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सफ़र

सफर

सफर

सफर thought by sneh premchand

बहुत अजीब है ये सफर ज़िन्दगी का, अपनी अपनी मंज़िल सबकी, अपना अपना आशियाना है। सही समय पर सही समझ  सबको तो नही आती, अधिकांश को जब आती है, उस समय तो वापस लौट कर जाना है।। स्नेह प्रेमचन्द

लक्ष्य

बिन लक्ष्य ऐसी है जिंदगी जैसे बिन मन्ज़िल के कोई सफर। बिन मांझी होती है नाव कोई जब दरिया में,जाने लहरें ले जाएंगी किधर।।