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मां ब्रह्मचारिणी(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*तप, त्याग, वैराग्य,संयम,सदाचार* सतत होती है इनमें वृद्धि आए जो,  मां ब्रह्मचारिणी के  सुंदर द्वार।। हर कष्ट विपत्ति हर लेती है मां, बदल जाती है सोच,बदल जाता है व्यवहार।। *नवरात्रियां हैं वो रात्रियां* जो मन के अधेरों को हर लेती है। एक मां ही तो होती है जो ताउम्र, बच्चों को सिर्फ देती ही देती है।। मां और बच्चे के नाते में  मात्र स्नेह ही तो होता है आधार। बच्चों से शुरू हो कर बच्चों पर ही, खत्म हो जाता है मां का संसार।। आज *मां ब्रह्मचारिणी* का है नवरात्रा आओ अर्थ ब्रह्मचारिणी का जानें। मां की महिमा होती है न्यारी, इस शाश्वत सत्य को दिल से मानें।। मां प्रेम की प्रकाष्ठा,  मां करती सपनों को साकार। मां से सुंदर नहीं कोई मूरत जग में, जाने ये सत्य सारा संसार।। *तप का आचरण करने वाली* ही होती है *मां ब्रह्मचारिणी* दाएं हाथ में माला,  बाएं हाथ में कमंडल बड़ा निराला।। तप तप सोना बनता है कुंदन, शिक्षा संग ज़रूरी हैं संस्कार। हर कष्ट विपत्ति हर लेती है मां, अपने बच्चों के सपने करती साकार।। *तप,त्याग,वैराग्य,संयम और सदाचार* इन सब की होती है सतत वृद्धि, मां से ही सुंदर संसार।। करता है भगत जो उपासना