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प्रबल((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

जब भाव प्रबल हो जाते हैं, शब्द अर्थ हीन हो जाते हैं। फिर मौन मुखर हो जाता है, ये इतना गहरा नाता है। फिर धड़कन धड़कन संग बतियाती है।  याद किसी खास की,अधिक ही आती है।। धुआं धुआं सा हो जाता है मन, फैल जाती है गहरे कोहरे की सफेद चादर। सजल नयन,अवरुद्ध कंठ,स्नेह संग तेरे लिए मन में था री!अति आदर नहीं आता याद मुझे  कभी हुई हो नोक झोंक भी संग तेरे। तुझ से कितने सुंदर थे री! सांझ सवेरे।। अनंत गगन में कतारबद्ध से परिंदे लयबद्ध तरीके से उड़े जाते हैं। ऐसे ही उड़ती रही तूं उपलब्धियों के अम्बर में, हर किरदार में उम्दा तुझे सब पाते हैं।। ओ जादूगर! गजब था तेरा करिश्माई वजूद,तेरी महक से आज भी महक रहा अस्तित्व मेरा,सब अपने आप ही तुझ से जुड़ा हुआ पाते हैं। जग रूपी इस कीचड़ में खिली रही कमल सी,एक ऐसा रही प्रतिबिंब, जिसमे सब अपना अपना अक्स देखे जाते हैं।। जब भाव प्रबल हो जाते हैं, फिर शब्द अर्थ हीन हो जाते हैं। फिर मौन मुखर हो जाता है, ये इतना गहरा नाता है।। नहीं बना प्रेम मापने का कोई पैमाना,  जो कर पाती हाल ए दिल बयान। सच में ओ मां जाई!  तूं धरा पर थी अदभुत वरदान।। धरा सा धीरज,उड़ान गगन सी,