*घंटे भर की दूरी पर था मेरा ननिहाल* पर कभी ना देखा मां को आते जाते अक्सर उठता था मेरे दिल में एक सवाल मां अपने ही घर जाने में क्यों लगा देती है सालों साल??? तब समझ नहीं आता था,अब समझ आता है मां के दिल का हाल मात पिता से ही होता है मायका नहीं रखता उन जैसा कोई भी ख्याल नहीं पूछता कोई मा के जैसे कितने दिन हो गए तुझे लाडो आए मेरा चित हुआ जाए बेहाल ना कोई हाथ पकड़ ले जाता भीतर हर नाते को लिया खंगाल धन भले ही बढ़ गया हो मेरा पर नातों में गरीब सी हो गई हूं रहता चित में यही मलाल नहीं रहे जब नाना नानी मां का धूलि में रम जाता बैग था पर नेहर जाने की तत्परता नहीं रखी थी पाल अब जब उम्र बढ़ने लगी है मेरी समझने लगी क्यों उदासीनता की मां चलने लगी थी चाल