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हर बार(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

**हर बार ** वो अपने आंसु पौंछ लेती है। कितनी भी परेशान हो भीतर से, हमारे आगे, अधरों पर मुस्कान ओढ़ लेती है। हमारे जन्म से अपनी मृत्यु तक, सिर्फ और सिर्फ हमे वो देती हैं। बदले में हमारे दो मधुर बोल  और कुछ लम्हे ही तो लेती है।। हर बार वो अपने आंसु पौंछ लेती है।। हमे मुख्य पृष्ठ पर लाने के लिए, वह खुद को पृष्ठभूमि में धकेल देती है।। हमारे सपने पूरे करने के लिए, अपनी जरूरतें समेट लेती है।। धरा से ले लेती है धीरज, उड़ान गगन से ले लेती है।। हर संज्ञा,सर्वनाम, विशेषण का बोध कराने वाली मां,  जग से जाने के बाद भी अक्सर जेहन की चौखट पर दस्तक दे देती है।। **हर दर्द का दरमा है मां** **हर समस्या का समाधान है मां हर क्यों कब कैसे कितने का तत्क्षण उत्तर दे देती है। मां को तो बना कर खुद खुदा भी हो गया होगा हैरान, लम्हा लम्हा मां बच्चे की बलैया लेती है।। और परिचय क्या दूं उसका???? वो मां एक रोटी मांगने पर मुझे दो रोटी देती है। गणित कमज़ोर है उसका थोड़ा पर वात्सलय में सबको पीछे छोड़ देती है।।         स्नेह प्रेमचंद