आज नहीं तो कल इतिहास खुद को जरूर दोहराता है, मात-पिता का अक्स अक्सर ही बच्चों में बखूबी नजर आता है, जो देखते हैं बच्चे बड़ों में,वहीं उन्हें अपने वजूद में भी भाता है। शिक्षा संग संस्कार भी मिले संग संग,फिर धरा पर भी स्वर्ग बन जाता है। सोच कर्म और परिणाम की त्रिवेणी बहती है संग संग, होता है यह अति उत्तम, अगर सही समय पर सब को यह समझ में आ जाता है। दिल की कलम से स्नेहप्रेमचंद