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पिता की सोच

कैसे poem by snehpeemchand

जैसे आंखों में सपने हों, जैसे शर्बत में हो घणी मिठास।।

प्यासे के समान। thought by snehpremchand

मां बाप के साथ रहते हुए, जो औलाद उनसे दूर दूर रहती हैं। वार्तालाप न के बराबर करती हैं, वो तो कुआँ पास होने पर भी हैं प्यासे के समान। क्यों नही समझते जिन्होंने कराया था उन्हें शब्दज्ञान, उनसे ही बातचीत करना उन्हें क्यों  करता है परेशान।।          स्नेहप्रेमचन्द