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वही दीवाली,वही है होली(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

अपने हों जब संग अपनों के, वही दीवाली और वही है होली। *प्रेम से बड़ा कोई रंगरेज नहीं* प्रेम रंग से ही सजता है  हर इंद्रधनुष और हर रंगोली।। प्रीत की  ऐसी लगी लगन है, मैं तो अपनों की होली,होली,होली।।