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लेखन। thought by snehpremchand

लेखन सीखना नहीं पड़ता,हां शब्द ज्ञान ज़रूरी है,सुंदर सार्थक अल्फ़ाज़ों के लिए। अहसासों की कोई किताब नहीं होती।ज़िन्दगी के अनुभवों की संतान हैं ये,कल्पनाओं की कोई सरहद नही होती, अनन्त गगन सा विस्तार अपने आँचल में समेटे है ये,हालातों के प्रति हमारी सम्वेदनाएं ही लेखन का आधार है।जब किसी विशेष परिस्थिति में खुद को रख कर देखो,सब समझ आ जाता है।हमारी समझ,सम्वेदना,अनुभव,सोच खुद ही अल्फ़ाज़ों और भावों का चयन कर लेती हैं, हमें ज़्यादा प्रयास भी नहीं करना पड़ता।सहज,सरल,स्वभाविक भावों की सरिता में कविता की नाव सुंदर अल्फ़ाज़ों की पतवार संग निर्बाध गति से बहने लगती है।यह स्वानुभूति पर आधारित सत्य है।लेखन वह भाषा है जो बोल कर नही लिख कर मन की बात कहती है।लेखन हमारी भावनाओं का वो प्रतिबिम्ब है,जो मन की हर तस्वीर को अंकित कर देता है।लेखन हृदय सागर में वो लहर है जो सारे ज़ज़्बातों को बहा कर बाहर ले आता है।लेखन वह सुर है जो सच्चे भावों की संगीत सरिता सदा बहाता है।लेखन अनन्त ब्रह्मांड में गूंजता वो अनहद नाद है जो हमारी सोच के पंखों को परवाज़ दिलाता है,तन का परिचय रूह से करवाता है।हमारी सोच के आयाम बदल देता है,सोच से ह