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तूं तुलसी की मानस है((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

तूँ तुलसी की मानस है, है तूँ ही तो गीता का ज्ञान। तूँ ही ईसा की बाइबल है,  और है तूँ ही तो पाक कुरान।। तू गुरु ग्रंथ साहिब है नानक का, है तूँ ही तीर्थ तूँ ही धाम।। सब जानते हैं एक ही है वो, है, सिर्फ माँ ही उसका निर्मल नाम।। तूं एहसासों की जननी है, है तूं ही अभिव्यक्ति का वरदान।। तूं सबसे मधुर संगीत है जीवन का, क्या क्या करूं तेरा गुणगान।। किस माटी से बना दिया ईश्वर ने तुझ को, कर निर्माण तेरा खुद ही हो गया होगा हैरान।। तूं धैर्य का सागर है, ममता का तुझे मिला वरदान। तूं सर्वोत्तम शिक्षक है जीवन की, सच में मां तूं बड़ी महान।। हमे हम से भी अधिक जानने वाली, पूरा जग है तेरा कद्रदान।। और परिचय क्या दूं तेरा, सच में है तूं गुणों की खान।। मैने भगवान को तो नहीं देखा, पर जब जब देखा तेरी ओर, साक्षात नजर आ गए भगवान।। तूं सबसे अनमोल खजाना  जीवन का, रहता है जो तेरे साए तले, होता वो सबसे धनवान।। शिक्षा भी तूं,संस्कार भी तूं, पर्व,उत्सव,जिजीविषा,उल्लास है तूं, ख्वाबों की हकीकत है तूं, कर्मठता बनी रही तेरा परिधान।। समय रहते जान नहीं पाते तुझे हम सच में रह जाते हैं नादान।। कहती नहीं,तूं करती है, मां कर्

*हिन्दी आर्यव्रत का अभिमान* विचार स्नेह प्रेम चंद द्वारा

साहित्य का आदित्य है तूं है आर्यव्रत का तूं अभिमान। और परिचय क्या दूं तेरा, तूं ही राष्ट्र का गौरवगान।। एकता सूत्र में बांधे है तूं, जन कल्याण का करे आह्वान।। माथे की बिंदी तूं हिंदी, सागर सी गहरी,भावप्रधान। तेरे अस्तित्व से ही तो हिंदी, चमक रहा पूरा हिंदुस्तान।। साहित्य का आदित्य है तूं, आर्य व्रत का तूं अभिमान।। दिल की निश्छल गंगोत्री से पावन गंगा सी बहती है हिंदी।। काशी के घाटों पर सुवासित सी लहरों की मधुर झंकार है हिंदी।। तुलसी की रामायण हिंदी हिन्दी ही गीता का ज्ञान।। और परिचय क्या दूं तेरा, तूं ही राष्ट्र का गौरवगाँ।। उच्चारण से आचरण तक नहीं हिंदी तेरा कोई भी सानी। सरल, सहज, सरस,सुबोध है तूं सच में भाषाओं की महारानी।। हृदय की भाषा है तूं, है हर हिन्दुस्तानी का स्वाभिमान।। और परिचय क्या दूं तेरा है तूं ही राष्ट्र का गौरवगां।। मातृ भाषा,कहीं रह न जाए मात्र भाषा, इस बात का सबको रखना होगा ध्यान। जिस भाषा में चित में विचार लेते हैं जन्म, उसी भाषा में भावों को  पहनाएं शब्दपरिधान।। साहित्य का आदित्य है तूं, आर्य व्रत का तूं अभिमान।। सागर सी गहरी तूं हिंदी, तेरा अस्तित्व ब