सौहार्द और उल्लास ने सोचा एक दिन चलो कहीं चलकर जश्न मनाते हैं। होली की दहलीज लांघ कर दी दस्तक उसकी चौखट पर, फिर मिले तो ऐसे मिले सोच लिया पक्के मनसे सदा के लिए ही यहीं बस जाते हैं। तब से सौहार्द और उल्लास होली के आशियाने में हर बरस जश्न मनाते हैं।। स्नेहप्रेमचंद