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Showing posts from February, 2024

किरदार

कुछ लोग जीवन में ऐसे निभा जाते हैं अपने सारे किरदार आगामी पीढ़ियां भी सीखती रहती हैं उनसे बेशुमार उच्चारण नहीं आचरण में होता है विश्वाश उनका हर बार वे कहते नहीं कर देते हैं  नहीं शब्दों में वह ताकत जो प्रकट कर पाएं उनका आभार शब्दकोश की जगह कोई भावकोश भी बना होता तो बता देती अच्छे से उनकी सोच का सार सोच कर्म परिणाम की ऐसी बहा देते हैं त्रिवेणी, उपलब्धि खटखटा ही देती है उनकी जिंदगी का द्वार संकल्प,प्रतिबद्धता,प्रयास का सार समझ आ जाता है उनको,नहीं पनपता चित में कोई विकार फर्श से अर्श का सफर तय करने के बाद भी दूर ही रहता है अहंकार और परिचय क्या दूं तेरा??? प्रेम ही रहा तेरे हर नाते का आधार कुछ करती रही दर गुजर, कुछ करती रही दर किनार सबके सुंदर तो मां जाई थे तेरे ये नायाब अलंकार *मधुर वाणी मधुर व्यवहार* हर नाते को सींचा प्रेम से तूने प्रेम सुता का निभा गई किरदार काल के कपाल पर चिन्हित हो जाते हैं कुछ लोग, शीर्ष पर है उनमें तेरा नाम शुमार कर्मठता,सहजता,जिजीविषा करुणा का अनहद नाद बजाया तूने जाने कितनी ही बार रखता है याद ऐसे लोगों को ये इतना बड़ा संसार

कभी कभी

कभी कभी नहीं अक्सर मेरे दिल में ख्याल आता है कुछ लोगों को ईश्वर कितनी फुर्सत में बनाता है इस फेरहिस्त में मां जाई! नाम तेरा शीर्ष पर आता है किसी का संवाद भला होता है किसी का भला होता है व्यवहार दोनो ही अति उत्तम रहे जिसके,नाम था अंजु कुमार

दोषारोपण

आता है आनंद मुझे

आ ही गया वो पल

मैने जब भी लिया तेरा नाम

और अधिक फिर क्या सोचना

नूर ए जिंदगी

बरस 30 की हुई मैगी हमारी

श्री राम चरित्र में हमारा निवास

लेखन मिलता नहीं बाजारों में(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

नेत्रदान महादान

खुश रहे तूं सदा

मां के सिवाय

मुस्कान के पीछे छिपी जो उदासी  देख ले, लब बेशक कुछ ना बोलें,पर जो नयनों को पढ़ ले, शक्ल देख जो पल भर में हरारत पहचान ले, अक्सर जो गणित में कमज़ोर हो,दो रोटी मांगो ,चार देती हो हमारी हजार कमियों के बाद भी हो ममता लुटाती हो, जीवन में जाने कितने ही समझौतों को बिन किसी गिले शिकवे करती हो, हमारे  हर कब,क्यों,कैसे,कितने का तत्क्षण उत्तर बन जाती हो हर संज्ञा,सर्वनाम,विशेषण का बोध करवाती हो *वो मां के सिवाय कौन हो सकता है* और परिचय क्या दूं मां तेरा????     स्नेह प्रेमचंद

प्रेम मापने का पैमाना(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

जब धड़कन धड़कन संग बतियाती है फिर हर शब्दावली अर्थ हीन हो जाती है फिर मौन मुखर हो जाता है ये दिल का दिल से नाता है मुझे तो प्रेम मापने का ये एक ही पैमाना समझ में आता है होता है जिससे प्रेम सच्चा फिर  सिर्फ नजर वो आता है अक्सर देखा है जीवन में शब्दों का स्थान भाव जीत ले जाता है हर भाव के लिए शब्दावली बनी ही नहीं,वरना जो लेखक कहना चाहता है वो श्रोता तक पहुंच नहीं  पाता है।।        स्नेह प्रेमचंद

कोई बाधा ना बन सकी बाधक