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Showing posts from January, 2023

मुबारक मुबारक जन्मदिन मुबारक(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*हर "  सफर हो जाता है आसान*            " गर तुम साथ हो" *हर समस्या का मिल जाता है समाधान*              "गर तुम साथ हो" *हर तूफान   में मांझी को मिल ही जाती है पतवार*               *गर तुम साथ हो* *हर धुंधलाया मंजर हो जाता है साफ*              "गर तुम साथ हो" *हर अग्निपथ बन जाता है सहज पथ*              "गर तुम साथ हो" *हर भूल भुलैया में मिल ही जाती है राह*                "गर तुम साथ हो" *हर पल बन जाता है उत्सव*              *गर तुम साथ हो* *हर दिन होली हर रात है दीवाली*             *गर तुम साथ हो* *हर तमस बन जाता है उजियारा*             "गर तुम साथ हो" *हर सुर को मिल जाती है सरगम*             "गर तुम साथ हो" *हर संकल्प की हो जाती है सिद्धि*             "गर तुम साथ हो" *हर रंगोली मिल जाती है इंद्रधनुष से*           "गर तुम साथ हो" *हर प्रयास को मिल जाती है उपलब्धि*           " गर तुम साथ हो" *हर इजहार को मिल जाती है अभिव्यक्ति*          "गर तुम साथ हो" मुबारक  मुबारक जन्मदिन

चंद लम्होंमे कैसे कह दूं

चंद लम्हों में कैसे कह दूं 60 बरस की अदभुत कहानी यादों का चल पड़ा काफिला जेहन मे हैं जाने कितनी निशानी।। कर्मभूमि के रंग मंच पर लम्हा लम्हा कर बीते कितने ही साल जिंदगी भाल पर लगता रहा तिलक अनुभवों का, कभी खुशी कभी गम,कभी सहजता कभी मलाल।। रहे दौर बदलते और बदले मौसम, पर बदली ना हमारी सीमा रानी चंद लफ्जों में शांत शांत सी सीमा जी,निभाती रही बखूबी आप अपना किरदार। बेटी,पत्नी,बहु,मां  शालीनता रही आपका सबसे उत्तम अलंकार।। मधुर वाणी, मधुर नजरिया, मधुर व्यवहार यही खूबियां आती हैं नजर मुझे तो आप में, दें खुशियां दस्तक सदा आपके द्वार।। हौले हौले शनै शनै दिन ये एक दिन आ ही जाता है कार्यक्षेत्र से हो निवृत इंसा लौट घर आता है।। पर जिंदगी का एक बहुत बड़ा हिस्सा व्यक्ति कार्यक्षेत्र में बिताता है। आदत सी हो जाती है एक रूटीन की,बिन उसके फिर चैन कहां आता है।। अब चैन से आगे की जिंदगी बिताना हर शौक को अपने पूरा करते जाना हो उजली हर भोर आपकी, हो हर शाम बड़ी सुहानी।। चंद लफ्जों में कैसे कह दूं 60 बरस की लंबी कहानी।।

कैसे कह दूं

हौले हौले

मैं द्वापर की द्रौपदी(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*मैं द्वापर की द्रौपदी* झांकती हूं  जब धरा पर, और देखती हूं   कलयुग में, हो जाती हूं  *स्तब्ध और परेशान* *वही सोच वही मानसिकता* नारी के लिए नहीं सुरक्षित आज भी ये विहंगम जहान।। नारी तन भूगोल के ज्ञाता हैं सब, नहीं आता समझ किसी को उसका मनोविज्ञान।। लम्हे गुजरे,युग बदले मगर कुछ भी  तो नहीं बदला *इंसान आज भी है  उतना ही हैवान* *वस्तु नहीं,व्यक्ति है नारी* क्यों नहीं समझा आज तलक शैतान?? जननी है वो तो पूरी सृष्टि की, मिले उसे तो  प्रेम,आदर और सम्मान सौ बात की एक बात है *नारी धरा पर ईश्वर का वरदान* *होती है जहां नारी की पूजा, देवता भी रमण वहां करते हैं* ऐसी बातों की ओर तो पल भर भी नहीं देता इंसा ध्यान। मैं द्वापर की द्रौपदी हो जाती हूं स्तब्ध और परेशान।। नित नित उल्लंघन हो रहा मर्यादा का, शील,संयम,शर्म,मर्यादा तो भारतीय संस्कृति की पहचान।। इतिहास दोहरा रहा है खुद को बार बार मृत्यु दंड का भी कम है इसके लिए प्रावधान।।  वक्त भी नहीं भुला पाता वे *स्याह से लम्हे*जब *दुष्ट दुशासन केश खींच मुझे भरी सभा में लाया था* *दुर्योधन ने अपनी जंघा पर मुझे बैठाने का  निर्लज्ज कथन दोहराया था*  

33 जिले राजस्थान के(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

राजसी राजस्थान(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

सबसे बड़ी दौलत परिवार

*सबसे बड़ी दौलत परिवार* मानो चाहे या ना मानो, प्रेम ही इस नाते का आधार।। धूप हो या छांव हो, संग खड़ा होता है परिवार *परवाह,प्रेम,समर्पण, ईमानदारी और विश्वाश* इन्हीं मसालों से प्रेम साग बनता है खास।। खास से अति खास के सफर का सच्ची निष्ठा से मिलता है उपहार। *कनेक्टिविटी* ही किसी भी परिवार का होता सच्चा अलंकार। *सबसे बड़ी दौलत परिवार* एक अच्छे परिवार में, जिम्मेदारी संग मिलते हैं अधिकार।। *आदि से अंत तक साथ चलता है परिवार* जिंदगी के उतार चढ़ाव में, परिवार बन जाता है पतवार।।

परछाई(विचार स्नेह स्प्रेमचंद द्वारा)

*सच में बेटी मां की परछाई* किसी को जल्दी किसी को देर से बात मगर ये समझ में आई।। शोर शोर से जीवन में, *बेटी सबसे मधुर शहनाई* कौन कहता है बेटी होती है पराई मुझे तो बेटी से अपना  कोई कहीं नहीं देता दिखाई जीवन की सांझ में  जब थके कदम हो बैसाखी बनने बेटी ही आगे आई नयन पढ़ लेती है बेटी, मौन की भाषा भी उसे समझ में आई।। *दिल पर दस्तक,जेहन मे बसेरा* नस नस में बेटी होती है समाई किसी को जल्दी,किसी को देर से बात मगर ये समझ में आई।। मात पिता के बाद, उन का अक्स बेटी में ही देता है दिखाई इजहार नहीं अनुभूति है बेटी, करुणा,प्रेम से करती है सगाई।।

मां केवल मां ही नहीं होती

मां केवल माँ नही होती, माँ होती है स्नेह और अधिकार सहजता ,उल्लास,पर्व है माँ, माँ जीवन को देती है संवार जिजीविषा है माँ,उमंग है माँ, एक माँ ही तो करती है इंतज़ार हर रिश्ते से भारी पड़ता है माँ का रिश्ता,चाहे करो या न करो स्वीकार पतंग है जीवन तो डोर है माँ, सबसे उजली भोर है माँ माँ है तो जाने का बैग भी  झट से हो जाता है तैयार अब चिढ़ाता है किसी कोने में पड़ा हुआ,नही होंगे कभी माँ के दीदार मन में तो सदा बसी रहोगी माँ, सच थी कितनी तुम समझदार भांति भांति के मोतियों से बनाया माँ तूने कितना अद्भुत  कितना प्यारा, जीने का सहारा प्रेमहार।। सब कुछ मिल सकता है इस जग में, पर मां मिलती है एक ही बार।।

लम्हा लम्हा बीते बरस पच्चीस

*लम्हा लम्हा बीते बरस 25* बन गई,ना भूली जाने वाली दास्तान* जीवन सफर होय सुहाना  संग हमसफर के, हर समस्या का मिल जाता है समाधान।।  हर स्पीड ब्रेकर पार हो जाए आसानी से, खुशियों का मिलता है इनाम।। सहजता दामन नहीं चुराती फिर चित से, जिजीविषा ओढ़े रहती है मुस्कान।। प्रेम ही आधार है इस नाते का, एक दूजे संग राहें हो जाती हैं आसान।। जोड़ी बनी रहे,मांग सजी रहे, मुस्कान यूं हीं लबों का बनी रहे परिधान।। पल पल  बदलते रूप जिंदगी के, कभी हैरान कभी परेशान। अनुभव की पाठशाला का,  हौले हौले आता है समझ विज्ञान।। हर मोड़ पर साथ रहे हमसफर का, इसी दुआ का मिले दोनों को वरदान।।             स्नेह प्रेमचंद

मुझे कुछ कहना है

*आज सच मुझे कुछ कहना है* दिल के भावों को इजहार की माला में पिरोना है। अतीत की चौखट पर जब देती हूं दस्तक,तो वो लम्हे लगते हैं झांकने, जब अमित का वजूद मेरे अस्तित्व में आया था। मेरे जीवन का सबसे खूबसूरत लम्हा, जब ईश्वर ने मुझे चिंटू की मां बनाया था।। पल पल गुजरती रही जिंदगी,जाने कितने ही अनुभवों ने जिंदगी भाल पर तिलक लगाया था।। छोटा सा चिंटू कब डॉक्टर अमित रावल बन गया,मुझे पल पल पता चला है, मैं नहीं कहूंगी कि पता ही नहीं चला।। बचपन,लड़कपन,जवानी हर अवस्था की गवाह मां ही तो होती है।।एक मां के चश्मे से देखूं तो खूबियां ही खूबियां नजर आती हैं मुझे,खामियां तो जैसे कहीं सुस्ताने चली जाती हैं अमित के विषय में।।   मुस्कान लबों पर,सुकून चेहरे पर, पानी सा पारदर्शी व्यवहार मैं क्या ये तो सब कहते हैं,प्रेम ही इसके जीवन का आधार।।

मां जाई सबसे मधुर शहनाई

मां जाई जीवन की  सबसे मधुर शहनाई किसी को जल्दी, किसी को देर से  बात ये गहरी समझ आई।। मात पिता की सुंदर छवि देती है बस उसी में दिखाई।। पीहर की चौखट पर दस्तक देती है जब ये प्यारी मां जाई जिजीविषा,ऊर्जा और उल्लास लगते हैं लेने अंगड़ाई।।

दस्तक दिल पर

**दस्तक दिल पर,जेहन मे बसेरा, चित में होते पक्के निशान** और परिचय क्या दूं अपनों का?? यहीं खूबियां अपनत्व की पहचान।। ना गिला ना शिकवा ना शिकायत कोई,मुस्कान ही होती रूह का परिधान। रोज मिलें या ना मिलें अपनों से, पर जब भी  मिलें,दिल बन जाता गुलिस्तान।। प्रेमवृक्ष का हो रहा विस्तार लम्हा लम्हा,आता है याद वो बागबान।। आती है याद वो जननी, हुए जिसके संस्कारों से हम धनवान।।

लम्हा लम्हा बीते साल

लम्हा लम्हा  देखो बीते 25 साल बने हो हिस्सा जब से  एक दूजे के जीवन का, कमाल कमाल कमाल कमाल।। हिना सा होता है ये नाता हौले हौले धानी से श्यामल हो जाता स्नेह सुमन खिल जाते हैं मन प्रांगण में,जैसे होली में होता रंगों का धमाल।। लम्हा लम्हा बीत  गए देखो 25 साल।।

अपने मिल जाते हैं जब अपनो से(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

अपने जब मिल जाते हैं अपनों से, सच में गुल खिल जाते हैं। मौसम की गर बात करें तो, रेगिस्तान हरे हो जाते हैं।।। बज उठते हैं ढोल नगाड़े, जैसे सपने सच हो जाते हैं। दूर देस से जाने कितने ही परिंदे उड़ आशियानों में आते हैं।। परिणय की इस मंगल बेला पर, वे अपने दुआओं का झोला भर के लाते हैं। उलीच देते हैं उन्हें फिर नव युगल पर, तन पुलकित और मन हर्षित हो जाते हैं।। अपने जब अपनों संग मिल जाते हैं सच में रेगिस्तान हरे हो जाते हैं।। तस्वीर मात्र नहीं ये दस्तावेज हैं यादों के,जो जेहन में,ताउम्र के लिए बस जाते हैं। लम्हों का क्या है,ये तो यूं हीं जाते और आते हैं।।            स्नेह प्रेमचंद             

परिणय की इस मंगल बेला पर(( स्नेह बुआ की कलम से))

परिणय की इस मंगल बेला पर कर लेना हमारी दुआएं स्वीकार। यही राज है चारु चितवन का, प्रेम ही इस रिश्ते का आधार।। यथार्थ यही है इस जीवन का, स्नेह ही होता है सच्चा श्रृंगार।। सुमन खिले सदा अंगना तुम्हारे, हो सुख,समृद्धि और सफलता के दीदार।।         स्नेह प्रेमचंद

जन्म से साथ है तेरा मेरा

*50 बरस का साथ है तेरा* *तूं जीवन का मधुर सवेरा* संवाद भले ही सुस्ता जाता हो, पर संबंध मां जाई! हो रहा घनेरा मतभेद बेशक हो जाता हो तुझ से, पर मनभेद का नहीं चित में अंधेरा। जो नहीं जचा वो कह दिया तुझे, *कुछ नहीं तेरा कुछ नहीं मेरा* बहुत छोटी है जिंदगी गिले शिकवों के लिए,  स्नेह सुमन का हो चित में बसेरा।। कविता लिखने के लिए कविता बनना पड़ता है, कला संगीत साहित्य का हो है चित में डेरा।।।

मुझे कुछ कहना है

*मुझे कुछ कहना है*  फिर सोचती हूं, चंदलम्हों में कैसे कह दूं  बरस 25 की लंबी कहानी??? दौर बदलते रहते हैं ,कभी सुनामी है जिंदगी और कभी है ठहरा पानी।। लम्हा लम्हा बीते बरस 25, बाबुल की राजकुमारी बनी रावलस के घर की रानी। आज सिल्वर जुबली है कभी गोल्डन फिर डायमंड जुबली मनाना,है ना ये दुआ कितनी सुहानी।। सिया सरू दो पुष्प खिले चमन में, हमारी सुमन भई अमित दीवानी।। एक दुआ है दीनबंधु ईश्वर से, यूं हीं चलती रहे ये जिंदगानी।। प्रेम लाभ मिलता रहे सदा जीवन में, हो ना कभी जीवन में तेरे प्रेम हानि।।            दिल की कलम से

मित्र सा रंगरेज

*मित्र सा रंगरेज भला कई और कौन* *पढ़ लेता है जो नयनों की भाषा और पढ़ लेता है मौन* *मित्र से बेहतर कोई इत्र कहां* *मित्र से सुंदर कोई चरित्र कहां* *मित्रता से अधिक कोई पवित्र कौन*         * कोई भी तो नहीं*

मैने तुझे चुन लिया

*दुनिया की इस भीड़ में मैने तुझे चुन लिया मित्र,  ये दोस्ती सदा निभाना* *बहुत खूबसूरत एहसास है दोस्ती* *दोस्ती से सुंदर नहीं कोई तराना* *मैं भी जानूं,तूं भी जाने* *और जाने ये सारा ज़माना* *याद करेगी कभी ये दुनिया तेरा मेरा याराना*

मैने पूछा प्रेम से

मैने पूछा प्रेम से रहते हो कहां???? हौले से मुस्कुरा दिया प्रेम बोला  रहते हैं अमित और सुमन जहां मैने पूछा सौभाग्य से रहते हो कहां????? हौले से मुस्कुरा दिया सौभाग्य बोला रहते हैं अमित और सुमन जहां मैने पूछा सुख,समृद्धि और सफलता से,  दस्तक देते हो कहां???? एक ही स्वर में बोले तीनों अमित और सुमन रहते हैं जहां

मैं हूं ना

*मैं हूं ना*  से बेहतर  कोई शब्द नहीं *मैं हूं ना* से बेहतर  कोई अहसास नहीं *मैं हूं ना* से बेहतर  कोई आश्वाशन नहीं *मैं हूं ना* से बेहतर  कोई बात नहीं।।।

प्रेमकपाट

*मैं प्रेम कपाट सदा रखूंगा खोल कर, तुम बिन दस्तक के आ जाना* यूं मत आना कि आना चाहिए था, जब दिल में उठें हिलोरें, तब दिल में रहने आ जाना। तुम मौज मैं साहिल हूं, मेरे पास ही है तुम्हें आना।। मैं हर दुख हर लूंगा तेरे, बस हौले से मुझे आवाज लगाना हर मोड़ पर संग चलूंगा तेरे, बेशक कुछ भी कहे जमाना।। *सांस सांस में बसती हो* *हिना सी जीवन में रचती हो* मैं हर राह आसान बना दूंगा सफर की, तुम मंजिल की आस लगाना बिन कहे ही समझ लेता हूं दिल की, तुम झुकी झुकी नजरें बस ऊपर  उठाना।। मैं प्रेम कपाट रखूंगा खोल कर, तुम बिन दस्तक के आ जाना।।          अमित

चार लताएं

गर तुम साथ हो

मां सबसे ठंडी छाया(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*मां जग में सबसे ठंडी छाया* *हुई बड़ी जब समझ में आया* *मां से शीतल नहीं कोई साया* *सारे जहां का सुख मैंने,  बस मां के आंचल में पाया* जिंदगी का परिचय अनुभूतियों  से कराने वाली मां, तूने ही मेरा परिचय मुझ से करवाया।। *धड़धड़ाती ट्रेन*  से तेरे अस्तित्व के आगे,  *थरथराते पुल* सा  अपना वजूद मैने पाया।। *हर जख्म का मरहम मां* मुझे तो बस इतना समझ में आया।।

कुछ कर दरगुजर,कुछ कर दरकिनार

प्रेम ही इस नाते का आधार((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*प्रेम ही इस नाते का सुंदर आधार* *प्रेम से सुंदर हो जाता है संसार* *ढाई अक्षर पढ़ प्रेम के, सोच का विहंगम हो जाता है आकार* खून का नहीं, है, ये विश्वाश और समर्पण का नाता, प्रेम ही इस नाते का आधार। प्रीत बढ़ती रहे, जिंदगी मुस्कुराती रहे ऐसा प्यारा हो परिवार।।

तेरा साथ है तो

*तेरा साथ है तो लगता सब प्यारा है* जिंदगी के इस रंगमंच पर मैं तेरी,  तूं मेरा सहारा है।। *हौले हौले कब लम्हे बदल गए बरसों में, पता ही नहीं चला* *हौले हौले जब बेटी से पत्नी,पत्नी से मां बन गई, पता ही नहीं चला* *कब जिंदगी ने ओढ़ा दुशाला जिम्मेदारियों का पता ही नहीं चला* *कब जिंदगी रेत सी मुठ्ठी से खिसकती गई, पता ही नहीं चला* *जिंदगी के मेले में मिले भी बहुत, बिछड़े भी बहुत अपने भी,ये अच्छे से पता चला* *हर धूप छांव में संग खड़े हम* *हर उतार चढ़ाव को संग सहा हमने* *सच में साथ तेरा बड़ा प्यारा है* तूं भी जाने, मैं भी जानूं,तूं मेरा मैं तेरा सहारा हूं।।

तूं मेरी जिंदगी है(( दुआ स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*तुझ को पता है मुझ को पता है* *एक दूजे की जिंदगी हैं दोनों* *दो जिस्म,एक ही जान,एक ही परिवार* *दो वंश मिले,दो सुमन खिले* *दो सपनों ने आज ही रोज किया था 25 बरस पहले श्रृंगार* *दो दूर देश के पथिको ने संग संग चलना किया था स्वीकार* *कभी आस ना टूटे,कभी साथ ना छूटे* *जीवनसाथी जीवन का सच्चा अलंकार* *रोहिल्लास,रावल्स,मित्र और बंधुओं की, कर लेना आज दुआएं स्वीकार* सुख,समृद्धि और सफलता सदा दे दस्तक आप के द्वार।। 

चलो एक बार फिर से(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*चलो एक बार फिर से*  वर्तमान की दस्तक से  अतीत की चौखट खटखटाते हैं। लम्हा दर लम्हा बीते बरस 25 कैसे?? दोनों मिल कर हिसाब लगाते हैं।। दिया ईश्वर ने बहुत कुछ हमें, उस ईश्वर का शुक्र मनाते हैं।। नातों,मित्रों से परिपूर्ण सा हुआ जीवन, उन अपनों के रंग में  खुद को रंगा हुआ पाते हैं।। अक्षरज्ञान मिला हो बेशक किताबों से, पर अनुभव ज्ञान तो जिंदगी की पाठशाला में  हो समझ  पाते हैं।।  अहसास को भी नहीं हो पाता अहसास, सपने बुनते बुनते कब लम्हे उधड़ते  जाते हैं। चलो ना एक बार फिर से खुद को खुद से मिलाते हैं।। जिंदगी की इस आपाधापी में कुछ पल सुकून के चुराते हैं।। जाड़े की गर्म धूप में, आओ ख्वाइशों को भी तपाते हैं।।

सुन मेरे मीत(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

 *सुन मेरे मीत,प्रेम की रीत* सदा निभाई है, सदा निभाना। तूं भी जाने, मैं भी जानूं प्रेम ही,सबसे मधुर तराना।। *सुन मेरे मीत,गाना वो गीत* चले थे साथ मिल कर, चलेंगे साथ मिल कर, बार बार इस को दोहराना।। मेरी सोच की सुई अटक गई है तुम पर,  इस सोच को कभी ना चटखाना।। *सुन मेरे मीत,निभाना सदा प्रीत* आता है मुझे तो बस अब नेह लगाना। लब कभी कुछ न कह पाएं तो, खामोशी की भाषा को पढ़ते जाना।। *सुन मेरे मीत,बड़ी साची तेरी प्रीत* सफर को मंजिल से हसीन बनाना। तूं भी जाने, मैं भी जानूं अहम से वयम का शंख बजाना।।

तेरे मेरे मिलन की ये रैना(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*तेरे मेरे मिलन की ये रैना, कर गई जीवन को एक दिशा प्रदान* *नई जिंदगी  नए नए सपने बने हकीकत, मिली वजूद को नई पहचान।। *रोहिल्ला से रावल तक के सफर में* किया बाबुल ने कन्यादान। आज बीत गए बरस 25 पूरे, *बड़ा विचित्र प्रेम का विज्ञान* अनुभव निभाते रहे किरदार अपना, बदला परिवेश बदला जहान। नए रिश्ते जुड़े,पुराने छूटे नहीं, नए मित्र मिले, बदला खानदान।। तुम मिले,दिल खिले, खिल गया जैसे पूरा गुलिस्तान।। सिया,सरू दो पुष्प खिले चमन में, इनकी महक से पूर्ण हुआ जहान।। तेरे मेरे मिलन की ये रैना सुहाना सफर,मंजिल आसान।। 25 बरस का मधुर सा साथ तेरा, जैसे मंदिर में घंटी,मस्जिद में अजान।। लम्हा लम्हा साया साया सा साथ रहे तुम, जैसे तन में होते हैं प्राण। पी का रंग लगा जब अंग, जिजीविषा की मिट गई थकान।। ऐसे रंगरेज से लागी लग गई अब ऐसी, सांस सांस लेती है नाम।।         स्नेह प्रेमचंद

कोई शस्त्र नहीं कोई शास्त्र नहीं

मेरा साया मेरा साया

जिंदगी के हर मोड़ पर, साथ रहे तेरा साया। सच में धनवान हो गई मैं, जब से तुम्हें मैने पाया।। खामोशी भी करने लगती हैं बातें मुझे तो यही समझ में आया।। बरस 25 कैसे बीत गए संग संग, ये सफर मंजिल से भी अधिक भाया।।

तेरा साथ है तो

*तेरा साथ है तो  सुंदर है मेरे लिए संसार* *मेरे लिए तो जिंदगी का  ये सर्वोत्तम उपहार* *खून का नहीं है,  ये समर्पण,विश्वाश  और स्नेह का नाता, प्रेम ही इस नाते का आधार* मात पिता ने बड़े प्रेम से  सौंपा मुझे तुझ को,  जिम्मेदारी संग मिले  मुझे सारे अधिकार।। *तुम ही धड़कन हो अब दिल की, हैं, तुमसे ही मेरे सोलह श्रृंगार।। क्या लेने जाऊं बाजारों में मैं, हो तुम ही मेरे सच्चे अलंकार।। धूप छांव में होते रहें तेरे दीदार काबिल ए तारीफ है मीत मेरे, तेरे कर्म और तेरा मधुर व्यवहार।। यही असली बैंक बैलेंस है मेरा, खुशी मिलती है मुझे इसमें अपार।। सोना नहीं चांदी नहीं, मुझे चाहिए बस तेरा प्यार।।

तूं हीं इंद्रधनुष जीवन का

*तूं हीं इंद्र धनुष जीवन का, तूं हीं साजन है रंगोली* *12 मास बहार है तुझ से, है तुझ से ही दीवाली होली* *हर रंग है अब जिंदगी का तुझ से मैं तो साजन अब तेरी हो ली* तन संग रूह मेरी भी आज यही बस सत्य बोली।। तूं हीं इंद्र धनुष जीवन का तूं हीं जीवन की रंगोली।। एक नहीं है, बंधन ये 7 जन्मों का, भली लागे तुझ संग ही अब हंसी ठिठोली।।  तेरी महक बसी है  अब मेरी श्वाशों में, जैसे रंगों से सजती है रंगोली।।

क्षमा मांगते हैं(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

क्षमा मांगती हूँ मैं धरा से,जो इंसान ने इतना प्रदूषण कर दिया। क्षमा मांगती हूँ मैं उन प्राणियों से,जिन्हें इंसान ने स्वादिष्ट भोजन समझ लिया।। क्षमा मांगती हूँ मैं हर उस मासूम बच्चे से,जिन्हें किताब न देकर असमय ही काम करने को मजबूर कर दिया। क्षमा मांगती हूँ मैं हर फुटपाथ पर कड़क जाड़ों और तपती धूप में सोने वालों से,जिन्हें हमने आशियाना न मुहैया कराया। क्षमा मांगती हूँ मैं हर उस नारी से,जिसका दामन समाज के बाशिंदों ने ही कलंकित किया।।

जब धड़कन धड़कन संग बतियाती है

*जब धड़कन धड़कन संग बतियाती है* * हर शब्दावली अर्थ हीन हो जाती है* फिर मौन मुखर हो जाता है, ये दिल का दिल से गहरा नाता है।। जब संवाद खत्म हो जाता है, फिर संबंध पड़ा सुस्ताता है।। हमसफर ही तो है संग जिसके, हर पथ सुगम हो जाता है।। लब वेशक कुछ बोलें या ना बोलें, नयनों से सब  समझ में आता है।। मुस्कान के पीछे छिपी उदासी प्रीतम ही देख बस पाता है।। कहने से पहले ही जाने कैसे? उसे सब समझ में आता है।। खून का तो नहीं पर सच्चे समर्पण विश्वास और प्रेम का ये गहरा नाता है।। *समय संग जैसे हिना धानी से श्यामल हो जाती है* ऐसे ही ये प्रीत मीत की निस दिन गहराती है।। *जब धड़कन धड़कन संग बतियाती है* फिर हर शब्दावली अर्थ हीन हो जाती है।।     स्नेह प्रेमचंद

मन से मन की

मन से मन की बंध जाती है जब भी ये प्रेमडोर हो जाता है जीवन सुंदर होती उजली है हर भोर मीत ही प्रीत है जीवन की, प्रेम का चहुं ओर है शोर।।

गर तुम साथ हो(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*हर खुशी हो जाती है हासिल, गर तुम साथ हो* *जिंदगी हो जाती है खूबसूरत, गर तुम साथ हो* *हर समस्या का मिल जाता है समाधान गर तुम साथ हो* *जीवनपथ बन जाता है सहज पथ गर तुम साथ हो* *हर मौज को मिल जाता है साहिल गर तुम साथ हो* *हर प्रश्न का मिल जाता है उत्तर गर तुम साथ हो* *हर जख्म को मिल जाता है मरहम गर तुम साथ हो* *हर संकल्प की हो जाती है सिद्धि गर तुम साथ हो* *हर कांटा बन जाता है सुमन गर तुम साथ हो* *हर तमस बन जाता है ज्योति, गर तुम साथ हो* हर ख्वाब बन जाता है हकीकत, गर तुम साथ हो* *हर आरजू हो जाती है पूरी, गर तुम साथ हो*

चलो ना प्रिय, प्रेमदीप जलाते हैं

चलो ना प्रिय, प्रेम दीप जलाते हैं। अपने प्रेम को हम  अमर प्रेम बनाते हैं प्रेम गंगोत्री से सच्चे  समर्पण की गंगा बहाते हैं।। अपने सफर को मंजिल से भी खूबसूरत बनाते हैं मिले राह में जो भी हमराही, उन्हें दिल से अपनाते हैं।। एक दूजे को गुण दोष  दोनों संग अपनाते हैं।। इस प्रेम दीप से हर लेंगे तमस हम, चलो ना प्रिय! उजियारे लाते हैं।। *हमसफर से बड़ा कोई साथ नहीं* आओ ना! सच्चा साथ निभाते हैं।।

बेटी मां की परछाई

*बेटी मां की होती है परछाई कौन कहता है बेटी होती है पराई?? *घर,आंगन,दहलीज है बेटी* *हर रिश्ते में सबसे अजीज है बेटी* *पर्व,उत्सव,उल्लास,तहजीब है बेटी* *जगह से बेशक दूर हो, दिल के सबसे करीब है बेटी* *सुर,सरगम,संगीत है बेटी* *शिक्षा,संस्कार, रिवाज  और रीत है बेटी* *बेटी से अपना मुझे तो  कोई देता नहीं दिखाई* सबसे प्यारा नाता है मां बेटी का, *बेटी मां की होती है परछाई* *किसी को जल्दी  किसी को देर से आ जाती है समझ  ये सच्चाई* सुनने में बेशक  अच्छा लगता है बेटा हुआ है, पर जीने में *बेटी*  सबसे मधुर शहनाई।। *धरा सा धीरज,उड़ान गगन सी, सागर सी बेटी में गहराई* *बेटे वसीयत बांटते हैं, बेटी दर्द बांटने सदा ही आई*         स्नेह प्रेमचंद

तुम हो जवाब गर मैं हूं सवाल

हौले हौले बड़े प्रेम से  *लम्हा लम्हा बीत गए  कैसे 25 साल* जिंदगी का सफर  हो जाता है आसान, गर मिल जाए कोई  तुम सा  पुर्सान ए हाल।। *मंजिल से प्यारा हो  जाता है सफर* गर हो हमसफर  तुम सा कमाल। राहें आसान हो गई  मेरी जिंदगी की, तुम्हें पाकर सच में,  मैं हो गई निहाल।। आगे का सफर भी हो  तुझ संग ही पूरा, तुम हो *जवाब*  गर मैं हूं सवाल।।               सुमन प्रेमचंद

जब धड़कन धड़कन संग बतियाती है

जब संवाद खत्म हो जाता है