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अभिव्यक्ति नहीं एहसास है मां(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*अभिव्यक्ति नहीं एहसास है मां*  *जीवन में सबसे खास है मां* *आ जाए घर कोई परेशानी,  हर संभव प्रयास है मां* *उच्चारण नहीं आचरण है मां* प्यारा संबंध,मधुर संबोधन है मां *जब सब पीछे हट जाएं तब आगे बढ़ कर आती है मां* *सफर नहीं मंजिल है मां* *हर घाव का मरहम है मां* *ख्वाब बन जाएं हमारे हकीकत बहुत कुछ कर गुजरती है मां*  *जासूस नहीं  पर सब जान लेती है मां* *शक्ल देख हरारत  पहचान लेती है मां* हमारे शौक हो जाएं सारे पूरे, *अपनी जरूरतें भी  जमींदोज कर देती है मां* *हर्फ नहीं किताब है मां* *जुगनू नहीं आफताब है मां* *जाने कितने ही समझौतों पर तिलक लगाती है मां* *अपनी हर परेशानी छिपा कर ऊपर से मुस्कुराती है मां* मैने भगवान को तो नहीं देखा पर जब जब देखा मां को मैने कोई देवी सी नजर आती है मुझे *अक्षरज्ञान भले ही ना हो मां को, पर मनोविज्ञान में पी एच डी कर लेती है मां* *हमारे सुनहरे भविष्य के लिए अपने वर्तमान को दांव पर लगाती है मां*

अरदास

अरदास

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अरदास(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कर जोड़ हम कर रहे, परमपिता से यह अरदास। मिले शांति पा की दिवंगत  आत्मा को, है प्रार्थना ही हमारा प्रयास।। शत शत नमन और भावभीनी श्रद्धांजलि पा को, वो नही हैं, हो ही नही पाता अहसास। एक ही नाम था,एक ही काम था, कितना सुखद था उनके होने का आभास।। 10बरस बीत गए, उनको हमसे बिछड़े हुए, कल की ही तो बात लगती है, आते है याद कभी हँसते हुए, कभी बिगड़े हुए।। याद आते हैं वो बाजरे की खिचड़ी बनाते हुए,वो गुड़गुड़ हुक्का बजाते हुए,वो ताशो की बाजी लगाते हुए, वो खरी खरी बात सुनाते हुए,वो मां संग चैनस की बाजी लगाते हुए,वो कुर्ते पजामे में ही ऑफिस जाते हुए,वो गेहूं की ट्रॉली लाते हुए, वो हाला के प्याले छलकाते हुए,वो अपनी जिंदगी अपने हिसाब से ही चलाते हुए,वो नौकरी की कीमत समझाते हुए,वो कभी कभी गुस्से में होठ लटकाते हुए, बहुत कुछ याद आता है। एक युग की समाप्ति हो जाती है सच जग से बाबुल जाने के बाद। कौन सी ऐसी सांझ भोर है जब उनकी ना आती हो याद। जो बीत गया है वो दौर न आएगा, इस दिल के माँ बाप के स्थान पर कोई और न आएगा।। समय पंख लग कर उड़ गया,हम लगाते ही रह गए कयास, झटका सा लगता है सोच कर ,पापा  नही हैं हमार

मायूस

तप तप सोना बनता है कुंदन(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कोशिश बागबान की thought by Sneh premchand

मंज़िल

तिलक मजबूरी का

संकल्प से सिद्धि तक Thought by Sneh Premchand

संकल्प से सिद्धि तक के सफर का प्रयास, ही तो होते हैं आधार।। येे प्रयास ही तो हैं,         जो सपनों को हमारे देते आकार।। संकल्प दृढ़ हो, हौंसले अडिग हों,         निश्चित ही सफलता के होते दीदार।। न कर्म करने से तो असफल  कर्म करना भी बेहतर है, करले है चित सत्य को स्वीकार।।

अरदास

करबद्ध हम कर रहे परमपिता से यही अरदास,मिले शांति माँ की पावन आत्मा को,है प्रार्थना ही हमारा प्रयास,आज माँ का महीना है,यूँ ही साल गुजरते जाएंगे,पर जीवन के हर मोड़ पर माँ तुझ को संग हम  पाएंगे,बिन कहे ही सब कुछ कह गयी जो,माँ तू वो लम्बी कहानी है,तेरे कर्म बने तेरा परिचय,तेरी सीरत माँ कितनी सुहानी है,माँ ही होती है जग में, जिसके आँचल में दूध और आँखों में पानी है,प्रेरणास्त्रोत रहेगा माँ तेरा जीवन,तूने सच में कुछ कर के हमे सिखाया है,नही अंतर तेरी कथनी और करनी में,माँ तेरे अक्स में प्रभु का रूप उभर कर आया है,हमारी गलतियों को क्षमा कर देना माँ तू,होता है हम को आभास,तू जहां रहे, तू शांत रहे,है प्रार्थना ही हमारा प्रयास

ओटन लगे कपास thought by sneh premchand

आये थे हरि भजन को,ओटन लगे कपास। प्रमुख को बना दिया गौण हमने, प्रमुख को पाने का सही दिशा में नही किया प्रयास।। ज़िन्दगी बीत गयी सारी, खुद की खुद से ही नही हो पाई मुलाकात। यही भय खाता रहा उम्रभर,लोग क्या कहेंगें। जिन लोगों को तनिक भी नहीं चिंता हमारी, वो हमारे जीने के सलीक़े के फार्म कैसे भरेंगे??? आयी जब समझ ये सारी कहानी, लगा,क्यों करी हमने नादानी।। रह गए यूँ ही लगाते कयास।।। आये थे हरि भजन को,ओटन लगे कपास।।

ज़रूरी है thought by snehpremchand

हर दिल में बहती है कविता की सरिता, बस इजहार ए अहसास ज़रूरी है। माखन तो निहित है दूध के भीतर ही, बस बिलोने का प्रयास ज़रूरी है।।             Snehpremchand

कला। thought by snehpremchand

कला नही जिस हृदय में,उसने ज़िन्दगी के दामन से नही कुछ सीखा लेना। खाना, पीना,सोना,कमाना मात्र ही नही है जीवन, कला,साहित्य,संगीत में खुद को खो देना।। इतेफाक नही प्रयास है ज़िन्दगी,कर्मों के धागे में इस त्रिवेणी को पड़ता है पिरोना।।         स्नेहप्रेमचंद