दिल मे हमे बसाते हैं।।।। दे देना मुझे अपनी दुआएँ होगा यही सबसे बड़ा उपहार। प्रेम चमन की ये डाली, करे बिनती आपसे बारम्बार।।। मैने भगवान को तो नहीं देखा पर जब जब देखा और महसूस किया आपको,लगा ईश्वर ने ले लिया हो अवतार।। क्या भूलूं क्या याद करूं मैं, मात पिता ही होते हैं संसार।। आज जन्मदिन पर फिर याद आए मुझे,शत शत नमन और वंदन आपको बार बार।।

जन्मदिन पर याद करें हम मात पिता को

 पर हम याद करें जन्म देने वाले मात पिता को,इतना तो बनता ही है,दें उनको हम सच्चे दिल से श्रद्धांजलि, इतना तो बनता ही है,उनकी कर्मठता को उतारें अपने जीवन में,इतना तो बनता ही है,उनके सोचे सपनो को साकार  करें हम,इतना तो बनता ही है,वो जो विषम हालातों में भी बहुत कुछ कर गए हमारे लिए,ये एहसास जगाये रखेंै,इतना तो बनता ही है,आज नमन करें हम उनको सच्चे दिल से,इतना तो बनता ही है

दिल से गाया पहुंचा दिल तक

धुंधले मंजर साफ हो गए(( संस्मरण स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

सात फेरों का सातवां वचन(( सरल अर्थ स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

सात फेरों का छठा वचन

सात फेरों का पांचवां जन्म(( सरल अर्थ स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

सात फेरों का चौथा वचन(( सरल अर्थ स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

सात फेरों का तीसरा वचन(( सरल अर्थ स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

सात फेरों का दूसरा वचन

सात फेरों का पहला वचन

साहित्य समाज का दर्पण(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

* हिंदी भावों का सुंदर परिधान*कविता स्नेह प्रेमचंद द्वारा

** हिंदी भावों का सुंदर परिधान** हिंदी,कविता की गहरी सरिता  हिंदी,मनोभावों का सुंदर परिधान। सरलता की सरसता से सगाई है हिंदी,  सरस,मधुर, बोधगम्य हिंदी भाव प्रधान।। हिंदी भाषी ही जब हिंदी का करते हैं अपमान।  कोई और क्यों देगा फिर महता इसको, कैसे कहेंगे भारत महान???? मां,मातृभूमि और मातृभाषा हैं,तीनों सम्मान की पूरी हकदार। एक खुशहाल राष्ट्र अपनाता है ये सत्य होता है उन्हे पूरा सरोकार।। बहुत सो लिए, अब तो जागें, हो हिंदी से हमे दिल से प्यार।। *मातृभाषा* न रह जाए कहीं  *मात्र भाषा* रखना होगा इस बात का ध्यान। जिस भाषा में आते हैं विचार चित में, उसी में पहनाएं शब्दों को प्रधान।। साहित्य का आदित्य है तूं हिंदी *आर्यवर्त का तूं अभिमान* और परिचय क्या दूं तेरा??? तूं हीं राष्ट्र का गौरवगान।। ओ हिंदी! जो मुख मोड़ रहे हैं तुझसे, उन्हें सन्मति करना प्रदान। तेरा परिष्कृत और प्रांजल रूप आए सबके सामने, सच में भाषा तूं बड़ी महान।। अभिभावक,मित्रगण और गुरुजन जब तक हिंदी को नहीं अपनाएंगे, कैसे अपेक्षा करें हम बच्चों से, उन्हें कैसे हिंदी सिखाएंगे।। गुड मॉर्निंग के स्थान पर हम सुप्रभात कब अपने अधरों पर लाएं

प्रेम सुता

**प्रेम सुता**

धन्य है कला,धन्य है कलाकार(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

साबरमती के संत(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

**रघुपति राघव राजा राम** सत्य,अहिंसा ही सच्चे धाम ऊंचे विचार पर सादा परिधान जाने सत्य सारा जहान। कर्म की स्याही से इतिहास रचने वाले बन जाते हैं अति महान।। युग आते हैं,युग जाते हैं रह जाते हैं इनके कदमों के निशान।। रघुपति राघव राजा राम क्रांति की भट्ठी,आजादी के पकवान।। काल के कपाल पर हो चिन्हित सदा के लिए,धोती,लाठी,चश्मा परिधान।।  

तरंगित है सरगम,व्यंजित हैं सुर(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

तरंगित है सरगम,व्यंजित हैं सुर **स्वर सम्राज्ञी** देखो कितनी शोभायमान।। **स्वर कोकिला** हैं अंकित हिसार की दीवारों पर,सच में हम हो गए धनवान।। *धन्य है कला और धन्य है कलाकार* कितनी बड़ी हस्ती को दे गया सुंदर सा आकार।। गायन के नभ को छू लिया लता दीदी ने,जाने ये सारा संसार।।

मुबारक मुबारक(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

मुबारक मुबारक जन्मदिन मुबारक, हो सदा आपको खुशियों के दीदार। सुख,समृद्धि और सफलता दे दस्तक   सदा आपकी चौखट पर, एक नहीं, हर बार।। कब बीत गए बरस 60 जीवन के, जेहन मे उठा है एक अजब सा सवाल। ज्वाइनिंग से सेवानिवृति का आ गया समय है, रहे आगे का समय भी खुशहाल।। अब हर शौक को करना पूरा, मिला है खुले समय का आपको उपहार। जिंदगी खूबसूरत है हर मोड़ पर, हर पड़ाव होता है अपनी ही महक से महकदार।। किरण हो आफताब सी चमकती रहना, हो *औरा* आपका यूं ही चमकदार।। आज यही दुआ है ईश्वर से, आप खुश रहो सदा, और खुश रहे आपका पूरा परिवार।। मेरी ही नहीं,पूरी *एलआईसी लवली लेडीज* की ओर से कर लेना दुआएं स्वीकार।।               दिल की कलम से

प्रेम परवाह है(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*प्रेम परवाह है प्रेम समर्पण है  और प्रेम है पूरा विश्वास* प्रेम से व्यक्ति हो जाता है सुंदर, आम से बन जाता है अति खास।। *प्रेम दोस्ती है,प्रेम ख्याल है* प्रेम है पूर्णता का सुखद आभास प्रेम देना जानता है,लेना नहीं, धनाढ्य है वो सचमुच, है प्रेम निधि जिसके पास।। मोह मोह के धागे तो उलझा देते हैं, प्रेम के धागे तो हर गिरह खोल देते हैं। मोह हमे कमजोर बनाता है, *प्रेम हमारी शक्ति है* मोह के चश्मे से सब साफ नहीं दिखता, *प्रेम से तो जग सुंदर नजर आता है* मोह की सीमाएं हैं, प्रेम किसी सरहद को नहीं जानता चाहे भाषा,मजहब,रंग, जाति,देश,प्रांत कोई भी क्यों ना हो।। यूं हीं महकता रहे सदा ओ प्रेम सुता! तेरा प्रेम भरा संसार। ढाई अक्षर प्रेम के पढ़ कर,जिंदगी हो जाती है गुलजार।।             स्नेह प्रेमचंद

मुबारक मुबारक(( दुआ स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

मलिन मनों से(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

खुशी नहीं मिलती बाहर से

खुशी नहीं मिलती बाहर से, खुशी है भीतर का अहसास। कोई तो कुटिया में भी खुश है, किसी को महल भी नहीं आते रास।। मन रहे सदा नियंत्रण में, मन का रिमोट कंट्रोल होता है हमारे ही पास। खुशी किसी हाट या बाजार में कोई मोल दे कर नहीं मिलती, सादगी खुशी की सबसे सहेली है खास।। एकदम फ्री में मिलती है खुशी, खुशी से उम्दा नहीं होता कोई अहसास।। लेने में नहीं देने में मिलती है खुशी, निर्मल चित में करती आवास।। महंगा फोन और बड़ी गाड़ी जैसी भौतिक वस्तुएं खुशी नहीं दे सकती, खुशी का तो अंतर्मन के गलियारों में  होता है वास। अधैर्य, क्रोध,गुस्सा, चिड़चिड़ापन हर विकार पर विजय हम पा सकते हैं, मन में जब प्रबल होगी प्रेम भावना और करुणा का जब नहीं होगा ह्रास।। अपनी जिंदगी की बैट्री को फुल चार्ज रखना है हमें,  ताकि चित में हो शांति का वास। पुरानी बातें और बुरे संस्कारों को पूर्णतया डिलीट करना हमे आए रास।। जैसे मोबाइल बैट्री सही रखने के लिए फालतू की अप्लीकेशन और डाटा डिलीट करने का होता है प्रावधान। ऐसे ही पुरानी बातें और बुरे संस्कार हटा दिलो दिमाग से हो जाएं सावधान।। मन का रिमोट हो बेहतर हो गर अपने ही पास। उतना