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ओ लेखनी

ओ लेखनी, अहसासों के इत्र से यूँ ही सदा महकती जाना, ओ लेखनी,अल्फ़ाज़ों की मधुर वाणी से यूँ ही सदा चहकती जाना, ओ लेखनी चलती जाना तूँ,बस खुद पर तूँ कभी न इतराना, अच्छे साहित्य का होता है सृजन, जब अल्फ़ाज़ों का सुंदर अहसासों से होता है याराना, प्रेम की बज उठती है धुन सर्वत्र,ज़र्रा ज़र्रा गाने लगता है मधुर तराना।।             स्नेहप्रेमचंद