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देवदार

ऊंचे ऊंचे देवदारों के पत्तो से छन कर दिनकर की किरणें देखो धरा पर आई हैं, नाच रहे हैं धूलिकण मिल कर सारे, मानो कुदरत की बजी शहनाई है।।              स्नेह प्रेमचंद