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Showing posts from June, 2020

नाव

सुविचार,,,,,,ज़िन्दगी की नाव कभी तो आराम से चलती है,कभी कभी सागर में जब तूफान आ जाता है,तो नाव डगमगा जाती है,माझी कैसा है,यह भी बहुत महत्वपूर्ण है,है ना

Poem on Life - हौले हौले

हौले हौले  जा रही है जिंदगी - Poem on Life  -------- हौले हौले जा रही है जिंदगी हौले हौले कर रही है अपना सफर।किस पल लेले कौन सी घटना जन्म,समय की कोख से, हर पल की आये करनी कदर।। - Sneh Premchand Poems on life 

प्रकृति

प्रकृति की गोद मे सब हर भरा सा सच मे सुंदर हो जाता है, आपाधापी के इस जीवन मे सुकून इंसा प्रकृति की गोद मे ही पाता है।।

शब्द

शब्दों को बोलना पड़ता है शब्दों को पढ़ना पड़ता है चित्र तो बिन बोले सब कह जाते है। चित्रकार का दर्जा लेखक से कहीं ऊंचा है,उसे वर्णमाला की ज़रूरत नही।गीत के बोल होते है,गीत गाना पड़ता है,पर वाद्य बिन बोल सब कह देते हैं।

किरदार

मेरी जिंदगी की किताब के को सबसे अनमोल किरदार। मैं हर्फ दर हर्फ तुम्हें पढ़ती गई,  हुए जब से मेरे जीवन में शुमार।। मैं लम्हा लम्हा तुम से जुड़ती गई , चाहा करना तेरा सदा दीदार।।। तुम्हीं मेरे मंदिर तुम्हीं मेरी पूजा,  कर लिया तुम्हें अंगीकार।।।।  और अधिक नहीं आता कहना,  प्रेम ही हर रिश्ते का आधार।।।।।  प्रेम बिना है यह जग सूना, जान ले सकते सारा संसार।।।।।।       Snehpremchand

बीज

बीज दफन होता है तो फल खिलता है। माँ बाप पसीना बहाते हैं तो औलाद को फल मिलता है।।

समन्दर

अक्सर यादों के समंदर में मेरे अपने अंदर में मेरे हर अहसास में मेरे हर जज्बात में सपनो की सौगात में आप ऐसे शामिल हो  जैसे बर्फ में पानी, मां के लिए नानी, राजा के लिए रानी।।

कासे कहूं

कासे कहूँ मैं माँ बिन  बतियाँ अपने हिवड़े की। वो सब सुनती थी, सब कहती थी, अब रोएं चाहे कितनी ही  कौर कलेजे की।।

फर्क

दौलत आये दौलत जाए, क्या फर्क पड़ता है। शोहरत मिले न मिले, क्या फर्क पड़ता है। यहाँ रहो, वहाँ रहो, क्या फर्क पड़ता है। कम हो अधिक हो, क्या फर्क पड़ता है। कोई आये कोई जाए, क्या फर्क पड़ता है। पर माँ बाप जाते हैं, तो फर्क पड़ता है। भेदभाव होता है, तो फर्क पड़ता है। अपने पराये हो जाएं तो फर्क पड़ता है।।

मौसम

कभी कड़कती ठंड जाड़े की जान की दुश्मन बन जाती है। कभी दहकती भट्ठी सी गरमी सबका हिवड़ा अकुलाती है। कभी बरखा होती है जब अपने पूरे यौवन पर,जलमग्न धरा हो जाती है।किसी भी हालात औऱ किसी भी मौसम में खुशियां भागी सी जाती हैं।इन्ही हालातो में,इन्ही मौसमों में खुशी को हौले हौले आवाज़ लगाओ।वो आएगी,मत चित से अपने चैन चुराओ।।

सलाम

सलाम है उस घर आंगन को  जहाँ माँ बाप का होता है बसेरा। सलाम है उस ड्योढी को, अतिथि देवो भव भाव का होता है सवेरा। सलाम है उससे शांति कुंज को जहां क्लेश,द्वेष,न हो,न हो तेरा मेरा। सलाम है उस हर  चौखट को, जहाँ जाने कितने भूखों को तृप्ति का होता हो अहसास। सलाम है उस पावन कुटिया को जहाँ बहन,बेटी को मिले मान सम्मान की आस।।

चा ह

हम वही देखते हैं जो देखना चाहते हैं। हम वही सुनते हैं जो सुनना चाहते हैं। हम वहीं बातचीत करते हैं जहाँ करना चाहते हैं। वर्ना व्यस्त रहने का झूठा ढोंग करते हैं।

फ़रियाद

घृणा

पाप से घृणा करो, पापी से नहीं। बुराई से घृणा करो, व्यक्ति से नहीं। कोई बुरा या पापी तब तक ही तो है जब तक वो बुराई उसमे है,बुराई गयी वो पावन हो गया।हम बुराई दूर करने में उसकी मदद नही करते,उसको कोसने लगते है,ताने देते है,अपशब्द प्रयोग करते हैं,वो तो औऱ भी आहत हो जाएगा,डर जाएगा,आत्म विश्वास खो देगा,नही ,ये सही नही,सुधार की ओर अग्रसर नही होगा।

बड़े

हम कब बडे होते हैं जब हमारे अंदर का बच्चा मर जाता है। जब हमें कोई चीज़ भी खरीदने का जी नही चाहता। जब हम लड़ना छोड़ देते हैं। जब बारिश में नही नहाते। जब सड़क पर गोलगप्पे, नमक निम्बू वाली मूली,भुट्टा नही खाते। इनके अलावा जब तो वाकई बड़े ही जाते हैं, जब माँ बाप हमे छोड़ कर चले जाते हैं।सच मे उस दिन बड़े हो जाते है।जब बच्चे बात बात पर कहने लगते है आप बड़े हो गए आप को समझ नही आएगा।

रूठना

तूफान

ज़िम्मेदारियां

बूंद बूंद

तुम बूंद बूंद से गर बरस जाते,मेरा वजूद भी तर बतर हो जाता।।

कतरा कतरा

काश

सागर

साहिल

धुआं धुआं

धुआं धुआं सा जब हो मन

खामोशी

कुछ न कुछ तो कहती है ये खामोश सागर की गहराई। जाने कितने ही दरिया हैं गर्भ  इसके, कितनी ही सुनामियों ने होगी आवाज़ लगाई।।

दरिया thought by sneh premchand

बहुत दूर से आती है नदिया सागर से मिलन के लिए, इंसान ही है वो, जो जीए तो औरों के लिए भी जीए।।

कई बार

कई बार जीवन मे बहुत ही प्रगाढ़ संबंध हल्के हो जाते हैं समय की धारा के संग रिश्तों के रंग भी बदलते हैं।नए नए सांचो में ढलते हैं।

मुक्त thought by snehpremchand

शब्दों के बोझ से मुक्त होती हैं मौन प्रार्थना,जल्द ही ईश्वर तक  चली जाती हैं।तत्काल ही पढ़ कर उत्तर भी दे देता है ऊपरवाला, मेहंदी अपना रंग निश्चित ही लाती है।

उठ लेखनी thought by snehpremchhand

उठ लेखनी आज कुछ ऐसा काम करेंगे। साहित्य के आदित्य से रोशन करेंगे जहां को, जननी पर कुछ लिख कर,अच्छे कर्मों के फॉम भरेंगे। एक अक्षर के छोटे से शब्द में सिमटा हुआ है पूरा जहांन। न कोई है,न कोई होगा,माँ से बढ़ कर जभी महान।।

साहित्य thought by snehpremchand

साहित्य के आदित्य से जीवन मे नीरसता को सुगमता से दूर किया जा सकता है।साहित्य समाज का दर्पण तो है ही,उज्ज्वल भावनाओ के माथे पर ज्ञान का तिलक है।।बिन साहित्य तो मनुष्य पशु समान है।।

राधा कृष्ण thought by snehpremchand

कृष्ण हैं पुष्प तो राधा सुगंध है।कृष्ण हैं दिल तो राधा है धड़कन।कृष्ण हैं पवन तो राधा गति है।अभिव्यक्ति है कान्हा तो राधा है अहसास।प्रेम है कान्हा तो राधा अनुराग है।कृष्ण है पपीहा तो राधा है कोयल।कृष्ण है अधर तो राधा है बांसुरी,नयन हैं कान्हा तो चितवन है राधा,स्वाद है गोविंद तो भोजन है राधा।गगन है राधा तो सूरज है कान्हा,सुर है मोहन तो सरगम है राधा,सागर है मोहन तो लहर है राधा,नदिया है कान्हा तो बहाव है राधा,मस्तक है कान्हा तो बिंदिया है राधा,मांग है कान्हा तो सिंदूर है राधा,राधा कृष्ण है,कृष्ण ही राधा है।दो नही एक ही है,यही कारण है आज भी राधा का नाम कान्हा से पहले लिया जाता है।राधे कृष्ण,राधे कृष्ण।

अंत समय thought by sneh premchand

छोड़ thought by snehpremchand

जिनको हम छोड़ देते हैं, धीरे धीरे वे भी हमें छोड़ जाते हैं। कोई भी नाता हो,या कोई भी ताल्लुकात, वे पहले से कहां रह पाते हैं???         Snehpremchand

पस ए पर्दा thought by snehpremchand

मैं कतरा कतरा रिसती रही,  तुम घूंट घूंट मुझे पीते रहे,  मैंं लम्हा लम्हा मरती रही,  तुम चैन से जिंदगी जीते रहे, मैं धुआं धुआं सी घुलती रही,  तुम अंतर्ममन से रीते रहे,  अवरुद्धध कंठ से कुछ कह ना सकी,  तुम जी चाहा सब कहते रहे,  हर मंजर मेरा धुंधलाया रहा,  तेरा कभी ना ठंडा साया रहा,  मैंं हौले हौले दरकती रही,  पस- ए-पर्दा मैं साकी सिसकती रही।।           Snehpremchand

बुद्ध महान या सीता महान????

बुद्ध महान या सीता महान?? आज तलक जग सका न जान।।  

भारतीय जीवन बीमा निगम thought by snehpremchand

भा - --रतीय जीवन बीमा निगम का दूसरा नाम है सुरक्षा और विशवास, र---खा है जिसने स्नेह और सौहार्द सभी से,तभी निगम है अति खास, ती---र्थ भी कर्म है,धाम भी कर्म है,इसी सोच से हुआ निगम का सतत विकास, य---हाँ, वहाँ सर्वत्र पसारे पाँव निगम ने,अपने अस्तित्व का इसे आभास, जी--वन के साथ भी,जीवन के बाद भी,निराशा में भी आशा का किया है वास वं--चित न रहे कोई भी उत्पादों से इसके,यथासंभव किया हर प्रयास न---भ सी छू ली हैं ऊंचाईयां इसने आता है धरा के भी रहना पास बी---च भंवर में जब कोई चला जाता है, छोड़ कर,होती है निगम से फिर आस मा---हौल बनाया निगम ने ऐसा,जैसे कुसुम में होती है सुवास नि---यमो को नही रखा कभी ताक पर,हर वर्ग को जोड़ कर खुद से,सतत किया जिसने प्रयास ग---रिमा अपनी रखी बनाई,सबको जीवन मे राह दिखाई,दिनकर से तेज का इसमे वास म---जबूत हौंसला,बुलंद इरादे,जनकल्याण की भावना का न हुआ कभी ह्रास।।              स्नेहप्रेमचंद

बुद्ध नहीं सीता thought by snehpremchand

औरत सीता तो बन सकती है पर बुद्ध नहीं

काबिल ए एतबार thought by snehpremchand

कई मर्सिम तो इस जग में होते ही नहीं काबिल ए एतबार

बाज़ औकात thought by snehpremchand

बाज औकात बड़े ही अजब हो जाते हैं तालुकात। कशिश कहीं खो सी जाती है दरमियान मारसिम के, सो से जाते हैं जज्बात।। बाज औकात--  कभी मारसिम---- रिश्ता

बहुत तेज

हर्फ दर हर्फ