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Showing posts with the label संसार

खुशी बांटने से दूनी

परिवार

प्रेम से सुंदर

अनमोल उपहार

सच में ही

कौन है ये चित्रकार

बिन प्रेम सब सून ((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

बिन प्रेम सब सूना है जग में, प्रेम ही है हर रिश्ते का सार। जिसने पढ़ ली प्रेम की पाती, समझो अपना जीवन लिया संवार।। प्रेम संवेदना के पिता है,और संवेदना का ममता से है माता का नाता, संवेदनशील होना है बहुत ज़रूरी,इंसान क्यों सब ये है भूलता जाता????? नियत समय के लिए ही तो हम सब को किरदार अपना अपना निभाना है,क्यों न निभाएं इसको सही तरह से,इस जग को छोड़ कर जाना है,ज़रा सोचिए।।प्रेम सबसे मधुर अहसास है,जहां प्रेम है वहां ईर्ष्या,लोभ,अहंकार सब नष्ट हो जाते हैं,प्रेम की कढ़ाई में सौहार्द का साग ही पकता है।इस साग पर सदैव करुणा का धनिया ही बुरका या जाता है।इसकी सौंधी सौंधी महक से पूरी कायनात महकने लगती है,नजर नहीं,नजरिया ही बदल जाता है।। प्रेम परमार्थ की राह चलता है,  मोह स्वार्थ की। *प्रेम में वो ताकत है, सबको अपना बनाने की। वरना क्या औकात थी सुदामा की, माधव को पोहे खिलाने की????? *स्नेह में वो ताकत है  अराध्य को अपना बनाने की। वरना क्या जरूरत थी राम को, भिलनो के झूठे बेर खाने की????? *अनुराग में वो ताकत है, सबको अपना बनाने की। वरना क्या जरूरत थी कान्हा को विदुर घर भाजी खाने की???????   प्

कृष्णमय

मां के लिए

मां के लिए तो बच्चे ही होते हैं उसका पूरा संसार। पर बच्चों के संसार में कहीं खो सी जाती है मां,ये मुझे नहीं होता स्वीकार।।  एक मां ही तो होती है,जो हर रूप में हमे करती है प्यार।।

प्रेम मय

जिंदगी इम्तिहान लेती है

प्रेम मय

प्रेम डोर

मां बिन

एक किसी के न होने से Thought by Sneh premchand

एक किसी के न होने से सूना लगता है संसार,वो एक कोई और नही,होता है वो माँ का प्यार,जीवन के साज की सबसे मधुर सरगम है माँ,तपते मरुधर में सबसे निर्मल ठंडी छाँव है माँ,सहजता है माँ,आशा है माँ,मिलन है माँ,संसार रूपी कीचड़ में खिला सबसे सुंदर कमल है माँ,सब रिश्ते हैं फीके,खोखले ,माँ के बाद गहता जाता है अहसास,कितने खुशकिस्मत होते हैं वो,होती है माँ जिनके पास,बेशक सोच कर देख लो,माँ के सिवाय कोई रिश्ता निस्वार्थ नही मिलेगा,खुद तो साथ नही रह पाते प्रभु,पर उनके रूप में माँ का गुलाब हर आंगन में खिलेगा

सोच अनुसार

आवागमन Thought by Sneh premchand

मां बाप

Poem on God.चला रहा वो संसार by sneh premchand

सचिदानन्द स्वरूप,सर्वव्यापक, अजन्मा,अनन्त,निराकार। विहंन्गम है वो,कठपुतली है हम, चला रहा है वो संसार।।

जल