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Showing posts with the label वृन्दावन की ओर

चलो ना मन(( भगति भाव स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

बांसुरी बजाने वाले हाथ वक्त पड़ने पर सुदर्शन भी चला लें,वे कृष्ण हैं अपनी परिस्थिति और अपने परिवेश को कभी ना कोसने वाले,कर्मों से भाग्य बदलने वाले कृष्ण हैं सर्व सामर्थ्यवान होते हुए भी जो महाभारत युद्ध में अर्जुन के सारथि बन पांडवों का मार्ग दर्शन करते हैं, वे कृष्ण हैं युद्ध रोकने की हर संभव कोशिश करते हुए जो शांति दूत बन मात्र 5 गांवों की पांडवों के लिए दुर्योधन से गुजारिश करते हैं,वे कृष्ण हैं मात पिता छूटे,बाल सखा छूटे,राधा छूटी,जन्मस्थान छूटा,क्या क्या नहीं छोड़ना पड़ा कृष्ण को पर कभी कर्तव्य और विवेक का दामन नहीं छोड़ा और ना ही कर्ण की भांति कभी हालत और हालातों को कोसा,निज प्रयासों से बेहतरीन करने की आजीवन कोशिश की, वे कृष्ण हैं प्रेम पाने का ही नाम नहीं है अपने और राधा के उदाहरण से प्रेम की नई परिभाषा लिखने वाले कृष्ण हैं प्रेम का इससे सुंदर कोई उदाहरण नहीं, अक्स देखती है राधा दर्पण में अपना और उसे अक्स कान्हा का नजर आता है राधा की श्वास, मीरा की भगति और रुक्मिणी का सिंदूर हैं कृष्ण देवकी का अंश,यशोदा की धड़कन हैं कृष्ण सुदामा संग मित्रता निभा कर मित्रता के सच्चे पर...

चलो मन thought by snehpremchand

चली मन,अहम से वयम की ओर, चलो मन,व्यष्टि से समष्टि की ओर, चलो मन,हो जहाँ उजली सी भोर, चलो मन वृन्दावन की ओर।।             स्नेहप्रेमचन्द