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जिक्र

आज नहीं तो कल

आज नही कल,भुगतना पड़ता है कर्मो का परिणाम, पहले तोलो फिर बोलो,फिर न कहना क्यों हुए बदनाम।। अहंकार के चूल्हे में प्रतिशोध की ज्वाला को सतत  धधकाना नही होता ज़रूरी, किसी के रक्त से केश धो कर,आत्मा की ठंडक हो सकती है पूरी??? सोच कर्म परिणाम का जगत में बड़ा सरल सीधा सा नाता है, यह बात दूसरी है,यह सब को निभाना नही आता है।। काश द्रौपदी थोड़ा सोच कर बोलती अल्फ़ाज़, अंधे का पुत्र अंधा बोल कर बदले की आग का छेड़ दिया था सॉज।। आज भी उस सॉज की सिसकियां फिजां में देती है सुनाई, जब  भी ज़मीन दौलत पर होती हैं भाइयों में कहीं भी होती है कोई लड़ाई।। सोच कर बोलो,बोल कर मत सोचो,नही आता तो ज़ुबान को देदो विराम, वरना देर नही लगती,हो जाता है महाभारत का जगह जगह पर घमासान।। आज नही तो कल,भुगतना पड़ता है कर्मों का परिणाम।। काश पांचाली ने कभी कर्ण को स्वयंबर की सभा मे सूतपुत्र कह कर अपमानित न किया होता, इतिहास की धारा ही बदल गई होती,गांधारी का आँचल ममता से यूँ रिक्त कभी न होता।। काश द्रौपदी ने पांच पांच पतियों की पत्नी बनने का स्वीकार न किया होता फरमान, पार्थ की ब्याहता रहती बन पत्नी ही पार्थ की,जीवन उसका भी होता वरदान।। आ

त्रिवेणी

सकारात्मक

बहुत ज़रूरी है अच्छी सोच

Suvichar.....achhi soch bahut zruri h.soch se karm,karm se prinaam nirdharit hote hein.aatmvishletion bahut zruri h.Ham Jo kr rhe hein,kya WO tik h,shi galat ka aanklan kerna aana chahiye.soch ke pita sanskaar hein or ma perverish h.kya perverish soch ko shi Sikha paayi,kya sanskaar ne Jo soch ko diya WO USS ne gerhan kiya?dil or vivek ka samanjhasay bahut zruri h.dil ki beti samvedanshilta h,khin WO so to nhi gyi?jgana zruri h,shi samay per shi soch utni hi zruri h jitna zruri suraj me tej ka hona h,perkerti me beej ka bona h,shanubhuti bhi to samvedanshilta ki Behan h,WO bhi  Jane khan kho gyi? Aap sehmat hein kya?

त्रिवेणी

पाठशाला((स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

अपने जब अपनों से

तंज का रंज Thought by Sneh Prem chand

तंज का रंज

आज नहीं तो कल thought by sneh premchand

आज नही कल,भुगतना पड़ता है कर्मो का परिणाम, पहले तोलो फिर बोलो,फिर न कहना क्यों हुए बदनाम।। अहंकार के चूल्हे में प्रतिशोध की ज्वाला को सतत  धधकाना नही होता ज़रूरी, किसी के रक्त से केश धो कर,आत्मा की ठंडक हो सकती है पूरी??? सोच कर्म परिणाम का जगत में बड़ा सरल सीधा सा नाता है, यह बात दूसरी है,यह सब को निभाना नही आता है।। काश द्रौपदी थोड़ा सोच कर बोलती अल्फ़ाज़, अंधे का पुत्र अंधा बोल कर बदले की आग का छेड़ दिया था सॉज।। आज भी उस सॉज की सिसकियां फिजां में देती है सुनाई, जब  भी ज़मीन दौलत पर होती हैं भाइयों में कहीं भी होती है कोई लड़ाई।। सोच कर बोलो,बोल कर मत सोचो,नही आता तो ज़ुबान को देदो विराम, वरना देर नही लगती,हो जाता है महाभारत का जगह जगह पर घमासान।। आज नही तो कल,भुगतना पड़ता है कर्मों का परिणाम।। काश पांचाली ने कभी कर्ण को स्वयंबर की सभा मे सूतपुत्र कह कर अपमानित न किया होता, इतिहास की धारा ही बदल गई होती,गांधारी का आँचल ममता से यूँ रिक्त कभी न होता।। काश द्रौपदी ने पांच पांच पतियों की पत्नी बनने का स्वीकार न किया होता फरमान, पार्थ की ब्याहता रहती बन पत्नी ही पार्थ की,जीवन उसका भी हो