नहीं बनना मुझे राधा शाम की,जो रास तो संग मेरे रचाता हो, पर सिंदूर मांग में किसी और की, बड़े प्रेम से सजाता हो।। नहीं बनना मुझे सिया राम की,जो सर्वज्ञ होकर भी अग्निपरीक्षा करवाता हो, गर्भावस्था में भी अपनी अर्धांगिनी को,धोखे से वन भिजवाता हो।। नहीं बनना मुझे द्रौपदी पार्थ की,जो ब्याह तो संग मेरे रचाता हो, पर निज चार भ्राताओं संग,इस नाते के हिस्से करवाता हो।। नहीं बनना मुझे किसी गौतम की कोई अहिल्या, जो मुझे श्रापग्रस्त करवाता हो, छल से मुझे तो छला इंद्र ने,उद्धार हेतु मुझे युगों तक राम प्रतीक्षा करवाता हो।। नहीं बनना मुझे पांचाली धर्मराज की,जो जुए में मुझे दाव पर लगाता हो, व्यक्ति थी मैं वस्तु नहीं, मुझे भरी सभा मे केश खींच लाया दुशाशन, जो नारी अस्मिता को माटी में मिलाता हो।। नहीं बना मुझे पांडु रानी कुंती,जो निज सुत जन्म छिपाती हो, समाज के झूठे डर से जो दोहरा जीवन अपनाती हो।। नहीं बनना मुझे लक्ष्मण की उर्मिला,जो मुझे विरह अग्नि में जलाता हो, बिन मेरी इच्छा जाने,निज भ्रात संग वनगमन की कसमें खाता हो।। नहीं बनना मुझे यशोदा गौतम की,जो माँ बेटे को सोया छोड़ भरी रात में,सत्य की खोज