Skip to main content

Posts

Showing posts with the label क्यों

इतनी जल्दी

कभी कभी

कभी कभी नहीं अक्सर मेरे दिल में ख्याल आता है दुनिया बनाने वाले ने कैसी दुनिया बनाई है,एक हाथ से देता है,दूजे से लेता है।।

नाराज

Suvichar.....ham kisi se naraz kyun  hotel hein?kuch khas ye hein karan....over expectation,sabse bda karan,kadwa saty bolne ke karan,aainaa dikhane ke karan,KTU vachon ke karan,comparison ke karan,purvagrah ke karan,kissi bat ki ganth band lene ke karan,aise bahut se karan ho sakte h,per iss ka uppay dundna ho to behti nadiya se pucho,Jo marg ki sari gandgi ko apne me sma ker sang le jati h,ganda nala kunthit man ke saman h,nadiya bno,nala nhi,spastikeran mango,khul ker bat kro,per ganth na bandho,aap hi kholte reh jaoge,khol nhi paoge,naraaz hona aasan h,shama kerna mushkil,vikalp dono h,chun na to aap ko hi hoga,kya socha?

नज़र thought by sneh premchand

क्यों नज़र हमे नही आता,कोई तो गुब्बारों में साँसे डाल कर है बेचने को मजबूर,किसी के पास है इतना,वो है इस इतना होने पर मगरूर,क्यों हमे नज़र नही आता,होनी चाहिए कलम और किताब जिन हाथों में,वो सर्दियों की ठिठुरन में ढीठ बर्तनों की कालिख उतारने में अपना बचपन खो देते हैं,फिर कैसे उम्मीद करें इनसे एक अच्छा इंसान बनने की,गहरी आर्थिक विषमता के बीज हम खुद बो देते हैं,क्यों हमे नज़र नही आता,कहीं दावतों में हज़ारों की थाली  छपन भोगों से परोसी जाती है,कहीं होती है लड़ाई आधी रोटी के टुकड़े के पीछे,जैसे भूख ज़िन्दगी को चिढ़ाती है,क्यों हमे ये आर्थिक विषमता की गहरी सी खाई,आज तलक भी नही देती दिखाई,ज़रा सोचिए,हमे क्यों ये नज़र नही आता?

सुपुर्द ए खाक

एक न एक दिन तो होना ही है सुपुर्द ए खाक। फिर क्यों इतना संचय और हाय हाय, बेहतर है तन संग मन भी हो पाक।।           स्नेह प्रेमचंद