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ओ रंग रेजा(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

मोहे प्रेम रंग में रंग दे रे रंगरेजा! *बेकरार जीया को आ जाए करार* अधूरी अधूरी सी पूरी हो जाऊं मैं, *सांस सांस जुड़े तोसे दिल के तार* लम्हा लम्हा करूं महसूस तुझे, *रूह पर देना दस्तक तूं बारंबार* मैं कपाट दिल के आ जाऊंगी खोलने, *जैसे राधा को,  हों शाम के मोहक दीदार* *मोह मोह* के नहीं ये धागे, है ये तो गहन प्रेम का अनंत विस्तार तुम गगन के चंद्रमा मैं तुम्हारी ज्योत्सना,यही मेरा घर संसार।। फंदा फंदा बुना तुझे प्रेम डोर से, प्रेम ही इस नाते का आधार।। प्रेम से पहले आता सम्मान है, बनाया मुझे उसका भी पूरा हकदार किस किस बात के लिए करूं मैं, उस ईश्वर का शुक्रगुजार??? हर्फ हर्फ है पढ़ा तुझे, तेरे हर स्वर हर व्यंजन से  हुई जिंदगी मेरी गुलजार।। फुर्सत के चंद लम्हों की, होती है मुझे प्रीतम दरकार।। *कुछ किया दरगुजर, कुछ किया दरकिनार* यही मूल मंत्र सफल वैवाहिक जीवन का अपनाया मैने, हर स्पीड ब्रेकर फिर कर लिया पार।। मोहे प्रेम रंग में रंग दे रंग रेजा! बेकरार जिया को आ जाए करार।। अब धड़कन धड़कन से लगी है बतियाने, कर ले माही! तूं भी स्वीकार मेरे नयनों में पढ़ लेना चाहत मेरी, हो सकता है कर नहीं

मोहे भी