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Showing posts from July, 2023

आज जन्मदिन है जिनका

*आज जन्मदिन है जिनका आए उनके जीवन में सदा बहार* *एक दुआ है ईश्वर से, रहे जिंदगी उनकी यूं हीं गुलजार* *सुमन ही सुमन खिले जीवन में, मिले जीवन में खुशियां बेशुमार* *थोड़ी सी नटखट,थोड़ी सी शरारती* *पहले इंकार फिर इकरार* *कुछ कर दरगुजर,कुछ कर दरकिनार* यही मूलमंत्र है सफल जीवन का, *कर लेती हो दिल से स्वीकार* *सुख,समृद्धि और सफलता दे दस्तक जिंदगी की चौखट पर बार बार* *कभी नयन सजल न हों सखी तेरे, मुस्कान लबों का सदा करे श्रृंगार* *मित्र से इत्र महकते रहते हैं जीवन के प्रांगण में,नष्ट कर देते हैं सारे विकार* *आप खुश रहो,आबाद रहो खुश रहे आप संग आपका परिवार* *बहुत बखूबी जानती हो तुम लम्हों को कैसे बनाना है खुशगवार* *सकारात्मक सोच से यूं हीं रहना दमकती,प्रेम ही हर नाते का आधार* *जो दिल में है,वही मुख पर है पारदर्शिता भरा प्यारा व्यवहार* *आज जन्मदिन है जिनका  आए उनके जीवन में सदा बहार*

बैचेनी और सुकून

बेचैनी और सुकून एक दिन बेचैनी ने कहा सुकून से हो शांत से गहरे सागर तुम, थाह तुम्हारी किसी ने न पाई। मैं नदिया के भँवर के जैसी चंचल कोई शांत,सीधी, उलझी सी राह न दी मुझे कभी दिखाई। कहा सुकून ने बेचैनी से, होता है जहाँ मोह,काम,क्रोध और भौतिक सुखों को पाने की तीव्र लालसाएँ। तुम दौड़ी सी आ जाती हो वहाँ पर, ठहराव नही दिखाई देती तुम्हे राहें।। नही ज़रूरी मैं रहूं महलों में, मुझे तो फुटपाथ भी आ जाते हैं रास। पर तुम तो कहीं भी नही टिक पाती, पूरे ब्रह्मांड में तुम्हारा नही है वास।। जिस दिन तुम्हे जीवन की सही सोच समझ मे आएगी। विलय हो जाओगी तुम उस दिन मुझमे, बेचैनी सुकून बन जाएगी।।

साइकिल मात्र साइकिल नहीं(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*साइकिल मात्र साइकिल नहीं* *साइकिल है सेहत का खजाना* *अच्छे स्वास्थ्य की कुंजी है साइकिल* *मैं भी चलाऊं,आप भी चलाना*

पल,पहर,दिन, महीने,साल(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

**पल,पहर,दिन,महीने साल बीत कर,एक दिन ये आ ही जाता है** **कार्यक्षेत्र में कार्यकाल हो जाता है पूरा, समय अपना डंका बखूबी बजाता है** **हौले हौले अनेक अनुभव अपनी आगोश में समेटे,बरस 60 का इंसा हो जाता है*" **हो सेवा निवृत्त कार्यक्षेत्र से, कदम अगली डगर पर वो फिर बढ़ाता है** पल,पहर,दिन,महीने-------------आ ही जाता है।। **ज़िzन्दगी की आपाधापी में कई बार कोई शौक धरा रह जाता है* *जीवनपथ हो जाता है अग्निपथ, ज़िम्मेदारियों में खुद को फंसा हुआ इंसा पाता है** पर अब आयी है वो बेला, जब साथी हमारा खुशी से कार्यमुक्त हो कर अपने घर को जाता है, शेष बचे जीवन में, उत्तरदायित्व बेधड़क सहज भाव से निभाता है। पल,पहर,दिन,महीने,साल-------आ ही जाता है।। ज़िन्दगी का *स्वर्णकाल* माना हम कार्यक्षेत्र में बिता देते हैं, पर शेष बचा जीवन होता है *हीरक काल*यह क्यों समझ नही लेते हैं।। *सेवानिवृत्त होने का तातपर्य कभी नही होता, क्रियाकलापों पर पूर्णविराम* किसी अभिनव पहल, या दबे शौक को बाहर आने का मिल सकता है काम।। यादों के झरोखों से जब झांकोगे,तो जाने कितने अनुभव अहसासों को पा जाओगे, कितनो को ही न जाने मिली ही न होगी अभि

चलो मन

चलो मन वृन्दावन की ओर प्रेम का रस जहाँ छलके है माँ की ममता जहाँ महके है। चिड़ियों से आंगन चहके है। सदभाव जहाँ डाले है डेरा न कुछ तेरा,न कुछ मेरा आती समझ जिसको जहाँ ये ऐसे घाट की ओर। जहाँ जात पात का भेद नही है मज़हब की जहाँ हो न लड़ाई ऐसी वसुंधरा क्यों न बनाई हो जाये मनवा विभोर।

दोषारोपण

आइना

आईने में हमारा शारीरिक प्रतिबिम्ब नज़र आता है, मन का प्रतिबिंब तो बस रूह को ही भाता है।। चित्रकार को विधाता शायद फुर्सत में ही बनाता है, कुदरत की सृष्टि को उकेरने की कोशिश वो अक्सर करता हुआ नजर आता है।।

मां की परिभाषा

माँ एक ऐसी किताब है जिसका हर पन्ना आसानी से समझ आ जाता है। माँ ऐसी कविता है जो सब गया सकते हैं। माँ ऐसी कहानी है जो रोचक ,ममतापूर्ण और पूर्ण है। माँ एक ऐसा पाठ है जो ज़िन्दगी की  पाठशाला में सबसे पहले पढते है और ताउम्र चलता है। माँ ऐसा साहित्य है जिसके आदित्य की रोशनी से सारा जग नहाया है। जिसे पूरा संसार पढ़ता है जो हर युग,हर काल मे प्रासंगिक है। यह साहित्य समयातीत है।

दे साथ लेखनी

दे साथ लेखनी,कुछ लिखेंगे ऐसा जो करेगा जननी को श्रद्धांजलि का काम। एक बिना ही जग लगता है सूना माँ है ईश्वर का ही दूसरा नाम।। वो कितनी अच्छी थी, वो कितनी प्यारी थी, वो हंसती थी वो हंसाती थी कभी शिकन  अपने चेहरे पर भूल से भी न लाती थी। बहुत परेशान होती थी जब तब बस माँ चुप हो जाती थी। न गिला,न शिकवा,न शिकायत कोई ऐसी माँ को शत शत हो परनाम। दे साथ लेखनी,कुछ लिखेंगे ऐसा करेगा जो जननी को श्रद्धांजलि का काम। भोर देखी ,न दिन देखा न रात देखी,न देखी शाम। घड़ी की सुइयों जैसी चलती रही सतत वो फिर एक दिन ज़िन्दगी को लग गया विराम। वो आज भी हर अहसास में जिंदा है बाद महसूस करने की नज़र चाहिए। है जीवन माँ का एक प्रेरणा बस प्रेरित हिने की फितरत चाहिए।। रोम रोम माँ ऋणि है तेरा ज़र्रा ज़र्रा करता है तुझे सलाम।।

नहीं चलेगा

रक्तदान है महादान(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

मैने पूछा इंसानियत से रहती हो कहां?????? हौले से मुस्कुरा दी इंसानियत  और बोली *रक्तदान होता है जहां*

मांसाहारी जी पाती

माँसाहारी की पाती प्रकृति ने दिए हैं हमें खाने को जाने कितने उपहार। फिर भी क्यों चलाते हो निर्दोष,मूक पशु,पक्षियों पर निर्मम कटार। ज़रा सी गर्म हवा रोटी की लगती है सोचो कैसे निकल जाती है जान। हमे क्यों भून भून कर खाते हो, क्या सच मे हो तुम नेक इन्सान।। आज एक विनती करते हैं तुमसे खुद को हमारी जगह पर रख कर देखो कितना निर्मम लगेगा मानव, थोड़ा अनुमान लगा कर देखो।। आये हैं तो जाना है फिर क्यों पाप का बोझ उठाना है। सात्विक भोजन को अपनाकर ,क्यों जीवन हमारा नही बचाते हो। बेबसी,दर्द,पीड़ा,क्रोध, नाराजगी इन सब भावों की काहे प्लेट सजाते हो।

माधव,मोहन,गिरिधर, नागर,नंदलाला,गिरधारी(( स्नेह प्रेमचंद द्वारा,कान्हा तस्वीर बिटिया ऐना द्वारा)(

*माधव,मोहन,गिरिधर,नागर नंदलाला,गिरधारी* *मोर मुकुट तोहे सिर पर सोहे, अधरों पर मुरली प्यारी* *मोहिनी मूरत,सांवली सूरत, कृष्णा कृष्णा मदन मुरारी* *आनंदकंद,मुकुंद,मनोहर श्याम,मदन,कंसारी* *सबका मन मोहने वाले हो, कृष्ण,हरि,असुरारी* *माधव मोहन गिरिधर नागर नंदलाला गिरधारी* *मोहिनी मूरत,सांवली सूरत कृष्णा कृष्णा मदन मुरारी* राधा कृष्ण है कृष्ण राधा है जाने जग के सब नर नारी राधा ने देखा जब अक्स दर्पण में आए नजर उसे माधव गिरधारी हुआ चीर हरण जब पांचाली का, आए दौड़ेमोहन,मदन,मनोहर,मुरारी चीर बढ़ाया,लाज बचाई, कृष्णा कृष्णा हरे मुरारी भोग की वस्तु नहीं, सम्मान की अधिकारी है नारी यही संदेश दिया पूरे जग को, मान रही कायनात ये सारी मोहिनी मूरत,सांवली सूरत कृष्णा कृष्णा हरे मुरारी *क्या क्या ना छूटा तुमसे गोविंद, जाने ये दुनिया सारी* *मात पिता छूटे,बाल सखा छूटे, छूटी राधा प्यारी* *पर छोड़ा ना तुमने साथ धर्म का,  मदन,मनोहर,दामोदर अघहारी* *माधव,मोहन, गिरिधर,नागर नंदलाला,गिरधारी मोहिनी मूरत,सांवली सूरत कृष्णा कृष्णा मदन मुरारी* *गोविंद,गोपाल,गोपेश,गिरधर मधुसूदन,चक्रधारी* *राधा कृष्ण ह

श्री कृष्ण नाम

*भगवान् श्री कृष्ण जी के 51 नाम और उन के अर्थ:.....* *1 कृष्ण* : सब को अपनी ओर आकर्षित करने वाला.। **** *2 गिरिधर*: गिरी: पर्वत ,धर: धारण करने वाला। अर्थात गोवर्धन पर्वत को उठाने वाले। **** *3 मुरलीधर*: मुरली को धारण करने वाले। **** *4 पीताम्बर धारी*: पीत :पिला, अम्बर:वस्त्र। जिस ने पिले वस्त्रों को धारण किया हुआ है। **** *5 मधुसूदन:* मधु नामक दैत्य को मारने वाले। **** *6 यशोदा या देवकी नंदन*: यशोदा और देवकी को खुश करने वाला पुत्र। **** *7 गोपाल*: गौओं का या पृथ्वी का पालन करने वाला। **** *8 गोविन्द*: गौओं का रक्षक। **** *9 आनंद कंद:* आनंद की राशि देंने वाला। **** *10 कुञ्ज बिहारी*: कुंज नामक गली में विहार करने वाला। **** *11 चक्रधारी*: जिस ने सुदर्शन चक्र या ज्ञान चक्र या शक्ति चक्र को धारण किया हुआ है। **** *12 श्याम*: सांवले रंग वाला। **** *13 माधव:* माया के पति। **** *14 मुरारी:* मुर नामक दैत्य के शत्रु। **** *15 असुरारी*: असुरों के शत्रु। **** *16 बनवारी*: वनो में विहार करने वाले। **** *17 मुकुंद*: जिन के पास निधियाँ है। **** *18 योगीश्वर*: योगियों के ईश्वर या मालिक। **** *19 गोपे

क्यों नहीं फटा धरा का हिया(( उदगार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

 क्यों नहीं फटा धरा का हिया क्यों नहीं अनंत गगन डोला?? *फिर हुआ चीर हरण  किसी द्रौपदी का* *फिर किसी दुशासन ने  किसी द्रौपदी का चीर है खोला?? *मणिपुर घटना* से देश हुआ है आहत और शर्मसार सोच से भी नहीं सोचा जाता कैसे कर सकता है कोई इतना अमानवीय व्यवहार???? क्यों नहीं फटा धरा का हिया, क्यों नहीं अनंत गगन डोला? फिर मलिन हुआ आंचल किसी बाला का, क्यों सभ्य होने का ओढ़ा है  लोगों ने चोला?? *फिर सब बने द्रोण और भीष्म* क्यों खून किसी का नहीं खौला?? भीड़ के भेड़ियों ने कैसे  दो महिलाओं को निर्वस्त्र घुमाया? मैतई, कुकी या हो फिर कोई भी समुदाय,क्यों अंतरात्मा ने मंथन का बिगुल नहीं बजाया???  *फिर रुग्ण हुई संकुचित सोच, फिर कामुकता मर्यादा पर हुई हावी* ऐसी ही घटती रही गर घटनाएं कैसा भारत होगा भावी???? ऐसे मापदंडों को क्या कभी आपने अपने दिल से है तोला??? मूक बधिर से इस समाज ने क्यों अपना मुख वहां नहीं खोला?? *सजा ए मौत* भी कम है इस दुष्कर्म के लिए, *इस शर्म सार घटना ने फिज़ा ने जहर है घोला* क्यों नहीं फटा धरा का जिया क्यों नहीं अनंत गगन डोला??? *पुरुष बने रहे धृतराष्ट्र , नारियां बनी रह

वक्त की धूलि

वक्त की धूलि तले बेशक तेरी यादें लोगों के जेहन में धूमिल हो जाएंगी पर मैं न भूलूंगी वो लम्हे जो संग बिताए तेरे,खामोशी शोर मचाएगी ये वक्त के हाथ से कैसे फिसल गया लम्हा कोई,जो तूं हमसे जुदा हो गई जिंदगी लंबी भले ही ना मिली हो तुझे,

उठ लेखनी

उठ लेखनी आज कुछ नए काम को देंगे अंजाम। जननी के बारे में कुछ लिख करजग देंगे आवाम। वो रुकती नही,वो थकती नही,चलते रहना उसका काम। न गिला,न शिकवा,न शिकायत कोई,न देखती भोर,न देखती शाम।। किस माटी से ऊपरवाले ने कर दिया होगा माँ का निर्माण। बहुत ही अच्छे मूढ़ में हीग शायद उसदिन भी भगवान। हम भला करें,हम बुरा करें,कभी नही देती इस बात पर ध्यान। बस हमारा बुरा कभी न होने पाए,इस कोशिश में लगा देती है दिलो जान। एक अक्षर के छोटे से शब्द में सिमटा  हुआ है पूरा जहान। न कोई था,न कोई है,माँ से बढ़ कर बड़ा महान।। सच मे एक माँ ही तो होती है गुणों की खान। माँ से घर है,माँ से जहाँ है,माँ से ही घर बनता है मकान।। उठ लेखनी आज कुछ ऐसे काम को देंगे अंजाम। जननी स्वर्ग से भी बढ़ कर है,हो सबको इस सत्य की पहचान।।

कोई औचित्य नहीं

बांवरा मन(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

बांवरा मन पलक  झपकते ही जाने कहाँ कहाँ चला जाए, मन की गति पवन की गति से भी तेज है,बैरी मनवा इसे समझ न पाए।। सोचा जो भी मन ने,कर्म में बदला, कर्म परिणाम में हुए तबदील, मन को शिक्षित ही नही संस्कारित करना भी है ज़रूरी,संस्कार ही होता मन का वकील।। निषेध के प्रति सदा आकर्षित होता है मन, चाहता है करना सदा मनचाही, मन जब नही सुनता दिमाग की,आ जाती है बड़ी  तबाही।। मन के हारे हार है,मन के जीते जीत आज की नही,युगों युगों से  है ये चलती आयी रीत।। पुरानी यादों के भंवर में अक्सर, बांवरा मन खो जाता है, होता है जो परमप्रिय हमे, वो अक्सर याद आ जाता है।। संवेदना और संस्कार का टीका, मन के मस्तक पर लगाना है बहुत ज़रूरी, बहुधा दबानी पड़ती है इच्छाएँ मन की, वरना रिश्तों में आ जाती है दूरी।। बांवरा मन अक्सर सच का ही देता है साथ, मन की न सुन कर बन जाता है बनावटी सा  इंसा,मन को अक्सर थामना पड़ता है विवेक का हाथ।। सब को पता है, सब समझते हैं,फिर भी भूलभुलैया में मन उलझ उलझ सा जाए, समस्या का जब नही मिलता समाधान, अश्रु नयनों से नीर बहाए।।          स्नेहप्रेमचंद

एक कमरा उसका भी हो(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*एक कमरा उसका भी हो, है वो भी इसी अंगना की कली प्यारी* *यहीं फला फूला था बचपन उसका, अब कैसे मान लिया उसे न्यारी* नए रिश्तों से जुड़कर उसके जीवन के  अध्याय बदल जाते हैं, बहुत कुछ छिपा दिल के भीतर, लब उसके   मुस्कुराते है।। हर गम हर खुशी में होती है पूरी उसकी भागीदारी, बीता समय तो कैसे मान लिया उसे न्यारी।। *अम्मा बाबुल के सपनो ने जब ली प्रेमभरी अँगड़ाई थी तब ही तो लाडो बिटिया इस दुनिया मे आयी थी* *एक ही चमन के कली पुष्प तो, होते हैं सगे बहन भाई फिर सब कुछ बेटों को सौंप मात पिता ने, मानो अपनी ज़िम्मेदारी निभाई* मिले न गर ससुराल भला उसे, हो जाएगी न वो दुखियारी, एक कमरा तो उसका भी बनता है, है मात पिता की वो हितकारी।। कभी न भूले कोई कभी भी, थी वो भी इसी अंगना की कली प्यारी।। हर आहट पर मात पिता की, रानी बिटिया दौड़ कर आती है, कभी कुछ नही कहती मन का लाडो, बस चैन मात पिता के आंचल में पाती है।। एक दिन चुपचाप विदा होकर, वो अंगना किसी और का ही सजाती है। माना हो जाती है गृहस्वामिनी और पूरे घर पर उसका ही आधिपत्य होता है, पर पीहर से क्यों उखड़े जड़ उसकी पूरी ही, ये मलाल हर बेटी के दिल मे होता

अधर हैं कान्हा( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा)

शब्द हैं कान्हा,तो लेखनी हूँ मैं नयन हैं कान्हा,तो नूर हूँ मैं।। अधर हैं कान्हा,तो मुरली हूँ मैं मांग है कान्हा,तो सिंदूर हूँ मैं। मीत हैं कान्हा,तो प्रीत हुन मैं संगीत हैं कान्हा,तो गीत हूँ मैं। माखन है कान्हा,तो मधानी हुन मैं राजा है कान्हा,तो रानी हूँ मैं.। ग्वाला है कान्हा,तो गैया हूँ मैं ममता है कान्हा,तो मैया हूँ मैं। मन्ज़िल है कान्हा,तो राह हूँ मैं कशिश है कान्हा,तो चाह हूँ मैं। लक्ष्य है कान्हा ,तो प्रयास हूँ मैं अपने कान्हा के लिए,सच मे खास हूँ मैं।।

राधा से जब पूछा किसी ने(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

शब्द हैं कान्हा,तो लेखनी हूँ मैं नयन हैं कान्हा,तो नूर हूँ मैं अधर हैं कान्हा,तो मुरली हूँ मैं मांग है कान्हा,तो सिंदूर हूँ मैं। मीत हैं कान्हा,तो प्रीत हुन मैं संगीत हैं कान्हा,तो गीत हूँ मैं। माखन है कान्हा,तो मधानी हुन मैं राजा है कान्हा,तो रानी हूँ मैं.। ग्वाला है कान्हा,तो गैया हूँ मैं ममता है कान्हा,तो मैया हूँ मैं। मन्ज़िल है कान्हा,तो राह हूँ मैं कशिश है कान्हा,तो चाह हूँ मैं। लक्ष्य है कान्हा ,तो प्रयास हूँ मैं अपने कान्हा के लिए,सच मे खास हूँ मैं।।

देखो आई घड़ी भात की( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा)?

देखो आई घड़ी भात की, मां जाए खड़े मेरे द्वार मेरे नैना सजल हो गए, *देख पीहर का परिवार* हे री! जल्दी से जाओ री, कोई लाओ सुमन का हार बड़ी शुभ बेला है ये, है सारा समा खुशगवार कित ठाऊं बिठाऊं मैं?? बड़े प्यारे हैं इनके दीदार देखो आई घड़ी भात की, मां जाए खड़े मेरे द्वार।। भाभी संग में आई हैं, जैसे सावन में आए फुहार।। मेरे बाबुल,मेरी मां भी है *जैसे ईश्वर का हों अवतार* हो गई आज पूर्ण सी मैं, *देख प्यारा सा ये परिवार* देखो आई घड़ी भात की, मां जाए खड़े मेरे द्वार  मेरे चित में सुमन से खिले जैसे बागों में आई बहार___२ आज उड़ उड़ सी जाऊं मैं, और कर लूं सोलह श्रृंगार____२ आए सज के भतीजे भी हैं करूं स्वागत मैं बार बार मेरी प्यारी भतीजी भी है जैसे हो कोई शीतल फुहार देखो आई घड़ी भात की मां जाए खड़े मेरे द्वार रोली चावल लाओ री, करूं मैं तिलक का श्रृंगार मैने चोक पुराया है और मंगल गाया है सब मिल जुल गाओ री, मां जाए खड़े मेरे द्वार मोहे चुनरी उढाओ री, मेरे नेहर की ठंडी फुहार मोहे टीका लगाओ री, चित में उमड़ा है कितना प्यार__२ आज सबकी दुआएं मिलें, यही सबसे बड़ा उपहार हाथ सिर पे हो बाबुल का, मां के साए में

स्नेह सुमन

स्नेह सुमन

अनुपम रचना

अनुपम रचना

कुदरत की अनुपम रचना

छोटी छोटी बातें

छोटी छोटी बातों से नाराज़ होकर ज़िम्मेदारियों से पीछा छुड़ाना बहुत आसान है। बड़ी बड़ी बातों को भी नज़रअंदाज़ कर,हर रिश्ते को बखूबी निभाना बहुत मुश्किल है।। कमज़ोर लोग पहला विकल्प चुनते हैं,प्रेमी लोग दूसरा।।

मुबारक हो जन्मदिन

जन्मदिन पर जन्म देने वाली याद आ ही जाती है, अपनी जाने कितनी इच्छाएं दबा कर,हमारी हर खुशी को कर पूरा, मुस्कान हमारे लबों पर लाती है।। आज बरस 59 का हुआ है तूं, हर मां अपने जिगर के टुकड़े को शतक लगवाना चाहती है।। भूख अगर हमे लगती है तो वो तत्क्ष्ण रोटी बन जाती है।। और कोई नही मेरे दोस्तों, *वही तो माँ कहलाती है* हमारी कितनी ही कमियों को कर नज़रंदाज़ हमे अपने चित्त में बसाती है।। शक्ल देख हरारत पहचानने वाली मां हर संज्ञा,सर्वनाम,विशेषण का बोध करवाती है।।। समय बेशक बीता जाए, पर वो याद आ ही जाती है, और अधिक कुछ नही कहना,  बस उसके न होने से सहजता जीवन से दामन चुराती है।। ईश्वर का पर्याय है माँ, अपनी जान पर खेल कर हमें जग में लाती है।। *कोई और नहीं,कोई छोर नहीं सच में मां जैसे कोई और नहीं* हौले हौले समझ में आती है।। बच्चे संग मां भी होती है अधिकारी बधाई की, मां तो मुझे ईश्वर के समकक्ष नजर आती है।। मुझे इतना आता है समझ में, मां सच में जग से जा कर भी कहीं नहीं जाती है।। वो जिंदा रहती है सदा हमारे अचार,व्यवहार में मां जैसा नहीं होगा कोई दूजा, देख लो चाहे पूरे संसार में।। कहती नहीं वो कर

सबसे न्यारा सबसे प्यारा नाता यही h

कड़वा है मगर सच है

तूं मेरी जिंदगी है

जन्मदिन मुबारक हो प्रिय

मां भी बधाई की हकदार

आती है जब कोई बाढ़ सुनामी(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

बहन से प्यारा नहीं कोई नाता

दिल का दिल से नाता(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

हर *संवाद और संबोधन* का होता है अर्थ, लफ्ज से अधिक लहजा कह जाता है। मुलाकात भले ही छोटी हो,पर छोटी सी मुलाकात में बात बड़ी हो, तो मिलन सार्थक कहलाता है।। प्रेम की केवल एक शर्त है प्रेम से पहले हो *सम्मान* चित में, फिर प्रेम खुद ही दौड़ा आता है।। प्रेम से नजर नहीं बदल जाता है नजरिया भी, प्रेम से जग सुंदर हो जाता है।। प्रेम किसी मजहब,भाषा, जाति,स्थान का मोहताज नहीं, प्रेम तो आंखों की भाषा बखूबी पढ़ पाता है।। प्रेम तो वो सागर है जहां हर विकार सद्गुण बन जाता है।। प्रेम अनुभूति है इजहार नहीं, हौले हौले समझ में आता है।। प्रेम तो वो *अनहद नाद* है जो इस कायनात में हर जीव समझ पाता है। प्रेम के बड़े ही सरल हैं सारे स्वर और व्यंजन, प्रेम की किताब का हर हर्फ चित अपमें घर कर जाता है।। ढाई अक्षर पढ़ कर प्रेम के, व्यक्तित्व पूर्ण हो जाता है।। प्रेम तो वह मयखाना है जहां बिन हाला के ही सरूर आ जाता है।। प्रेम के रंग में रंग देता है जो रंगरेज हमें,फिर दिल उसका हो जाता है।। मुझे तो प्रेम का यही स्वरूप समझ में आता है।। प्रेम तन का मिलन नहीं,रूह का रूह से गहरा नाता है।। प्रेम में पड़ा व्यक्ति अहम से वयम बन

धीरे धीरे

like mother

There is no other,like a mother Whether sister or brother. For the questions of life, She is the most suitable answer.. For harsh moments of life, She is the only best smoother. To fulfill our unlimited desires, She becomes Helicopter. She is not only our mother, She is our first teacher. When things are scattered in life, Mother is the best manager. She only cries,when she is in anger. She never curses,always there is blessings  shower. She  is never slow,always she is faster For our betterment,her wits are always sharper. For the destiny of child,she is the best writer. When we forget our ways,she is the best reminder. In our life,she is remarkable highlighter. It is very true,no doubt, There is no other,like a mother, Whether sister or brother. .

NO other like mother

There is no other,like a mother Whether sister or brother. For the questions of life, She is the most suitable answer.. For harsh moments of life, She is the only best smoother. To fulfill our unlimited desires, She becomes Helicopter. She is not only our mother, She is our first teacher. When things are scattered in life, Mother is the best manager. She only cries,when she is in anger. She never curses,always there is blessings  shower. She  is never slow,always she is faster For our betterment,her wits are always sharper. For the destiny of child,she is the best writer. When we forget our ways,she is the best reminder. In our life,she is remarkable highlighter. It is very true,no doubt, There is no other,like a mother, Whether sister or brother. .

उजली भोर सी

एक नहीं दो घरों को रोशन करती हैं(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

ये वक्त के हाथ से

ऐसे होते हैं मात पिता

मायने रखता है व्यवहार

मां की चिट्ठी

पुत्र

प्रेम और करुणा विवाह के सूत्र में बंध गए,उनके जो संतान हुई ,जानिए,पुत्र हुए--सौहार्द,विनय,सहज,भाईचारा,अनुराग,सब बड़े प्यार से संग संग रहते थे,आज भी साथ ही रह रहे हैं। पुत्रियाँ हुई---स्नेह,दया,संतोष,विनम्रता,सहनशीलता,आज भी सारे भी बहन एक ही छत के नीचे अपने माता पिता की शीतल छाया में प्रेमनिवास में रहते हैं।

प्रेम और करुणा

प्रेम और करुणा विवाह के सूत्र में बंध गए,उनके जो संतान हुई ,जानिए,पुत्र हुए--सौहार्द,विनय,सहज,भाईचारा,अनुराग,सब बड़े प्यार से संग संग रहते थे,आज भी साथ ही रह रहे हैं। पुत्रियाँ हुई---स्नेह,दया,संतोष,विनम्रता,सहनशीलता,आज भी सारे भी बहन एक ही छत के नीचे अपने माता पिता की शीतल छाया में प्रेमनिवास में रहते हैं।

मां की चिट्ठी

तुरपाई

रिश्तों की उड़दन की माँ करती रहती है  तुरपाई,कर्म की स्याही से  मेहनत की बही माँ ने अपने सतत श्रम से बनाई,पर इसे कहें विडम्बना या दुर्भागय, बच्चों को यह पढ़नी नही आयी

सावन भादों

मां की चिट्ठी

मां की चिट्ठी

बहुत कुछ खाते हैं

जब हम किसी जीव को खाते हैं मात्र जीव ही नहीं और भी बहुत कुछ खाते हैं।जीव की बेबसी,उसका दर्द,उसकी बेचैनी,उसकी बददुआ, उसका क्रोध और उसका आक्रोश।जैसे समोसे के साथ चटनी मिलती है ये जीव के साथ कि सौग़ात हैं, इन्हें भी संग कबूल करना होगा।

कभी न रुकना

मां की चिट्ठी

त्याग जरूरी है

सुविचार,,,,,,यदि हमारे सम्बंधी ,मित्र अधर्म और अनीति की राह पर चल पडें,सम झाने पर भी न समझे,अपनी गलती का अहसास न करें,पापाचार जारी रखे,तो उनका त्याग कर देना ही सही है,अधर्म और अनीति पर चलने वाले रावण को जब विभीषण समझाने का प्रयास करता है, तो रावण उसको लंका से निकाल देता है,इस समय विभिषणधर्म  और सत्य की राह पर चलने वाले राम की शरण में चला जाता है भले ही राम उसके भाई का शत्रु होता है विभीषण अपने उस सगे भाई को त्याग कर रघु नंदन राम की शरण आ जाता है,कांटा पाँव में चुभे,तो निकलना ही सही है,आप को क्या  लगता है?

प्राणायाम के लाभ(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

**प्राणायाम के लाभ** *वात पित्त कफ त्रिदोषों का  होता है शमन, समस्त उदर रोग हो जाते हैं दूर* *पाचन तंत्र पूर्ण स्वस्थ हो जाता है, दमकता है व्यक्तित्व जैसे कोहिनूर* *ह्रदय,फेफड़े,मस्तिष्क संबंधी भाग जाते हैं सारे के सारे ही रोग* *बॉडी,माइंड एंड सोल की पूर्ण शुद्धि करता है जग में सिर्फ ये योग* *रोग प्रतिरोधक क्षमता का हो जाता है अत्यधिक विकास* *इतने लाभ हैं प्राणायाम में, सच में खास नहीं हैं  ये अति अति खास* *आभा, ओज,तेज और शांति  फिर  खुद ही आ जाती है अलग ही हो जाता है औरा, *मुखमंडल के आभामंडल की  अलग ही छवि नजर आती है* *वंशानुगत मधुमेह और ह्रदय रोग से   बच सकता है इंसान* ब*स हो उसे प्राणायाम की शक्ति की पहचान* *न होंगे सफेद, न झड़ेंगे बाल* *न चेहरे पर पड़ेगी झुरियां,  न लटकेगी खाल* *नेत्र ज्योति भी लंबी आयु तक रहेगी बरकरार* *स्मृति दौर्बल्य से भी हो जाएगा बचाव, लंबी आयु का मिलेगा उपहार* *बुढ़ापा भी नहीं देगा दस्तक  जिंदगी की चौखट पर, एक नहीं प्राणायाम के लाभ बेशुमार* *एक नहीं अनेक बीमारियों से मिलेगा छुटकारा, आओ जाने इस फेरहिस्त में है किस किस का नाम?? *योग भगाए रोग* *तन,मन

चलते चलते

परिवेश

वक्त हौले हौले बीत जाता है