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बिन कहे ही

बिन कहे ही मन की जाने जो,सबसे पावन निर्मल नाता जो,घर में घुसते ही नज़रें ढूंढे जिसको,सब सहज सा लगता है जिसके होने से,शिकवे,गिले है सुनती जो,हर घाव की मरहम है जो,आँचल जिसका सुहाता है सबको,होना जिसका भाता है सबको,ममता,स्नेह,अनुराग,समर्पण,प्रेम का पर्याय है जो,सागर से गहरी है जो,पूरे जग से न्यारी  है जो,वो माँ नवरात्रों में घर आई है,आओ उसका स्वागत करें।।