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मां जाती है पर याद नहीं जाती((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

मां जाती है पर मां की याद कभी नहीं जाती। कौन सी ऐसी भोर सांझ है,जब मां की याद नहीं आती????? मां सहजता का वो आंगन है जो चित चिंता हर, सुकून जेहन को देता है। मां तो ममता का वो सागर है,जो हर नदिया को अपने भीतर समा लेता है।। मां ममता है,मां सुरक्षा है, मां सहजता है,मां क्षमता है। मां जिजीविषा,मां कर्मठता है, मां प्रेरणा है,मां दक्षता है।।  मां पर्व, उत्सव उल्लास है,  मां रीत रिवाज शिक्षा संस्कार है , मां सोच,कर्म,परिणाम है, मां ही तीर्थ मां ही चारों धाम है, मां छाया मां ही ढाल है मां कदम, मां ही कदम ताल है। मां अभिव्यक्ति मां अहसास है, मां शब्दावली,मां ही हमारा विकास है।। वो अधिक कुछ कहती नहीं,बस करती चली है जाती । जाने कितनी ही ख्वाइशों पर समझौतों के तिलक बखूबी  लगाती।। किस माटी से बना दिया खुदा ने उसको,मुझे तो आज तलक ये बात समझ नहीं आती ।। मां जाती है पर मां की याद कभी नहीं जाती।। मां तो वो मरहम है,जो हर घाव को  है सहलाती।  मां जाती है जग से,पर मां की याद नहीं जाती।। मां के बच्चे जब मां के बाद रहते हैं प्रेम से,फिर ऊपर से है वो दुआ बरसाती। हो जाता है गर उनमें वाद विवाद कोई, बन बरखा वो नि