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फलसफे जिंदगी के(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

ज़िन्दगी के फलसफे समझ नही आये,कई बार अपने ही लगने लगते हैं पराये,कई बार परायों में मिल जाते है अपनेपन के साए,कोई तो बहुत दूर हो कर भी होता है मन के बहुत ही पास,कोई पास होकर भी क्यों नही बन पाता खास,अजब तराना है,अजब फ़साना है,सफर ज़िन्दगी का है अद्भुत,सब को पूरा कर के जाना है,एक दिन माटी मिल  जायेगी माटी में,जग कर देगा हमे सुपुर्द ए ख़ाक,क्या कुछ सार्थक सा हमे किया इस जग में,बनने से पहले अग्नि की राख,क्या कर्म तरु पर सत्कर्मो की बेलों को सही समय पर हम चढ़ा पाये,यही तो विचार करना है बंधू,फिर पाछे क्या होता पछताये