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एक ही वृक्ष

एक ही वृक्ष के हैं हम फल,फूल,पत्ते,कलियाँ और शाखाएं विविधता है बेशक बाहरी स्वरूपों में हमारे,पर मन की एकता की मिलती है राहें एक ही प्रेमचमन में हम पनपे,एक ही मात पिता का मिला सुखद साया। एक ही जैसी परवरिश पाई हमने,एक ही प्रेमगीत गुनगुनाया।। एक ही घरौंदे से निकले पंछियों ने बेशक अब बना लिए अपने अपने आशियाने, समय बदला, सोच बदली,प्राथमिकताओं के हैं अब अपने अपने पैमाने।।

एक ही वृक्ष के हैं हम( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

एक ही वृक्ष के हैं हम फल,फूल,पत्ते,कलियाँ  और हरी भरी शाखाएँ विविध्ता है बेशक  बाहरी स्वरूपों में हमारे, पर मन की एकता की  मिलती हैं राहें पत्थर भी तैर  सकते हैं पानी मे, गर शिद्दत से सब मिल कर चाहें एक ही धरा है एक ही गगन है, फैला दो एक दूजे के लिए  प्रेम भरी बाहें अमन चैन से बढ़ कर कुछ नही, कुछ भी तो नही, खुशियाँ एक दूजे के चेहरों पर लाएँ कुछ भी तो साथ नहीं जाना, हो बेहतर अंतर्मन को सत्य ये बखूबी समझाएँ। प्रेम में ही है वो ताकत जो सबको अपना बना सकता है ऐसी फिजां में महक सी लाएँ प्रकृति भी सिखा गयी हमको,हम भी पीढ़ियों को ये सिखाएं आ गया समय है देर करें न,पैगाम प्रेम का सर्वत्र ही पहुंचाएं।।

एक ही वृक्ष के हैं हम (( शाश्वत सत्य स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

एक ही वृक्ष के हैं हम फल,फूल,पत्ते,कलियाँ और हरी भरी शाखाएँ विविध्ता है बेशक बाहरी स्वरूपों में हमारे,पर मन की एकता की मिलती हैं राहें पत्थर भी तैर  सकते हैं पानी मे,गर शिद्दत से सब मिल कर चाहें एक ही धरा है एक ही गगन है,फैला दो एक दूजे के लिए प्रेम भरी बाहें अम्न चैन से बढ़ कर कुछ नही,कुछ भी तो नही,खुशियाँ एक दूजे के चेहरों पर लाएँ कुछ भी तो साथ नहीं जाना,हो बेहतर अंतर्मन को सत्य ये बखूबी समझाएँ। प्रेम में ही है वो ताकत जो सबको अपना बना सकता है ऐसी फिजां में महक सी लाएँ प्रकृति भी सिखा गयी हमको,हम भी पीढ़ियों को ये सिखाएं आ गया समय है देर करें न,पैगाम प्रेम का सर्वत्र ही पहुंचाएं।।

एक ही वृक्ष के हैं हम(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

एक ही वृक्ष के हैं हम फल,फूल,पत्ते,कलियाँ,अंकुर और हरी भरी शाखाएँ,विवधता है बेशक बाहरी स्वरूपों में हमारे,पर मन की एकता की मिलती हैं राहें, हिन्दू,मुस्लिम,सिख,ईसाई, हैं सब आपस में भाई  भाई,एक खून है,एक ही तन है,इंसा ने ही है ये जात पात बनाई,वसुधैव कुटुम्बकम की भावना काश की हमने होती अपनाई, फिर ना बनाता जश्न कोई किसी की मौत का,न हमने सरहद समझी होती परायी,जीयो और जीने दो के सिद्धांत की,क्यों नही हमने घर घर अलख जलाई,आतंकवाद का हो जाये  खात्मा,ईद दिवाली हो सब ने संग मनाई,सुसंस्कारों की घुट्टी पीले अब हर इंसा, बदल दे अपनी सोच की राहें, धरा बन जायेगी स्वर्ग फिर बंध,ूअपने लाल को खो कर किसी माँ की नही निकलेंगी आहें,एक ही वृक्ष के हैं हम फल,फूल,पत्ते और हरी भरी शाखाएँ

एक ही वृक्ष के हैं हम

एक ही वृक्ष के हैं हम फल,फूल,पत्ते,कलियाँ और हरी भरी  शाखाएँ,  विविधता है,बेशक,बहरी स्वरूपों में हमारे,पर मन की एकता की मिलती हैं राहें।।  एक चमन है,एक सुगंध है,है एक ही हम सब का माली, सांझे सुख हों,सांझे दुःख हों, हो न किसी की झोली खाली।। कतार में खड़ा अंतिम व्यक्ति भी न वंचित रहे बुनियादी जरूरतों से,ऐसी हो हम सब की सोच निराली, समर्थ थाम ले हाथ असमर्थ का,पनपे आपस में भाईचारा ,न कोई सरहद,न कोई  सीमा हो कभी परायी,कुविकारों से हर कोई कर ले किनारा फिर यही धरा धीरे धीरे प्यारा सा स्वर्ग बन जायेगी,मानवता करेगी श्रृंगार करुणा और प्रेम का,यह सृष्टि प्रेममयी हो जायेगी, सब संभव है,गर हर कोई इस भाव को दिल से अपनाए,  विश्व प्रेम की भावना ही है सर्वोपरि,बस दानव नही मानव  कहलाए,।। एक ही वृक्ष के हैं हम फल,फूल,पत्ते,कलियाँ और हरी भरी शाखाएँ।।

एक ही वृक्ष

एक ही वृक्ष के हैं हम फल,फूल,पत्ते और हरी भरी शाखाएं। विविध्ता है बेशक बाहरी स्वरूपों में हमारे,पर मन की एकता की मिलती है राहें।। नियत समय पर वृक्ष ढह जाता है, छोटे छोटे पौधे वृक्ष का ले लेते है आकार। इन वृक्षों और लताओं का कर्तव्य है,करें बड़े वृक्ष के सपने साकार।।

एक ही वृक्ष के हैं हम

एक ही वृक्ष के हैं हम

एक ही वृक्ष के

एक ही वृक्ष((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

एक ही वृक्ष के हैं हम फल,फूल,पत्ते,कलियाँ,अंकुर और हरी भरी शाखाएँ,विवधता है बेशक बाहरी स्वरूपों में हमारे,पर मन की एकता की मिलती हैं राहें, हिन्दू,मुस्लिम,सिख,ईसाई, हैं सब आपस में भाई  भाई,एक खून है,एक ही तन है,इंसा ने ही है ये जात पात बनाई,वसुधैव कुटुम्बकम की भावना काश की हमने होती अपनाई, फिर ना बनाता जश्न कोई किसी की मौत का,न हमने सरहद समझी होती परायी,जीयो और जीने दो के सिद्धांत की,क्यों नही हमने घर घर अलख जलाई,आतंकवाद का हो जाये  खात्मा,ईद दिवाली हो सब ने संग मनाई,सुसंस्कारों की घुट्टी पीले अब हर इंसा, बदल दे अपनी सोच की राहें, धरा बन जायेगी स्वर्ग फिर बंध,ूअपने लाल को खो कर किसी माँ की नही निकलेंगी आहें,एक ही वृक्ष के हैं हम फल,फूल,पत्ते और हरी भरी शाखाएँ

एक ही वृक्ष के हैं हम