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आज ही के रोज

आज ही के रोज धोरा की धरा से हरियाणा में आगमन हुआ था हो बात तुम्हारे जाने की तो आंख सजल तो होनी थी,  मां जैसा साया छिन जाये ये बिटिया तो फिर रोनी थी।  कितना कुछ अब खो जायेगा, दफ्तर सूना हो जायेगा,  न हम दौडे आयेंगे न तेरा बुलावा आयेगा।  कितनी राह बतायी तुमने,जीने की कला सिखायी तुमने,  तुम्हारा नहीं कोई सानी है,तुम्हारी याद तो आनी है।  कितनी खुशियां है दी तुमने और कितने गम यूं बांटे हैं  इसमें कुछ भी झूठ नहीं हम सच सच ही बतलाते हैं।  बेसक तुम हमे भुला दो कभी पर हम तो न भुला अब पायेंगे,  ममता भरे तुम्हारे हाथ सदा ही सिर पर चाहेंगे।

याद बहुत आती है